राजसमंद. देशभर में सोमवार को रक्षाबंधन का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधेगी और दीर्घायु और उन्नति की कामना के साथ आशीर्वाद देंगी. लेकिन आज आपको राजस्थान के एक छोटे से गांव की अनोखी रक्षाबंधन की दास्तां से रूबरू करवाएंगे, जिसने प्रकृति को संवारने के लिए एक नया मॉडल अख्तियार किया.
पिपलांत्री, अब यह गांव नाम का मोहताज नहीं है. बेटी और कुदरत दोनों इस गांव के लोगों का अपना जज्बा और इज्जत है. इसके पीछे एक कहानी है, जो पिपलांत्री को देश-दुनिया के नक्शे पर लाने की वजह है. राजसमंद में जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर पिपलांत्री गांव के लोगों, विशेषकर यहां की महिलाओं का ही यह कमाल है कि अब पिपलांत्री की पहचान आदर्श ग्राम, निर्मल गांव, वृक्षग्राम, कन्या ग्राम और राखी ग्राम जैसे उपनामों से होती है. यहां की महिलाएं हर रक्षाबंधन पर पेड़ों को उत्साह से राखियां बांधती हैं. इसके लिए वह रक्षाबंधन आने से पहले ही तैयारी शुरू कर देती हैं.
रक्षाबंधन से पर्यावरण का संदेश
गांव ही नहीं आसपास की बेटियां पेड़-पौधों को राखी बांधकर रक्षाबंधन का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं और पर्यावरण संरक्षण को लेकर संदेश देती हैं. ईटीवी भारत की टीम भी रक्षाबंधन के इस खास पर्व पर पिपलांत्री पहुंची. रक्षाबंधन से 1 दिन पहले गांव और उसके आसपास की लड़कियां पेड़ों को अपना भाई मान कर राखी बांध रही हैं. इस दिन सुबह से ही गांव की बेटियां सज-धज कर और तैयार होकर एक थाली में कुमकुम, चावल और रक्षा सूत्र के साथ नारियल लेकर यहां पहुंचती हैं और पेड़ को रक्षासूत्र बांधती है.
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पिछले 15 सालों से चली आ रही इस परंपरा ने अब बड़ा रूप ले लिया है. दूर-दूर से बेटियां ढोल नगाड़ों के साथ पेड़-पौधों को रक्षासूत्र बांधने के लिए यहां पहुंची है, लेकिन इस बार कोरोना महामारी की वजह से किसी प्रकार का बड़ा आयोजन नहीं किया गया है.
2005 में शुरू हुई गांव के कामयाबी की कहानी
बता दें कि इस गांव के आसपास सफेद संगमरमर की खदानें हैं. इनमें होने वाले खनन और मलबे के कारण गांव की हरियाली लगभग खत्म हो गई थी. जलस्तर काफी नीचे चला गया था. वन्य जीव यहां से गायब होकर दूर चले गए थे. लेकिन फिर 2005 में गांव के लोगों ने श्याम सुंदर पालीवाल को सरपंच चुनाव जिताया और उन्होंने ग्रामीणों का साथ लेकर इस गांव की कायापलट कर दी.
बताया जाता है कि पूर्व सरपंच श्याम सुंदर पालीवाल की बेटी का अल्प आयु में निधन हो गया था. उन्हें इस बात का इतना दुख पहुंचा कि उन्होंने अपनी बेटी की याद में एक पेड़ लगाया और उसे बड़ा किया. तभी श्यामसुंदर के मन में विचार आया कि क्यों ना पूरे गांव के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाए. इसे देखते हुए उन्होंने हर घर में लड़की पैदा होने पर 111 पौधे लगवाने और किसी व्यक्ति के घर में मृत्यु होने पर उसकी याद में परिवार के लोग 11 पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की.
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गांव में पेड़ लगाने की यह मुहिम धीरे-धीरे आगे बढ़ी और गांव में रंग लाती हुई नजर आई. इससे गांव हरा भरा बनने लगा. इस गांव में जो भी बच्ची किसी के भी घर में जन्म लेती है, उसके नाम से पेड़ लगवाए जाते हैं और उन पेड़ों का नाम लड़की के नाम से मिलता-जुलता रखा जाता है.
लड़कियां भाई के रूप में पेड़ों को बांधती हैं राखी
वहीं, लड़की इन पेड़ों पर रक्षाबंधन के अवसर पर अपने भाई के रूप में राखी बांधती है. प्रकृति को बचाने और संवारने में इस गांव की भूमिका अद्भुत रही है. यही कारण है कि डेनमार्क सरकार ने इस गांव को अपनी स्कूल सिलेबस में भी शामिल किया. यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज खानापूर्ति नहीं बल्कि पेड़ों से रिश्ता बनाया गया है.
पिपलांत्री सरपंच अनीता पालीवाल ने बताया कि हमारे गांव में बेटियों को बोझ नहीं बल्कि बेटियों को लक्ष्मी स्वरूप माना जाता है. हर साल रक्षाबंधन से 1 दिन पहले गांव की बेटियां इन पेड़ों को राखी बांधती हैं और प्रकृति को बचाने और संवारने के लिए पूरी दुनिया को एक संदेश देती है. पालीवाल ने बताया कि जिस प्रकार से प्रकृति धीरे-धीरे अवरुद्ध होती जा रही है, उसे संवारने में पिपलांत्री गांव से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
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इसको लेकर गांव की बेटियों का कहना है कि वह अपने भाई की तरह इन पेड़ों की रक्षा करती हैं, जिसे लोगों को स्वस्थ आबोहवा में जीवन यापन करने में दिक्कत ना हो. उनका कहना है कि प्रकृति हमें सदैव ऊर्जावान बनाती है.