राजसमंद. सरकार अपनी बड़ी-बड़ी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती है. लेकिन कुछ तस्वीरें ऐसी भी होती हैं, जो इन योजनाओं की हकीकत सामने ले आती है. आज भी हमारे समाज का एक तबका ऐसा है, जो मूलभूत संसाधनों के बिना ही जीवन गुजारने पर मजबूर है. राजसमंद में भी समाज का एक हिस्सा आज भी पीढ़ियों से बेघर है. कूड़ा-कचरा चुन कर अपना और अपने परिवार का पेट भर रहे हैं. गर्मियां तो कट जाती है, लेकिन इस दिसंबर की सर्दी में खुले आसमान के नीचे सोना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में सामने आती है सरकारी रैनबसेरों की सच्चाई, जो गरीब और बेसहारा लोगों के लिए बनी है. लेकिन इन्हें उसमें रहने नहीं दिया जाता है.
राजसमंद के द्वारकेश सब्जी मंडी की पार्किंग में लगभग 20 लोग इस भीषण कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है. लेकिन इनको लेकर प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद रखी है. ये लोग सुबह से दिन भर तक कूड़ा बीनते हैं और शाम को यहां खाना बनाकर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं. रैनबसेरों से इन्हें भगा दिया जाता है.
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जब ईटीवी भारत ने इन लोगों से बातचीत की तो उसमें रैनबसेरों का एक अलग पहलू सामने आया. आप लोग रैनबसेरों में क्यों नहीं रहते? इस सवाल पर उनका जवाब था, कि रैनबसेरों में 10-15 दिन से ज्यादा रहने नहीं देते हैं. कुछ दिन रहने के बाद रैनबसेरे के प्रबंधक उन्हें वहां से भगा देते हैं. साथ ही उनके साथ बदसलूकी करते हैं. अगर वे लोग इसका विरोध करें तो उन्हें मारने पर उतारू हो जाते हैं. इसी कारण ये लोग हड्डियां जमा देने वाली ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर हैं.
कुछ मदद करते हैं, कुछ दुत्कार देते हैं
जब ये लोग किसी के पास मदद के लिए जाते हैं तो ज्यादातर लोग इनकी मदद करने से इनकार कर देते है. ऐसे में किसी तरह दिन में कूड़ा-कचरा बीन कर ये अपना गुजारा करते हैं. वहीं कुछ लोग इनके हालात पर तरस खाकर इनकी मदद के लिए आगे आते हैं. कभी कोई खाना दे जाता है तो कोई बच्चों के लिए कपड़े और कंबल दे जाते हैं.
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कूड़ा-पन्नी बीनकर भरते हैं पेट
इनके पास कोई काम नहीं होने से अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए ये लोग दिनभर कूड़ा बीनने का काम करते है. वहीं अपने छोटे-छोटे बच्चों को भी ये काम सिखाते हैं. ये लोग अपना जीवन निर्वाह करने के लिए ऐसा करते हैं.
प्रशासन की ओर से कोई सहायता नही
एक ओर पूरे प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. वहीं राजसमंद का तापमान भी रात के वक्त 1-2 डिग्री तक पहुंच रहा है. इतनी तेज सर्दी में भी ये लोग पतले कंबलों और पुराने कपड़ों के सहारे अपनी रातें काट रहें है. वहीं नगर प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.
रैन बसेरों को लेकर राजसमंद नगर परिषद कई बातें करता है. लेकिन उन रैन बसेरों में ऐसे लोगों को अभी तक आसरा नहीं मिल पाया. वहीं सरकार और प्रशासन भी इनके तरफ कोई ध्यान नहीं देता. साल 2020 के इस भारत में भी गरीब और बेसहारा लोग इस ठिठूरते ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने पर मजबूर है.