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स्पेशल रिपोर्ट: राजसमंद में मिट्टी के दीयों पर क्यों मंडराने लगा संकट, जानिए

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Published : Oct 24, 2019, 5:51 PM IST

खुशियों के त्योहार दिवाली पर्व को मनाने में खासतौर से मिट्टी के दीपक का खासा महत्व है. लेकिन कुछ सालों से धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक लाइटों की चमक के आगे परंपरागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व लगभग खतम सा होता जा रहा है. ऐसे में राजसमंद में इस दिवाली से कुंभकारों को क्या आस है, देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

clay lamps on diwali, special report Rajsamand, दीवाली का त्योहार, दिपावली का पर्व

राजसमंद. लंका विजयी करने के बाद प्रभु श्रीराम के आगमन पर मिट्टी के दीपक जलाकर उनका हर्षोल्लास के साथ स्वागत सत्कार किया था. लेकिन राम के अयोध्या लौटने पर शुरू हुई मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा वर्तमान परिदृश्य में विलुप्त होती जा रही है, जिसका मुख्य कारण चाइना से आने वाले प्लास्टिक के दीपक और जगमगाती लाइटों ने इनको खत्म करने का काम किया है.

राजसमंद से दिवाली पर स्पेशल रिपोर्ट

दिवाली पर्व को मनाने में खासतौर से मिट्टी के दीपों का खासा महत्व है. लेकिन कुछ सालों से धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध ने परंपरागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व लगभग खतम सा हो गया है. दीयों के स्थान पर लोग चाइना से आने वाले विशेष दीया की खरीदारी को महत्व देते हैं. इस कारण दीपक बनाने का काम धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है. कहा जाता है कि मिट्टी के दीपक से जहां घर रोशन होता है. वहीं दूसरी तरफ इस मिट्टी के दीपक बनाने वाले का भी गुजारा चलता है.

पढ़ें- अजमेर से स्पेशल रिपोर्ट: इलेक्ट्रॉनिक्स चकाचौंध में कहीं गुम हो रही है मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा

चाइनीज चकाचौंध के आगे कुम्हार बेबस

लेकिन वर्तमान समय में जहां चाइना से आने वाले सामान की चकाचौंध ने इस मिट्टी के दीपक को खत्म करने का काम कर रहा है. कुम्हार समाज के लोग बताते हैं कि मिट्टी के दीयों की बाजार में मांग कम होती जा रही है. पहले दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाकर दिवाली का पावन पर्व जगमगाती रोशनी में मनाया जाता था. लेकिन वर्तमान समय में महंगाई के चलते दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाना रस्म बनकर रह गया है. एक समय था जब घरों की मुंडेर पर दीपावली के दिन शाम होते ही दीयों की कतारें जगमग आने लगती थी. लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों की चलन मोमबत्ती और बिजली की लाइटों ने ले ली है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का ऐसा गांव...जहां हर घर में बनते हैं मिट्टी के बर्तन

कुम्हार समाज पर संकट, दीयों की बिक्री में भारी गिरावट

इससे जहां एक और कुम्हार समाज के लोगों के व्यापार पर संकट मंडराने लगा है. वहीं दूसरी तरफ चाइनीज सामान की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. वहीं दिवाली का पर्व देखते हुए राजसमंद जिला मुख्यालय पर भी कुम्हार समाज के लोगों ने दीए बनाने के काम में लगे हुए हैं. लेकिन उनका कहना है कि पिछले साल के मुकाबले दीयों की बिक्री में भारी मात्रा में गिरावट आया है, जिसका एकमात्र कारण लोगों का चाइनीज सामान का अधिक उपयोग करना है. इसके कारण दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों की मांग कम हुई है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मंदी की मार ने बुझाई दीयों की रोशनी, बाजारों में चाइना मेड दीपकों की भरमार

दर्शकों से ईटीवी भारत भी अपील

ईटीवी भारत भी आपसे यही अपील करता है कि जब भगवान श्री राम अयोध्या पहुंचे थे तो अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर खुशी जताई थी. क्यों न हम भी इस दिवाली चाइनीज सामान को न करते हुए मिट्टी के दीपक से घर को रोशन कर दिवाली मनाएं. जहां एक ओर हमारे कुम्हार समाज के लोगों को रोजगार मिलेगा और उनके घर भी ये दिवाली दोगुनी खुशियों वाली होगी.

