जयपुर. अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर निर्माणाधीन है. 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह भी हो रहा है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए करीब 500 साल का चुनौतियों भरा सफर तय किया है. ये बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि राम जन्म भूमि में 30 साल तक जयपुर की नागा सेना ने पहरा दिया था. अयोध्या के रामलला और श्री रामजी के महलों और मंदिरों को बचाने के लिए जयपुर में बालानंद मठ के निर्मोही अखाड़े से जुड़े संत-सैनिकों ने सुरक्षा की कमान संभाली थी. कुछ साक्ष्य तो ये भी मिलते हैं कि सुरक्षा की दृष्टि से भगवान रामलला को जयपुर भी लाया गया था.
जयपुर राज परिवार भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कहलाते हैं. इन कछवाहा शासकों ने अयोध्या के बाल स्वरूप रामलला की सुरक्षा में कभी सेंध नहीं लगने दी. बालानंद मठ से जुड़े इतिहासकार देवेन्द्र भगत ने बताया कि जयपुर का राम मंदिर से जुड़ाव रहा है. सवाई जयसिंह के पास ही अयोध्या में जन्मभूमि पर रामकोट की जिम्मेदारी थी और सुरक्षा की दृष्टि से वहां बालानंद पीठ के नागा साधु तैनात थे. रामलला की मूर्ति का पहरा हुआ करता था. सन 1734 में अयोध्या में बालानंदी पीठ के संत सैनिकों का पहरा हटाया गया. बाद में रामलला की सुरक्षा खतरे में पड़ने लगी तब जयपुर के नागा संतों का दस्ता दोबारा अयोध्या भेजा गया. सवाई जयसिंह को लगता था कि उनकी मृत्यु के बाद ये इंतजाम ऐसे नहीं रह पाएंगे.
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उन्होंने बताया कि ऐसे स्पष्ट स्रोत मिलते हैं कि उन्हीं नागा साधुओं के सुरक्षा दस्ते के साथ सन 1756 में रामलला की मूर्ति को अयोध्या से जयपुर लाया गया. सिटी पैलेस के रिकार्ड्स को खंगालने पर इस तरह के वृतांत भी मिलते हैं. अयोध्या से पधारे रामलला को पहले सांगानेर, सांगानेरी गेट के बाहर बनी दादू पंथी महाराज की बगीची, फिर जौहरी बाजार में हवेली में रखा गया और आखिर में सिटी पैलेस ले जाया गया. सांगानेर के बैरागी परिवार को राम लला मंदिर की सेवा का भार सौंपा गया. बाद में परिस्थितियां सामान्य होने पर रामलला की मूर्ति को वापस अयोध्या भेज दिया गया. जौहरी बाजार में हवेली के उसी रास्ते को रामलाल जी का रास्ता नाम दिया गया और उस स्थान पर माता कौशल्या के साथ रामलाल जी को विराजमान कराया गया.
वहीं, वर्तमान में रामलला जी के रास्ते में जो भगवान रामलला मंदिर के पुजारी पंडित राकेश दाधीच ने बताया कि जब जयपुर का विस्तार हो रहा था, तब जयपुर में रामलला जी यहां विराजमान कराए गए थे. इस रास्ते का नाम भी इसी वजह से रामलला जी का रास्ता रखा गया. इस मंदिर में भगवान रामलला माता कौशल्या के साथ विराजमान हैं. उनके दाएं हाथ पर लक्ष्मी नारायण और बाएं हाथ पर सीताराम जी विराजमान है. ये जयपुर में एकमात्र रामलाल का मंदिर है. कहा जाता है कि ये मंदिर अयोध्या के संपर्क से है. अयोध्या के रामलला यहां विराजमान किए गए थे. उसी आधार पर उन्हीं को दर्शाने के लिए फिर यहां रामलला का मंदिर बनाया गया.
इस संबंध में सिटी पैलेस ओएसडी रामू रामदेव ने कहा कि रामचंद्र जी का मंदिर और रामलाल जी के मंदिर के अलावा भी भगवान राम के कई मंदिर है, जिसका कारण है कि जयपुर राज परिवार भगवान राम के वंशज हैं और उन्होंने राम के अलावा भी कई मंदिर बनाए, जब औरंगजेब ने तोड़फोड़ किया था. उस दौर में जितने भी मंदिर तोड़े गए, वहां सवाई जयसिंह ने पूरे हिंदुस्तान में 108 जयसिंहपुरा बसाया. हालांकि, रामलला जी को अयोध्या से जयपुर लाया गया था, इसके लेकिन कोई पुख्ता साक्ष्य नहीं है, लेकिन इस पर रिसर्च करने की जरूरत है.