खंडेला (सीकर). कस्बे में सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा खराद उद्योग अब दम तोड़ने की कगार पर पहुंच रहा है. वर्तमान परिस्थितियों और सरकार की अनदेखी के कारण बाजार में टिक पाना भी मुश्किल हो गया है जहां एक और सरकार हस्तकला और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए अनेकों योजनाएं चला रही है, वहीं खंडेला कस्बे में वर्षो से चल रहे खराद उद्योग की अनदेखी की जा रही है.
कस्बे में करीब सौ परिवार खराद उद्योग से जुड़े हुए हैं जिन्हें खरादी के नाम से जाना जाता है. ये सभी परिवार वर्षों से बच्चों के लिए लकड़ी के खिलौने, झुंझुने, फिरकी, डमरु चूसनी, उखल-मूसल, महिलाओं के लिए श्रृंगारदान सहित अन्य लकड़ी के खिलौने और अन्य सामान बनाने का कार्य करते थे जिससे उनका गुजारा होता था. लेकिन अब धीरे-धीरे बच्चों का ध्यान मोबाइल गेम और प्लास्टिक व अन्य आधुनिक खिलौनों की ओर जाने लगा. लकड़ी के खिलौनों के प्रति बच्चों का रुझान कम होता गया और यह बिकने कम हो गए.
इससे खरादी समाज के सामने आर्थिक समस्या खड़ी होने लगी है. सरकार भी इनकी ओर ध्यान नहीं दे रही. ऐसे में अब खरादी समाज के लोगों ने लकड़ी के खिलौने बनाने के काम भी लगभग बंद ही कर दिया है. अब सिर्फ चकला, बेलन और ब्रश कि लकड़ी बनाने का कार्य करते हैं. कार्य कम होने की वजह से इनके आमदनी में काफी फर्क पड़ा है. हालांकि इनके द्वारा तैयार ब्रश के लिए लकड़ियां प्रदेश सहित देशभर में अनेक स्थानों पर जाती हैं. खरादी समाज के लोगों ने जनप्रतिनिधियों को भी इस समस्या से अवगत करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं दिखाई दिया. उनके अनुसार चुनावी समय में इस उद्योग को बढ़ाने की बातें तो कहते हैं, लेकिन बाद में ध्यान नहीं दिया जाता.
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उद्योग के कमजोर होने में एक प्रमुख कारण यह भी है कि जहां पर पहले लकड़ी सहित अन्य सामान सस्ता मिलता था, अब उनके मूल्य पहले से बहुत ज्यादा हो गए हैं. कारीगरों की माने तो इन खिलौनों की जगह मोबाइल गेम और प्लास्टिक खिलौने ने ले ली है, जिसमें बच्चे पूरे दिन व्यस्त रहते हैं. इनको मजबूर होकर लकड़ी के खिलौने बनाने का कार्य बंद कर करना पड़ा. ऐसे में अब इनका गुजारा भी मुश्किल हो गया है. पूरा परिवार इसी कार्य में लगा रहता है फिर भी खर्चा निकलना मुश्किल हो रहा है.
58 वर्षीय सलीमुद्दीन ने बताया कि हमारा परिवार शुरू से ही लकड़ी का काम करता आ रहा है. पहले के समय जंगल और पहाड़ से लकड़ी लेकर आते थे, खर्चा भी इतना नहीं आता था. अब लकड़ियां भी बहुत महंगी मिल रही हैं. पहले काम बहुत ज्यादा होता था, जिसमें कमल का फूल बनाना, पलंग के पाये तैयार करना, बच्चों के खिलौने जिनमें आटा चक्की, गाडोलिया, फिरकी सहित अनेक प्रकार खिलौने तैयार होते थे और उनकी बिक्री भी अच्छी होती थी. लेकिन अब धीरे-धीरे सब बंद हो गया.
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बाजारों से दुकानदार हमारे पास आकर खिलौने लेकर जाते थे और बाहर से भी लोग खिलौने लेने आते थे. अब सिर्फ चकला, बेलन और कलर कि ब्रश कि डंडी बनाने का कार्य होता है. सरकार की ओर से अभी तक कोई फायदा नहीं मिला. यदि सरकार इस ओर ध्यान दे तो उद्योग में बहुत सुधार हो सकता है. इस समय घर का खर्चा चलाना और बिजली का बिल चुकाना भी मुश्किल हो गया है.
