राजसमंद. ईटीवी भारत ने राजसमंद की कई स्कूलों में पढ़ने वाले कुछ अभिभावकों से बात की. स्कूलों बसों के रियलिटी चेक के बाद ये हमारा दूसरा अभियान था. जिसमें हमें जानना था कि क्या निजी स्कूल प्रशासन बच्चों की पढ़ाई के नाम पर परिजनों पर किसी तरह का दबाव बनाते है. या फिर बच्चों को सुविधा के साथ किस प्रकार का किराया वसूला जाता है.
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जब हमने कांकरोली निवासी गुंजन पालीवाल ने बात की तो उन्होंने बताया कि प्राइवेट स्कूलों में सुविधाएं तो ठीक है. लेकिन स्कूल बसों का हर साल किराया बढ़ा देना और एडमिशन के समय अन्य शुल्क लेना यह सब गलत है. इसके लिए राज्य सरकार को ठोस नियम बनानी चाहिए कि प्राइवेट स्कूल भी एक ही शुल्क ले. उन्होंने बताया कि मेरा बच्चा प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है. जिसकी दूरी मात्र 3 किलोमीटर है. उसका किराया भी उतना ही है. जितना कि 10 किलोमीटर वाले का है. कहने का मतलब प्राइवेट स्कूलों ने एक योजनाबद्ध तरीके से स्कूलों की और बाल वाहिनी बसों की फीस निर्धारित कर रखी है. यह सही नियम नहीं है.
वहीं एक अभिभावक मुकेश जोशी ने बताया कि स्कूलों में आए दिन अलग अलग कार्यक्रम तो होते हैं. लेकिन उनकी एवज में कई प्रकार के शुल्क भी लगा दी जाते हैं. जिससे हम आम व्यक्तियों की जेब पर भारी खर्च आता है. वहीं एक अभिभावक मोहम्मद आजाद ने बताया कि बस की सुविधा तो ठीक है. लेकिन किराया ज्यादा है.
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आपको बता दें की इससे पहले ईटीवी भारत में राजसमंद जिले की प्रमुख स्कूलों का रियलिटी टेस्ट किया था. जिसमें स्कूलों की बाल वाहिनी बसों की हालत तो ठीक पाई गई थी. लेकिन जिस प्रकार से बच्चों के परिवार के सदस्य स्कूल की बढ़ती फीस को लेकर चिंता जता रहे हैं. यह कहीं ना कहीं चिंता का विषय है. इस ओर सरकार को भी ध्यान देना चाहिए.