सवाई माधोपुर. उपखण्ड मुख्यालय खंडार से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित रामेश्वर धाम पर सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु चतुर्भुज नाथ के दर्शन के लिए पहुंचे. त्रिवेणी संगम की इस गंगा में बड़ी संख्या में भक्तों ने डुबकी लगाई. रामेश्वर धाम में चतुर्भुज नाथ मंदिर त्रिवेणी संगम तट पर स्थित है. ब्लॉक सांख्यिकी अधिकारी धर्मेंद्र गुप्ता ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी रामेश्वर धाम में कार्तिक पूर्णिमा को चतुर्भुज नाथ जी के मेले का आयोजन हुआ है. मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे.
चतुर्भुज नाथ मंदिर क्यों है इतना प्रसिद्ध? : उन्होंने बताया कि राजस्थान में कुल चार त्रिवेणी संगम हैं. पहला त्रिवेणी संगम बेणेश्वर धाम डूंगरपुर में, दूसरा मांडलगढ़ (बींगोद) भीलवाड़ा में, तीसरा राजमहल टोंक में और चौथा रामेश्वर घाट खंडार में है. रामेश्वर घाट पर त्रिवेणी संगम में चम्बल-बनास-सीप नदियां संगम बनाती है. सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से लगभग 62 किलोमीटर दूर रामेश्वर धाम राजस्थान में ही नहीं बल्कि पूरे देश में आस्था का प्रमुख केंद्र है. चंबल, बनास और सीप नदियों के त्रिवेणी संगम स्थल पर स्थापित रामेश्वर महादेव का मंदिर हजारों साल पुराना है.
मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान राम ने अपने हाथों से की थी. जब भगवान राम ने शंकर भगवान के शिवलिंग को स्थापित किया, तो भोले नाथ स्वयं प्रकट हुए. भगवान राम की ओर से शिवलिंग की स्थापना करने के कारण ही इस स्थान का नाम रामेश्वर धाम पड़ा था. ये भी मान्यता है कि जिस क्षेत्र में तीन नदियों का संगम होता है वह क्षेत्र बहुत समृद्धि और खुशहाली पूर्ण होता है. इसी त्रिवेणी संगम के तट पर चतुर्भुज नाथ का मंदिर स्थित है, जिसके दर्शन करने के लिए यहां श्रदालुओं और पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है.
19 वर्षों से लगातार अखंड कीर्तन है जारी : ब्लॉक सांख्यिकी अधिकारी धर्मेंद्र गुप्ता ने बताया कि इस मंदिर पर लगभग 20 वर्षों से अखण्ड कीर्तन चल रहें हैं. यहां प्रत्येक अमावस्या और पूर्णिमा को लोगों का मेला लगा रहता है. रामेश्वर धाम स्थित भगवान चतुर्भुज के मंदिर में सदियों से अखण्ड ज्योति प्रज्वलित है. ऐसा कहा जाता है कि ये ज्योति सालों से निरंतर जल रही है. ज्योत में श्रद्धालुओं की ओर से चढ़ाया गया घी वर्षों से उपयोग में लिया जा रहा है. श्रद्धालु दूर-दूर से ज्योति के दर्शन करने की लालसा से रामेश्वर धाम पहुंचते हैं.
रामेश्वर धाम की स्थापना के पीछे की कहानी : आदि महाकाव्य रामायण के अनुसार वनवास के समय भगवान राम ने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वर्तमान सवाई माधोपुर की खण्डार तहसील में स्थित रामेश्वर तीर्थ की जगह एक रात का विश्राम किया था. रामायण के अनुसार दक्षिणी सागर ने जब भगवान राम को रास्ता नहीं दिया तो उसे सुखाने के लिए भगवान राम ने अमोघ बाण का प्रहार किया, जिससे समुद्र के स्थान पर मरूकान्तार हो गया जो अब राजस्थान का पश्चिमोत्तर भाग है.
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त्रिवेणी संगम के पास चतुर्भुज नाथ का मंदिर: धार्मिक दृष्टि से पवित्र स्थल के रूप में विख्यात यह स्थान त्रिवेणी संगम के रूप में जाना जाता है. इस स्थान पर तीन प्रमुख नदियों का मिलान होता है, इसी कारण इसे त्रिवेणी संगम नाम दिया गया है. इस जगह पर चंबल नदी, बनास नदी और सीप नदी आकर मिलती है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में भगवान राम ने मिट्टी का शिवलिंग स्थापित करके इसी जगह पर भगवान शिव की पूजा की थी. वर्तमान में इस स्थान पर शिव भक्तों का वर्ष भर जमावड़ा लगा रहता है. इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुज नाथ का मंदिर भी बना हुआ है.
हर साल भरता है मेला : रामेश्वर शिवलिंग के दर्शनार्थ दूर-दराज से आने वाले भक्तजन त्रिवेणी में स्नान कर भगवान शिव के शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. इस स्थान पर प्रतिवर्ष 'कार्तिक पूर्णिमा' और 'महा शिवरात्री' पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादात में यहां पर भीड़ एकत्रित होती है. इस स्थान को राजस्थान में 'मीणा जनजाति का प्रयागराज' भी कहा जाता है.