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स्पेशल: खुले आसमान के नीचे बीत रही रैन...बसेरे का नहीं है इंतजाम - लोग खुले में रात गुजार रहे

राजसमंद में इस कड़ाके की ठंड में भी गरीब और बेघर लोग खुले में रात बिताने पर मजबूर हैं. इसके बाद भी शहर के रैनबसेरे में इन्हें रहने नहीं दिया जाता. देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

राजसमंद न्यूज, rajsamand news, people spending night in open, लोग खुले में रात गुजार रहे
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Published : Jan 2, 2020, 1:15 PM IST

राजसमंद. सरकार अपनी बड़ी-बड़ी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती है. लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी होती हैं, जो इन योजनाओं की हकीकत सामने ले आती है. आज भी हमारे समाज का एक तबका ऐसा है, जो मूलभूत संसाधनों के बिना ही जीवन गुजारने पर मजबूर है. राजसमंद में भी समाज का एक हिस्सा आज भी पीढ़ियों से बेघर है. कूड़ा-कचरा चुन कर अपना और अपने परिवार का पेट भर रहे हैं. गर्मियां तो कट जाती है, लेकिन इस दिसंबर की सर्दी में खुले आसमान के नीचे सोना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में सामने आती है सरकारी रैनबसेरों की सच्चाई, जो गरीब और बेसहारा लोगों के लिए बनी है. लेकिन इन्हें उसमें रहने नहीं दिया जाता है.

खुले में रात गुजारने की मजबूरी

राजसमंद के द्वारकेश सब्जी मंडी की पार्किंग में लगभग 20 लोग इस भीषण कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. लेकिन इनको लेकर प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद रखी है. ये लोग सुबह से दिन भर तक कूड़ा बीनते हैं और शाम को यहां खाना बनाकर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं. रैनबसेरों से इन्हें भगा दिया जाता है.

ये पढ़ेंः नवजातों को 'निगलता' कोटा का जेके लोन अस्पताल, दो दिन में 9 और बच्चों की मौत ; आंकड़ा पहुंचा 100

जब ईटीवी भारत ने इन लोगों से बातचीत की तो उसमें रैनबसेरों का एक अलग पहलू सामने आया. आप लोग रैनबसेरों में क्यों नहीं रहते? इस सवाल पर उनका जवाब था, कि रैनबसेरों में 10-15 दिन से ज्यादा रहने नहीं देते हैं. कुछ दिन रहने के बाद रैनबसेरे के प्रबंधक उन्हें वहां से भगा देते हैं. साथ ही उनके साथ बदसलूकी करते हैं. अगर वे लोग इसका विरोध करें तो उन्हें मारने पर उतारू हो जाते हैं. इसी कारण ये लोग हड्डियां जमा देने वाली ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर हैं.

कुछ मदद करते हैं, कुछ दुत्कार देते हैं

जब ये लोग किसी के पास मदद के लिए जाते हैं तो ज्यादातर लोग इनकी मदद करने से इनकार कर देते है. ऐसे में किसी तरह दिन में कूड़ा-कचरा बीन कर ये अपना गुजारा करते हैं. वहीं कुछ लोग इनके हालात पर तरस खाकर इनकी मदद के लिए आगे आते हैं. कभी कोई खाना दे जाता है तो कोई बच्चों के लिए कपड़े और कंबल दे जाते हैं.

ये पढ़ेंः Exclusive: भंवरी देवी के केस से अस्तित्व में आई विशाखा गाइडलाइन, लेकिन न्याय की उम्मीद आज भी अधूरी

कूड़ा-पन्नी बीनकर भरते हैं पेट

इनके पास कोई काम नहीं होने से अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये लोग दिनभर कूड़ा बीनने का काम करते है. वहीं अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी ये काम सिखाते हैं. ये लोग अपना जीवन निर्वाह करने के लिए ऐसा करते हैं.

प्रशासन की ओर से कोई सहायता नही

एक ओर पूरे प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. वहीं राजसमंद का तापमान भी रात के वक्त 1-2 डिग्री तक पहुंच रहा है. इतनी तेज सर्दी में भी ये लोग पतले कंबलों और पुराने कपड़ों के सहारे अपनी रातें काट रहें है. वहीं नगर प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

रैन बसेरों को लेकर राजसमंद नगर परिषद कई बातें करता है. लेकिन उन रैन बसेरों में ऐसे लोगों को अभी तक आसरा नहीं मिल पाया. वहीं सरकार और प्रशासन भी इनके तरफ कोई ध्यान नहीं देता. साल 2020 के इस भारत में भी गरीब और बेसहारा लोग इस ठिठूरते ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर है.

राजसमंद. सरकार अपनी बड़ी-बड़ी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती है. लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी होती हैं, जो इन योजनाओं की हकीकत सामने ले आती है. आज भी हमारे समाज का एक तबका ऐसा है, जो मूलभूत संसाधनों के बिना ही जीवन गुजारने पर मजबूर है. राजसमंद में भी समाज का एक हिस्सा आज भी पीढ़ियों से बेघर है. कूड़ा-कचरा चुन कर अपना और अपने परिवार का पेट भर रहे हैं. गर्मियां तो कट जाती है, लेकिन इस दिसंबर की सर्दी में खुले आसमान के नीचे सोना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में सामने आती है सरकारी रैनबसेरों की सच्चाई, जो गरीब और बेसहारा लोगों के लिए बनी है. लेकिन इन्हें उसमें रहने नहीं दिया जाता है.

