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सवाई माधोपुरः घुश्मेश्वर महादेव देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रुप में जाने जाते हैं, यहां पूरी होती है सारी मन्नत

सवाई माधोपुर स्थित घुश्मेश्वर महादेव को देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. साल भर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और घुश्मेश्वर मंदिर में अपनी हाजिरी लगाकर अपनी मन्नत मांगते हैं. श्रावण मास में यहां एक माह तक श्रावण महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसमे भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए दूर दराज सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Mar 11, 2021, 2:14 PM IST

सवाई माधोपुर का शिव मंदिर, Shiva temple of Sawai Madhopur
यहां पूरी होती है सारी मन्नत

सवाई माधोपुर. जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव को देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. साल भर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और घुश्मेश्वर मंदिर में अपनी हाजिरी लगाकर अपनी मन्नत मांगते हैं. वहीं, शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर आसपास के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओ की विशेष भीड़ रहती है.

घुश्मेश्वर महादेव देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रुप में जाने जाते हैं

पढ़ेंः महाशिवरात्रि 2021: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए करें ये खास उपाय, जानिए कौन सा मुहूर्त रहेगा सबसे शुभ

श्रावण मास में यहां एक माह तक श्रावण महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसमे भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए दूर दराज सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचते हैं और शिव आराधना कर भगवान शिव को प्रसन्न कर अपनी और अपने परिवार की कुशलक्षेम की कामना करते है. इस मंदिर का इतिहास भी अपने आप में बेहद अद्भुत है.

इसका इतिहासः

घुश्मेश्वर मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो देव गिरी पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण रहा करते थे. उनकी पत्नी थी सुधर्मा, लेकिन संतान सुख से वंचित रहने के कारण उन्हें लोगों के व्यंग्य बाण सुनने पड़ते थे. इससे व्यथित होकर सुधर्मा ने अपनी छोटी बहन सुषमा का विवाह करवाया. सुषमा भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी. कुछ समय पश्चात सुषमा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन सुधर्मा को लगा कि पुत्र मोह के कारण उस का बहन के प्रति प्रेम कम होता जा रहा है तब सुधर्मा ने पुत्र की हत्या कर शव सरोवर में फेंक दिय.

पढ़ेंः SPECIAL: राजस्थान के 'अमरनाथ धाम' का त्रेता युग से जुडा है रिश्ता, यहीं भोलेनाथ ने दिया था परशुराम को दिव्य शस्त्र

रक्तरंजित शव को देखकर जब पुत्र वधू ने सास को बताया और शिव की तपस्या की तो उसे आकाशवाणी से पता लगा कि यह हत्या उसकी बहन ने ही की है. भगवान शिव ने सुधर्मा को खत्म करने की बात की तो सुषमा ने कहा कि नहीं प्रभु आप केवल उसकी बुद्धि सही कर दें. इस पर भगवान प्रसन्न हुए और कहा कि आज से मैं तुम्हारे नाम से इसी स्थान पर वास करूंगा और लोगों की सेवा करूंगा. घुश्मेश्वर मंदिर का इतिहास अपने आप में बेहद अद्भुत है.

900 साल पुराना मंदिरः

यह मंदिर तकरीबन 900 वर्ष पुराना बताया जाता है. बताया जाता है कि सुषमा की तपस्या से शिव का प्राकट्य होना पाया गया. इस शिवलिंग को पाताल से जुड़ा हुआ माना जाता है. वेदों और उपनिषदों में भी शिवाड घुश्मेश्वर का बखान वर्णित है. बताया जाता है कि आदिकाल से मंदिर का इतिहास है. महर्षि वेदव्यास ने भी उपनिषद में इस मंदिर का वर्णन किया है. इस मंदिर में देव गिरी पर्वत भी लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.

पढ़ेंः SPECIAL: जानिए राजस्थान के इस मंदिर के बारे में...जहां शिवलिंग दिन में तीन बार बदलता है अपना रंग

पहाड़ पर स्थित देवी मंदिर को मंदिर ट्रस्ट ने विकसित कर विशेष आकर्षण का केंद्र बनाया है. विभिन्न देवी-देवताओं की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं देव गिरी पर्वत पर स्थापित की है. मंदिर के प्रति लोगों की विशेष आस्था से जुड़ी हुई है. सालभर मंदिर पर विभिन्न आयोजन होते हैं, लेकिन श्रावण महोत्सव के दौरान विशेष रूप से मंदिर ट्रस्ट की ओर से धार्मिक आयोजन एक माह तक करवाए जाते हैं. घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के बारे में लोगों का मानना है कि जिस किसी ने सच्चे मन से भगवान शिव के दरबार में अपनी हाजिरी लगाई फिर उसकी झोली मुरादों से कभी खाली नहीं रही.

सवाई माधोपुर. जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव को देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है. साल भर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और घुश्मेश्वर मंदिर में अपनी हाजिरी लगाकर अपनी मन्नत मांगते हैं. वहीं, शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर आसपास के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. श्रावण मास में यहां श्रद्धालुओ की विशेष भीड़ रहती है.

घुश्मेश्वर महादेव देश के 12 ज्योतिर्लिंग के रुप में जाने जाते हैं

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श्रावण मास में यहां एक माह तक श्रावण महोत्सव का आयोजन किया जाता है. जिसमे भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए दूर दराज सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचते हैं और शिव आराधना कर भगवान शिव को प्रसन्न कर अपनी और अपने परिवार की कुशलक्षेम की कामना करते है. इस मंदिर का इतिहास भी अपने आप में बेहद अद्भुत है.

इसका इतिहासः

घुश्मेश्वर मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो देव गिरी पर्वत के पास सुधर्मा नामक ब्राह्मण रहा करते थे. उनकी पत्नी थी सुधर्मा, लेकिन संतान सुख से वंचित रहने के कारण उन्हें लोगों के व्यंग्य बाण सुनने पड़ते थे. इससे व्यथित होकर सुधर्मा ने अपनी छोटी बहन सुषमा का विवाह करवाया. सुषमा भगवान शंकर की अनन्य भक्त थी. कुछ समय पश्चात सुषमा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन सुधर्मा को लगा कि पुत्र मोह के कारण उस का बहन के प्रति प्रेम कम होता जा रहा है तब सुधर्मा ने पुत्र की हत्या कर शव सरोवर में फेंक दिय.

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रक्तरंजित शव को देखकर जब पुत्र वधू ने सास को बताया और शिव की तपस्या की तो उसे आकाशवाणी से पता लगा कि यह हत्या उसकी बहन ने ही की है. भगवान शिव ने सुधर्मा को खत्म करने की बात की तो सुषमा ने कहा कि नहीं प्रभु आप केवल उसकी बुद्धि सही कर दें. इस पर भगवान प्रसन्न हुए और कहा कि आज से मैं तुम्हारे नाम से इसी स्थान पर वास करूंगा और लोगों की सेवा करूंगा. घुश्मेश्वर मंदिर का इतिहास अपने आप में बेहद अद्भुत है.

900 साल पुराना मंदिरः

यह मंदिर तकरीबन 900 वर्ष पुराना बताया जाता है. बताया जाता है कि सुषमा की तपस्या से शिव का प्राकट्य होना पाया गया. इस शिवलिंग को पाताल से जुड़ा हुआ माना जाता है. वेदों और उपनिषदों में भी शिवाड घुश्मेश्वर का बखान वर्णित है. बताया जाता है कि आदिकाल से मंदिर का इतिहास है. महर्षि वेदव्यास ने भी उपनिषद में इस मंदिर का वर्णन किया है. इस मंदिर में देव गिरी पर्वत भी लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है.

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पहाड़ पर स्थित देवी मंदिर को मंदिर ट्रस्ट ने विकसित कर विशेष आकर्षण का केंद्र बनाया है. विभिन्न देवी-देवताओं की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं देव गिरी पर्वत पर स्थापित की है. मंदिर के प्रति लोगों की विशेष आस्था से जुड़ी हुई है. सालभर मंदिर पर विभिन्न आयोजन होते हैं, लेकिन श्रावण महोत्सव के दौरान विशेष रूप से मंदिर ट्रस्ट की ओर से धार्मिक आयोजन एक माह तक करवाए जाते हैं. घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के बारे में लोगों का मानना है कि जिस किसी ने सच्चे मन से भगवान शिव के दरबार में अपनी हाजिरी लगाई फिर उसकी झोली मुरादों से कभी खाली नहीं रही.

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