सिरोही. माउंट आबू की वादियों के बिखरे सौंदर्य को लेकर प्रशासनिक और वन विभाग के विपरीत आदेशों ने व्यवस्थाओं को कटघरे में ला दिया है. एक तरफ जहां अर्बुदा की वादियां ब्लास्टिंग से अपने वजूद को खो रही है वहीं स्थानीय निवासी दिन प्रतिदिन हादसे से आशंकित है. देखिये यह रिपोर्ट
मौजूदा हालात यह है कि अनुपम सौंदर्य को समेटे गगनचुम्बी पहाड़ ब्लास्टिंग से जमींदोज हो रहे हैं. जहां तक आदेशों की बात करें तो वर्ष 2019 में 11 जून को तत्कालीन जिला कलक्टर सुरेंद्र कुमार सोलंकी ने रुडिप को माउंट में कंट्रोल और साइलेेंट ब्लास्टिंग की अनुमति दी थी. ठीक इसके करीब दो वर्ष बाद हाल ही में वन विभाग के डीएफओ विजय शंकर ने वर्तमान जिला कलक्टर भगवती प्रसाद को पत्र लिखकर रुडिप की ओर से की जा रही ब्लास्टिंग को मॉनिटरिंग कमेटी की स्वीकृति तक रोक लगाने की मांग की है.
ताज्जुब यह है कि लगातार ब्लास्टिंग हो रही है. तस्वीरें और क्षेत्रवासी गवाह हैं. पूर्व में लोग घायल भी हो चुके हैं. मगर नियमों की पालना करवाने वाले अधिकारी सिरे से नकार रहे है कि वहां ब्लास्टिंग हो रही है. क्षेत्रीय निवासियों का कहना है कि यह न सिर्फ पर्यावरण को धूमिल करने का प्रयास है बल्कि भ्रष्टाचार की जड़ें भी दिखाई देने लगी हैं.
प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ से आए दिन हो रही घटनाओं के बाद भी प्रशासन कोई सबक नहीं ले रहा है.ऐसे ही माउंट आबू में पहाड़ियों को ब्लास्टिंग कर खोखला किया गया तो माउंट आबू भी कहीं आने वाले दिनों में प्राकृतिक आपदा का शिकार न बन जाए. इसको लेकर लोगों को हमेशा डर सताता रहता है.
प्रदेश में पर्यावरण को लेकर प्रदेश सरकार से लेकर एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट भले ही गम्भीर है पर मानो सिरोही जिला प्रशासन पर्यावरण को नष्ट करने के लिए कोई कसर नही छोड़ना चाहता. बात प्रदेश के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू की है जहां सुप्रिम कोर्ट और एनजीटी से ऊपर जाकर तत्कालीन जिला कलेक्टर ने कन्ट्रोल और साईलेंट ब्लास्टिंग की कुछ शर्तों के आधार पर स्वीकृति जारी की थी. उसी स्वीकृति को दो साल बाद वर्तमान डीएफओ ने स्थगित कर दी मगर इन दो सालों में बिगड़े पर्यावरण के स्वरूप की भरपाई कौन करेगा. इस पर सब मौन हैं.
इस पूरे मामले में वर्तमान माउंट आबू डीएफओ काफी निवेदन के बाद कैमरे के सामने बोलने को तैयार हुए. वो भी नपे तुले शब्दो में उन्होंने कहा कि माउंट आबू ब्लास्टिंग के मामले में सिर्फ जिला कलेक्टर साहब ही बोलेंगे. जब उन्हें उनके अधिकारों के बारे में पूछा तो बोले हमने कंट्रोल ब्लास्टिंग को स्थगित करने का जिला कलेक्टर को सुझाव दिया है.
इस संबंध में माउंट आबू नगरपालिका के जिम्मेदार अधिकारी रामकिशोर ने पहले तो एक महिने पहले पदस्थापित होने का हवाला दिया और उन्होंने कहा की एक महिने में किसी प्रकार की कोई ब्लास्टिंग नहीं हुई. मगर उन्होंने ही कुछ ही पल में ब्लास्टिंग से एक व्यक्ति के घायल होने की बात स्वीकारी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि रसूखदारों के आगे प्रशासनिक अधिकारी किसी तरह से पंगु बना हुआ है.
माउंट आबू में सीवरेज लाइन का कार्य पिछले कई सालों से चल रहा है. पहले तो सीवरेज कम्पनी के ठेकेदारों ने माउंट आबू की सडकों को तोड़ कर बदहाल किया. अब ठेकेदार पहाड़ों को तोड़ने पर आमदा हैं. पहाडों को ब्लास्टिंग और ड्रिल कर तोड़ा जा रहा है. जबकि एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट की पहाडों के खनन और ब्लास्टिंग की पूर्णतया माउंट आबू में रोक है.
जिला प्रशासन की ओर से माउंट आबू में ब्लास्टिंग की दी गई अनुमति के पीछे की कहानी क्या है, इसके बारे में सरकार जांच करवा कर पता लगा सकती है. अब देखना होगा 300 करोड के इस प्रोजेक्ट में सरकार अपना क्या रूख अपनाती है. कहीं इतने बड़े प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार तो नही पनप रहा यह एक बड़ा सवाल है.
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प्रदेश के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट को वर्ष 2009 से इको सेंसटिव जोन घोषित किया गया. पहाडों की खूबसूरती को बचाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की खनन, ब्लास्टिंग पर रोक एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट की रोक है. लेकिन माउंट आबू में आरयूडीपी के तहत चल रहे सीवरेज कार्य जो आरएण्डबी इन्फ्रा प्रोजेक्ट प्रा.लि कर रही है. इस सीवरेज कार्य के दौरान पर्यावरण को नष्ट करने की जिला प्रशासन ने ठान ली है.
खुद जिले के जिला कलेक्टर सुरेन्द्र कुमार सोलंकी ने ही सीवरेज कम्पनी के ठेकेदार को ब्लास्टिंग की अनुमति दी थी. दो साल में माउंट आबू में सीवरेज कम्पनी ने जगह जगह ब्लास्टिंग कर पहाडों को खासा नुकसान पहुंचाया है.
माउंट आबू में ब्लास्टिंग को लेकर एनजीटी में हुई शिकायत को लेकर तत्कालिन जिला कलेक्टर, माउंट आबू एसडीएम और डीएफओ वन्य जीव ने कहा कि यह प्रोजेक्ट जब से शुरू हुआ है तब से लेकर अब तक किसी भी प्रकार की ब्लास्टिंग नहीं हुई. लेकिन ब्लास्टिंग लगातार हो रही है. अधिकारियों ने कहा कि मॉनेटरिंग कमेटी से इस संबंध चर्चा चल रही है मगर जब मॉनेटरिंग कमेटी से सदस्य से संबंध साधा गया तो उन्होंने कहा कि 2015 से लेकर आज तक इस संबंध में कोई बात नहीं हुई. पिछले दो सालों से तो मॉनेटरिंग कमेटी की बैठक तक नहीं हुई.