राजसमंद. लंका विजयी करने के बाद प्रभु श्रीराम के आगमन पर मिट्टी के दीपक जलाकर उनका हर्षोल्लास के साथ स्वागत सत्कार किया था. लेकिन राम के अयोध्या लौटने पर शुरू हुई मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा वर्तमान परिदृश्य में विलुप्त होती जा रही है, जिसका मुख्य कारण चाइना से आने वाले प्लास्टिक के दीपक और जगमगाती लाइटों ने इनको खत्म करने का काम किया है.

राजसमंद से दिवाली पर स्पेशल रिपोर्ट

दिवाली पर्व को मनाने में खासतौर से मिट्टी के दीपों का खासा महत्व है. लेकिन कुछ सालों से धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध ने परंपरागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व लगभग खतम सा हो गया है. दीयों के स्थान पर लोग चाइना से आने वाले विशेष दीया की खरीदारी को महत्व देते हैं. इस कारण दीपक बनाने का काम धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है. कहा जाता है कि मिट्टी के दीपक से जहां घर रोशन होता है. वहीं दूसरी तरफ इस मिट्टी के दीपक बनाने वाले का भी गुजारा चलता है.

पढ़ें- अजमेर से स्पेशल रिपोर्ट: इलेक्ट्रॉनिक्स चकाचौंध में कहीं गुम हो रही है मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा

चाइनीज चकाचौंध के आगे कुम्हार बेबस

लेकिन वर्तमान समय में जहां चाइना से आने वाले सामान की चकाचौंध ने इस मिट्टी के दीपक को खत्म करने का काम कर रहा है. कुम्हार समाज के लोग बताते हैं कि मिट्टी के दीयों की बाजार में मांग कम होती जा रही है. पहले दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाकर दिवाली का पावन पर्व जगमगाती रोशनी में मनाया जाता था. लेकिन वर्तमान समय में महंगाई के चलते दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाना रस्म बनकर रह गया है. एक समय था जब घरों की मुंडेर पर दीपावली के दिन शाम होते ही दीयों की कतारें जगमग आने लगती थी. लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों की चलन मोमबत्ती और बिजली की लाइटों ने ले ली है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: राजस्थान का ऐसा गांव...जहां हर घर में बनते हैं मिट्टी के बर्तन

कुम्हार समाज पर संकट, दीयों की बिक्री में भारी गिरावट

इससे जहां एक और कुम्हार समाज के लोगों के व्यापार पर संकट मंडराने लगा है. वहीं दूसरी तरफ चाइनीज सामान की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है. वहीं दिवाली का पर्व देखते हुए राजसमंद जिला मुख्यालय पर भी कुम्हार समाज के लोगों ने दीए बनाने के काम में लगे हुए हैं. लेकिन उनका कहना है कि पिछले साल के मुकाबले दीयों की बिक्री में भारी मात्रा में गिरावट आया है, जिसका एकमात्र कारण लोगों का चाइनीज सामान का अधिक उपयोग करना है. इसके कारण दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों की मांग कम हुई है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मंदी की मार ने बुझाई दीयों की रोशनी, बाजारों में चाइना मेड दीपकों की भरमार

दर्शकों से ईटीवी भारत भी अपील

ईटीवी भारत भी आपसे यही अपील करता है कि जब भगवान श्री राम अयोध्या पहुंचे थे तो अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर खुशी जताई थी. क्यों न हम भी इस दिवाली चाइनीज सामान को न करते हुए मिट्टी के दीपक से घर को रोशन कर दिवाली मनाएं. जहां एक ओर हमारे कुम्हार समाज के लोगों को रोजगार मिलेगा और उनके घर भी ये दिवाली दोगुनी खुशियों वाली होगी.

Intro:राजसमंद- दिवाली शब्द सुनते ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आगमन पर जगमगाती अयोध्या का चित्र सामने आता है. कहा जाता है. कि भगवान श्री राम 14 वर्ष के बाद और राक्षसों का नाश करके लंका की विजय करने के बाद वह अयोध्या लौटे थे. तब अयोध्या वासियों ने उनका स्वागत करने के लिए दिवाली का पर्व मनाया था. कहा जाता है. कि उस युग में बिजली नहीं थी. जिसके कारण प्रभु श्रीराम के आगमन पर मिट्टी के दीपक जला कर उनका हर्षोल्लास के साथ स्वागत सत्कार किया था. लेकिन प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने पर शुरू हुई मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा वर्तमान परिदृश्य में विलुप्त होती जा रही है.
जिसका मुख्य कारण चाइना से आने वाली प्लास्टिक के दीपक और जगमगाती लाइटों ने इसको विलुप्त करने का काम किया.