खुले में रात गुजारने की मजबूरी

राजसमंद के द्वारकेश सब्जी मंडी की पार्किंग में लगभग 20 लोग इस भीषण कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. लेकिन इनको लेकर प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद रखी है. ये लोग सुबह से दिन भर तक कूड़ा बीनते हैं और शाम को यहां खाना बनाकर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं. रैनबसेरों से इन्हें भगा दिया जाता है.

ये पढ़ेंः नवजातों को 'निगलता' कोटा का जेके लोन अस्पताल, दो दिन में 9 और बच्चों की मौत ; आंकड़ा पहुंचा 100

जब ईटीवी भारत ने इन लोगों से बातचीत की तो उसमें रैनबसेरों का एक अलग पहलू सामने आया. आप लोग रैनबसेरों में क्यों नहीं रहते? इस सवाल पर उनका जवाब था, कि रैनबसेरों में 10-15 दिन से ज्यादा रहने नहीं देते हैं. कुछ दिन रहने के बाद रैनबसेरे के प्रबंधक उन्हें वहां से भगा देते हैं. साथ ही उनके साथ बदसलूकी करते हैं. अगर वे लोग इसका विरोध करें तो उन्हें मारने पर उतारू हो जाते हैं. इसी कारण ये लोग हड्डियां जमा देने वाली ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर हैं.

कुछ मदद करते हैं, कुछ दुत्कार देते हैं

जब ये लोग किसी के पास मदद के लिए जाते हैं तो ज्यादातर लोग इनकी मदद करने से इनकार कर देते है. ऐसे में किसी तरह दिन में कूड़ा-कचरा बीन कर ये अपना गुजारा करते हैं. वहीं कुछ लोग इनके हालात पर तरस खाकर इनकी मदद के लिए आगे आते हैं. कभी कोई खाना दे जाता है तो कोई बच्चों के लिए कपड़े और कंबल दे जाते हैं.

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कूड़ा-पन्नी बीनकर भरते हैं पेट

इनके पास कोई काम नहीं होने से अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये लोग दिनभर कूड़ा बीनने का काम करते है. वहीं अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी ये काम सिखाते हैं. ये लोग अपना जीवन निर्वाह करने के लिए ऐसा करते हैं.

प्रशासन की ओर से कोई सहायता नही

एक ओर पूरे प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. वहीं राजसमंद का तापमान भी रात के वक्त 1-2 डिग्री तक पहुंच रहा है. इतनी तेज सर्दी में भी ये लोग पतले कंबलों और पुराने कपड़ों के सहारे अपनी रातें काट रहें है. वहीं नगर प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

रैन बसेरों को लेकर राजसमंद नगर परिषद कई बातें करता है. लेकिन उन रैन बसेरों में ऐसे लोगों को अभी तक आसरा नहीं मिल पाया. वहीं सरकार और प्रशासन भी इनके तरफ कोई ध्यान नहीं देता. साल 2020 के इस भारत में भी गरीब और बेसहारा लोग इस ठिठूरते ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर है.

Intro:राजसमंद- एक तरफ जहां दुनिया ने नए वर्ष की रंगरलियां मे डूबा हुआ था. युवा जो देश के भविष्य होते वो पार्टियां मना रहे थे. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं. जो इस कड़ाके के ठंड में खुले आसमान तले सोने को विवश दिख रहे थे. जी हां राजस्थान के राजसमंद जिले के श्री द्वारकेश सब्जी मंडी के पीछे बने वाहन पार्किंग में करीब दो दर्जन भर लोग खुले आसमान तले सोने को मजबूर दिखाई दिए.जिनमें छोटे-छोटे बच्चे महिलाएं भी शामिल है. सरकार भले ही बड़े बड़े वादे कर ले नए भारत बनाने का सपना दिखा ले. लेकिन सच यह समाज में एक तबका ऐसा भी है जो मूलभूत समस्याओं के लिए तरस रहे.


Body:सरकारी सिर्फ बड़ी-बड़ी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती है.लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी होती है. जिनके कारण सरकार की सभी योजनाएं धराशाई दिखाई देती है. द्वारकेश सब्जी मंडी की पार्किंग में करीब दो दर्जन भर लोग इस भीषण कड़ाके की ठंड में खुले आसमान तले सोने को मजबूर है. जबकि प्रशासन के बाशिंदों की आंखें अभी तक भी मंद दिखाई देती है. जहां सुबह से दिन भर तक कूड़ा बीनने वाले यह लोग देर शाम को अपने स्थान पर लौटते हैं. वही खाना बनाकर देर शाम को सो जाते हैं.छोटे-छोटे बच्चे खुले आसमान तले खाना खाते हुए ईटीवी भारत के कैमरे में दिखाई दे सकते हैं. रात करीब 11 बजे ईटीवी भारत की टीम जानने के लिए निकली तो इधर से सामने निकल कर आया. मंगलवार को जहां पूरा देश में नए साल का जश्न था.


Conclusion:तो देश के भविष्य नए होते वर्ष में आसमान तले नए सवेरे की आस में सोए मिले. यह लोग इस भीषण कड़ाके की ठंड में दुबली पतली कंबल के साथ रात काटते हुए दिखाई दिए. मंगलवार को जहां तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुंच चुका था. लेकिन उसके बावजूद भी प्रशासन के आला अधिकारी की नींद अभी तक नहीं टूटी.जहां रैन बसेरों को लेकर राजसमंद नगर परिषद कई बातें करता है. लेकिन उन रैन बसेरों में ऐसे लोगों को अभी तक आसरा नहीं मिल पाया. जहां सूबे के सीएम गहलोत रेन बसेरों में कंबल बांट रहे थे. रात को तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस हार्ड कप कपा देने वाली सर्दी में खुद को कोस रहे थे.
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