(खंडेला) सीकर. जिले के खण्डेला को गोटा उद्योग और ऊंचे पहाड़ों के कारण जाना जाता है. गोटा उद्योग के कारण खण्डेला की अपनी अलग ही पहचान थी. लेकिन, सरकारी नीतियों और असहयोगात्मक रवैये ने इस उद्योग को चौपट कर दिया है. करीब दस दशक पहले प्रारंभ किया गया गोटा उद्योग, कारीगरों को नई तकनीकों का ज्ञान नहीं होने के कारण धीरे-धीरे दम तोड़ता नजर आ रहा है.
बताया जाता है कि बहुत साल पहले यहां के नजीर विसायती ने बाहर से गोटा लाकर बेचना शुरू किया था. उन्होंने बाजार से एक गोटा मशीन लाकर निर्माण कार्य भी प्रारंभ किया. यहां, का वातावरण शुष्क होने के कारण उत्पादन अच्छा होने लगा. मशीनों की संख्या बढ़ने लगी. एक व्यक्ति 8 से 10 मशीन आराम से चला सकता था. धीरे-धीरे कस्बे की आबादी इस उद्योग से जुड़ गई. यहां, तैयार होने वाला गोटा, बाजिया, आंकड़ा, फूल, राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, सूरत, उत्तर प्रदेश सहित अनेक बड़े शहरों में जाता था.
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दरअसल, गोटा के रूप और डिजाइन में आए बदलाव, जरी का काम बढ़ने, सरकार की ओर से उन्हें सहायता और नई तकनीकी जानकारी नहीं देने के कारण यह उद्योग धीरे धीरे बंद होने की कगार पर है. हालांकि, गोटा व्यापार संघ की ओर से उद्योग को जिंदा रखने के लिए भरपूर प्रयास किए गए. वो भी इसमें ज्यादा सफल नहीं हो सके. अधिकतर मशीनें अब कबाड़ हो चुकी हैं. लोगों ने बिजली व्यावसायिक कनेक्शन हटा दिए या उनको घरेलू में बदल लिया. पहले जहां हजारों मशीनें चलती थी, अब उनकी संख्या घटकर सिर्फ 50 तक सिमट गई हैं.
वहीं, गोटा मशीन चलने वाले कारीगर हैदर अली ने बताया दिनभर मेहनत करने के बावजूद ₹150 तक के लेबर की मजदूरी मिलती है. जिसे बिजली का खर्चा भी नहीं चलता. गोटा उद्योग से जुड़े लोगों ने या तो दूसरा धंधा शुरू कर दिया या कमाने के लिए बाहर चले गए. गोटा व्यापार संघ मंत्री सुरेश चौधरी ने बताया कि खण्डेला के मूल गोटे का काम तो अब शून्य के बराबर रह गया है. बाहर से गोटा लाकर व्यापार कर रहे हैं. कारीगरों को नई तकनीकों की जानकारी का अभाव, यातायात के साधनों का अभाव इस उद्योग की समाप्ति के प्रमुख कारण हैं.