वहीं युवा कारीगर ने बताया कि पहले लकड़ी पर सस्ती मिलती थी और मजदूरी भी अच्छी हो जाती थी. अब लकड़ियां बहुत महंगी हो गई हैं, जहां पहले सौ से एक सौ पचास रुपए प्रति क्विंटल मिलती थी अब इनके भाव बहुत ज्यादा हो गए. पहले बच्चों के खिलौने बनाने सहित अन्य कार्य भी रहते थे जो अब बंद हो गए हैं. इस समय मुश्किल से रोज के दो सौ रुपए की कमाई हो रही है.
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खरादी मोहल्ला निवासी 70 वर्षीय अब्दुल सतार ने बताया कि पहले हमारे समय में बहुत काम हुआ करता था. दिन में करीब दस से बारह लकड़ी के खिलौने तैयार कर लेते थे. सभी खिलौने हाथों से बनाए जाते थे. फिर धीरे-धीरे प्लास्टिक और आधुनिक खिलौनों ने लकड़ी के खिलौनों का स्थान ले लिया. प्लास्टिक के खिलौने लकड़ियों के खिलौनों से सस्ते मिलते हैं. इससे धीरे-धीरे खिलौने बनाने का कार्य बंद हो गया. हमारे बच्चों ने भी खिलौने बनाने की कला को नहीं सीखा है. व्यापर की हालत बहुत दयनीय हो गई है.
ये खिलौने होते थे बच्चों की पहली पसंद
लकड़ी के खिलौनों में झुनझुना, फिरकी, चूसनी, आटा चक्की, डमरू, गाढ़ूला, बच्चों के खेलने के लिए रसोई सेट सहित अन्य सामान में पलंग के पाए, महिलाओं का श्रृंगार दान, कमल का फूल आदि तैयार होते थे.
उद्योग में कमी आने के प्रमुख कारण
लकड़ियों को बाहर एक्सपोर्ट करने से यहां कारीगरों को लकड़ियां अधिक मूल्य पर खरीदनी पड़ रही हैं.
लकड़ी के खिलौनों का स्थान मोबाइल गेम, प्लास्टिक और आधुनिक खिलौनों ने ले लिया.
जहां पहले कारीगरी का कार्य हाथों से किया जाता था, अब मशीनों से होने लगा जिससे खर्चा भी बढ़ा.
प्लास्टिक के खिलौने लकड़ी से सस्ते होते हैं, इस वजह से भी प्रभाव पड़ा.
जागरूकता और शिक्षा का अभाव
खरादी समाज के बच्चे शुरू से इसी कार्य में लग जाते हैं. बच्चे अपने परिवार के अन्य सदस्यों की मदद करते हैं जिस वजह से शिक्षा से दूर रहते हैं. शिक्षा और जागरूकता के अभाव के कारण भी इनको योजनाओं सहित अन्य लाभ नहीं मिल पाता है. विधायक महादेव सिंह खंडेला ने कहा कि पहले भी इनको मदद के लिए बोला था. इसे लेकर उद्योग मंत्री से बात की जाएगी. सरकार और मेरी ओर से जो भी होगा इनकी मदद की जाएगी और इनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा. और जो भी सरकारी योजनाएं हैं उनका इन्हें लाभ दिलाया जाएगा.
खंडेला कुटीर उद्योग के नाम से प्रचलित कस्बा है. गोटा उद्योग के साथ-साथ खराद उद्योग भी प्रचलन में रहा है. पूर्व में खरादी समाज के लोग खिलौने सहित अन्य सामग्री बनाने में अल्डू की लकड़ी का प्रयोग करते थे. उस समय वन विभाग वाले इनको लकड़ियां लेने से मना करते थे, तो पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक गोपाल सिंह खंडेला ने राज्य सरकार से मांग कर अल्डु की लकड़ी को मुक्त करवाया था. और इन लोगों पर किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करने की मांग की थी. उसके बाद इस उद्योग में थोड़ा सुधार हुआ था.
केंद्र की सरकार कुटीर उद्योग को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार के सहायतार्थ अनेक योजनाओं को लागू किया है लेकिन राज्य की सरकार ने इन योजनाओं की अनदेखी की. खरादी समाज के सामने अब रोजगार को लेकर विकट समस्या खड़ी हो गई है. पूर्व में जो काम था उसमें बहुत ज्यादा कमी आई है. साथ ही बिजली की दरों में बढ़ोतरी होने से इनकी समस्या और ज्यादा बढ़ गई है.
राज्य सरकार को कुटीर उद्योगों लिए बनाई गई केंद्र की योजनाओं को लागू करना चाहिए और इनको बिजली में सब्सिडी या छूट दी जानी चाहिए. इससे इनकी सहायता हो और अपने परिवार का पालन कर सकें. राज्य सरकार की लापरवाही से कुटीर उद्योग धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं.