फतेहपुर (सीकर). प्रदेश में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए भले ही सरकार किसानों, पशुपालकों के लिए कई तरह की योजनाओं का जिक्र करती है. लेकिन हकीकत यह है कि प्रदेश की 15 फीसदी ग्राम पंचायतों में पशुओं के इलाज के लिए चिकित्सालय का कोई प्रबंध नही है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पशु पालन कैसे होगा.? छोटी-छोटी बीमारियों के लिए पशुपालकों को पशुओं को लेकर कई किमी. दूर जाना पड़ता है.
बता दें कि विधायक राजकुमार शर्मा के प्रश्र के उत्तर में विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार प्रदेश में वर्तमान में 9892 ग्राम पंचायतें हैं. इनमें से 1478 ग्राम पंचायतों में पशु चिकित्सा से संबंधित कोई ईकाई संचालित नहीं हो रही है. प्रदेश में किसानों के आय का एक प्रमुख जरिया पशुपालन भी है. ऐसे में पशुओं के बीमार होने की स्थिति में किसानों पर आर्थिक भार आता है. राज्य सरकार और केन्द्र सरकार की योजनाओं की जानकारी भी नहीं पहुंच पाती है. प्रदेश में विगत वर्षों में तेजी से पशु चिकित्सालय खोले गए हैं. लेकिन इतने लंबे काल के बाद भी पूरी ग्राम पंचायतों में चिकित्सा सुविधा नहीं है. आंकड़े सामने आने के बाद सरकार के दावों की पोल खुल गई.
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अगर आंकड़ों की बात करे तो प्रदेश में सीमावर्ती जिलों में पशु चिकित्सा की स्थिति बेहद खराब है. बाड़मेर जिले की 158 ग्राम पंचायतों में आज भी कोई पशु चिकित्सा ईकाई संचालित नहीं है. यह आंकड़ा प्रदेश के अन्य जिलों से सबसे ज्यादा है. इसके बाद उदयपुर जिले में स्थिति बेहद खराब है. उदयपुर जिले की 108 ग्राम पंचायतों में पशु चिकित्सा ईकाई संचालित नहीं है. प्रदेश में कोटा जिले में स्थिति सही है. कोटा में महज 6 ग्राम पंचायतों में ही चिकित्सा ईकाई संचालित नहीं है.
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वहीं सीकर, चुरू, झुंझुनू जिले में भी पशु चिकित्सा की स्थिति ठीक नहीं है. तीनों जिलों की 53 ग्राम पंचायतों में आज भी कोई पशु चिकित्सा ईकाई संचालित नहीं है. सर्वाधिक वंचित ग्राम पंचायतें सीकर जिले की है. सीकर जिले की 21 ग्राम पंचायतों में, झुंझुनूं जिले की 19 ग्राम पंचायतों में व चुरू जिले की 13 ग्राम पंचायतों में कोई पशु चिकित्सा की व्यवस्था खराब है.