जयपुर. हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है, ताकि भारत में अधिकांश लड़कियों के सामने आने वाली असमानताओं, शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल और बालिकाओं की सुरक्षा आदि के महत्त्व को उजागर किया जा सके. राजस्थान में बालिकाओं को लेकर सरकार की ओर से समय समय पर योजनाओं ले साथ कार्य किये जा रहे है, लेकिन बावजूद इनके अभी आंकड़े राहत भरे नहीं है. इस दिन की सार्थकता को लेकर ETV भारत ने सामाजिक कार्यकर्ता मीता सिंह से खास बातचीत की. मीता सिंह ने कहा कि समाज में बालिकाओं के प्रति सोच में बदलाव आ चुका है, लेकिन आंकड़े अब भी चिंताजनक हैं. उनका मानना है कि बालिका दिवस तभी सार्थक होगा, जब बालिकाओं को पुरुष मानसिकता से ऊपर के अधिकार प्राप्त होंगे.
समस्याओं का समाधान जरूरी : सामाजिक कार्यकर्ता मीता सिंह कहती है कि राजस्थान की महिलाएं अपने शौर्य त्याग और बलिदान के लिए अग्रणी रही हैं. महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खेत-खलिहान और कारखानों में काम किया है. लेकिन बालिकाओं के संदर्भ में कई समस्याएं आज भी जस की तस बनी हुई हैं, जिनमें कन्या वध, बाल विवाह, और पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथाएं शामिल हैं. उन्होंने बताया कि बालिकाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या शिक्षा है. राजस्थान में साक्षरता दर लगभग 52% है, और 33.4% बालिकाएं कक्षा 10 के बाद पढ़ाई जारी नहीं रख पातीं. विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाओं की शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है. मीता सिंह ने सरकार से मांग की कि स्कूलों को बंद करने की बजाय उनकी गुणवत्ता में सुधार किया जाए. आंकड़े बताते हैं कि जैसलमेर, जालौर, झालावाड़ जैसे शहरों में बालिकाओं का शिक्षा का औसत स्तर 18 से लेकर 22 फीसदी तक है, हालांकि जयपुर, झुंझुनू, कोटा जैसे कुछ शहरों में साक्षरता दर 44 से 48 फ़ीसदी के बीच में है. मीता सिंह कहती की एक तरफ शिक्षा को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाने की जरूरत है, वहीं मौजूदा सरकार 450 स्कूलों के ताले लगा दिए. इसमें 190 प्राथमिक और 260 माध्यमिक शिक्षा के स्कूल थे. अब जब स्कूल ही बंद होगी तो बालिकाएं शिक्षा कैसे प्राप्त करेगी ? सरकारों को स्कूल में बंद करने की जगह स्कूलों की गुणवत्ता के सुधार पर ध्यान देना चाहिए.
बालिका सेक्स रेशियो में सुधार: मीता सिंह ने बताया कि बालिका सेक्स रेशियो में कुछ सुधार हुआ है. NFS-5 के आंकड़ों के मुताबिक, एक हजार लड़कों पर 929 लड़कियों का जन्म हो रहा है, जो पहले के मुकाबले बेहतर है. लांकि, बाल विवाह की समस्या अभी भी गंभीर बनी हुई है.राजस्थान के कई जिलों में बाल विवाह की दर काफी अधिक हैं जैसे कि चित्तौड़, भीलवाड़ा, और झालावाड़ में यह दर 40% से ऊपर है. बच्चियों के बाल विवाह में सुधार भी हुआ है, पाली 11.08, कोटा में 13.21, गंगानगर में 13.6 फीसदी तक ही रह गया.
स्वास्थ्य पर सुधार की जरूरत: स्वास्थ्य के मुद्दे पर बात करते हुए मीता सिंह ने कहा कि राज्य में मेडिकल सुविधाओं के बावजूद आज भी बच्चियां एनीमिया की शिकार हो रही है. बालिकाओं के साथ हो रही असमानता उनमें पोषण की कमी के आंकड़े बहुत चिंताजनक है. इसके साथ खानपान के असंतुलन के बीच बालिकाएं एनीमिया की शिकार हो रही है. 30 फीसदी बालिकाएं एनीमिया की शिकार हैं. इसके अलावा, 58% बालिकाएं औसत से कम लंबाई और वजन वाली हैं. उन्होंने बालिकाओं के पोषण में सुधार और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता जताई. मीता सिंह ने समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता को समाप्त करने की बात की. उनका कहना था कि बालिकाओं के समग्र विकास के लिए एक मजबूत कानून, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और शैक्षिक जागरूकता जरूरी है.