Body:दिवाली पर्व को मनाने में खासतौर से मिट्टी के दीपों का खासा महत्व है. लेकिन कुछ वर्षों से धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध ने परंपरागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व लगभग खत्म सा हो गया है. दीयों के स्थान पर लोग चाइना से आने वाले विशेष दीया की खरीदारी को महत्व देते हैं.इस कारण दीपक बनाने का काम धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है. कहा जाता है.कि मिट्टी के दीपक से जहां घर रोशन होता है. तो वहीं दूसरी तरफ इस मिट्टी के दीपक बनाने वाले का गुजारा का भी गुजारा चलता है.
लेकिन वर्तमान समय में जहां चाइना से आने वाले सामान की चकाचौंध ने इस मिट्टी के दीपक को खत्म करने का काम कर रहा है.जिसके कारण कुम्हार समाज के लोग बताते हैं. कि मिट्टी के दीयों की बाजार में मांग कम होती जा रही है.
कहा जाता है. कि दीवाली के मौके पर दीयों का अलग ही महत्व होता है. मान्यता है. कि मिट्टी का दीपक जलाने से शौर्य और पराक्रम में वृद्धि होती है. और परिवार में सुख शांति आती है. दिवाली के मौके पर दियो का अलग ही महत्व होता है. मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से शौर्य और पराक्रम में वृद्धि होती है. और परिवार में सुख शांति आती है.लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों का चलन कम हो गया है. तेल की महंगाई ने लोगों को रुझान मोमबत्ती और बिजली के झालरों की ओर कर दिया है. कहा जाता है. कि मिट्टी के दीपक जलाने से घर में सुख शांति समृद्धि का वास होता है. मिट्टी को मंगल का वास होता है.मिट्टी को मंगल का ग्रह का प्रतीक माना जाता है. पहले दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाकर दिवाली का पावन पर्व जगमगाती रोशनी में मनाया जाता था. लेकिन वर्तमान समय में महंगाई के चलते दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाना रस्म बनकर रह गया है.एक समय था.जब घरों की मुंडेर पर दीपावली के दिन शाम होते ही दियो की कतारें जगमग आने लगती थी. लेकिन महंगाई के चलते अब दियो की चलन मोमबत्ती और बिजली की झालरों ने ले ली है.


Conclusion:इससे जहां एक और कुम्हार समाज के लोगों के व्यापार पर संकट मंडराने लगा है. क्योंकि जहां चाइनीज सामान की मांग दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है. वही दिवाली का पर्व देखते हुए राजसमंद जिला मुख्यालय पर भी कुम्हार समाज के लोगों ने दीए बनाने का काम में लगे हुए हैं. लेकिन उनका कहना है. कि पिछले वर्षों के मुकाबले दीयों की बिक्री में भारी मात्रा में गिरावट आया है. जिसका में एकमात्र कारण बताते हैं. लोगों का चाइनीस सामान पर अधिक उपयोग करना. जिसके कारण दीयों और अन्य मिट्टी के सामानों की मांग कम हुई है. हजारों वर्ष पुरानी परंपरा जो भारत में चली आ रही है. भगवान श्री राम की आगमन से लेकर अब तक दिए जलाने की परंपरा जो धीरे-धीरे अब कम होने लगी है. जिससे जहां एक और कुम्हार समाज के लोगों का घर परिवार चलाना दुर्लभ सा हो गया है. तो वहीं दूसरी तरफ मिट्टी के दीए की परंपरा भी दम तोड़ती हुई नजर आ रही है.
इसीलिए ईटीवी भारत भी आपसे यही अपील करता है. कि जब भगवान श्री राम अयोध्या पहुंचे थे. लंकापति रावण का वध करने के बाद अयोध्या लौटे थे. तो अयोध्या वासियों ने दीपक जला कर अपनी खुशी प्रकट की थी. क्यों ना हम फिर से एक बार चाइनीस सामान का उपयोग नहीं कर मिट्टी के दीपक की और इस दिवाली को फिर से मनाएं. जिससे जहां एक और हमारे कुम्हार समाज के लोगों को रोजगार मिल सके और उनके परिवार का पालन पोषण हो सके क्योंकि उनका इसी से ही जीवन यापन होता है.
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