राजसमंद. नाथद्वारा स्थित पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की प्रधानपीठ श्रीनाथजी मंदिर में 12 अगस्त को जन्माष्टमी और 13 अगस्त को नंद महोत्सव मनाया जाएगा. लेकिन, 348 सालों में पहली बार मंदिर में श्रीनाथजी के दर्शन आम दर्शनार्थियों के लिए बंद रहेंगे. ऐसे में इस बार बाल गोपाल का जन्म का उत्सव फीका पड़ गया है.
कोरोना के कारण इस साल हर त्योहार फीका जा रहा है. वहीं कोरोना के संक्रमण को देखते हुए श्रीनाथजी मंदिर को तिकायत राकेश महाराज श्री की आज्ञा से पिछली 17 मार्च से ही आम दर्शनथियों के लिए बंद कर दिया गया था. हालांकि, पुष्टिमार्गीय परंपरानुसार नित्य सेवा क्रम नहीं रुकता, इस कारण कुछ आवश्यक सेवा कार्य वाले सेवक भगवान की अष्टयाम सेवा प्रणालिका को चला रहे हैं. भले ही मंदिर में श्रद्धालुओं की आवाजाही नहीं है लेकिन मगर फिर भी श्रीनाथजी की सेवा उसी रूप से जारी है, जैसी सेवा आम दिनों में की जाती है.
21 तोपों की दी जाएगी सलामी
बता दें कि मंदिर में जन्माष्टमी पर 12 अगस्त को सुबह 4:45 बजे पंचामृत स्नान और मंगला आरती के दर्शन होंगे. जिसके बाद प्रभु को दिन में 2:15 बजे राजभोग लगाया जाएगा. वहीं प्रतिवर्ष की भांति जागरण के दर्शन 9 बजे से अर्धरात्रि 12 बजे तक होंगे. रात्रि 12 बजे गोविंद लला के जन्म की खुशियां स्थानीय रिसाला चौक में 21 तोपो की सलामी दे कर मनाई जाएगी. इसकी तैयारियां की जा रही है लेकिन इस बार श्रद्धालुओं को प्रभु के दर्शनों का विरह सहन करना पड़ेगा.
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मुख्य निष्पादन अधिकारी जितेंद्र कुमार ओझा ने बताया कि श्रीनाथजी के नित्य सेवा चालू है, उत्सव को भी उसी रूप में मनाया जाएगा, जैसे पहले बनाया जाता रहा है. मंदिर में साज सज्जा की जाएगी, लाइटिंग और डेकोरेशन किया जाएगा पर इस बार कोरोना सिचुएशन के कारण किसी को दर्शन नहीं कराए जाएंगे. वहीं संध्या समय निकलने वाली शोभायात्रा भी स्थगित कर दी गई है लेकिन परंपरानुसार 21 तोपों की सलामी रात्रि 12 बजे दी जाएगी. इस कार्यक्रम में ज्यादा लोग इकट्ठा न हो, इसको लेकर भी प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां की जा रही है.
नहीं खेल पाएंगे श्रद्धालु दूध-दही से होली
साथ ही ओझा ने बताया कि अगले दिन 13 अगस्त को सुबह 7:30 से 11:00 बजे तक नंदउत्सव मनाया जाएगा. हर साल इस उत्सव की खुशी में ग्वाल बाल दूध-दही से होली खेल कर मानते हैं और मंदिर में दर्शन करने आने वाले सभी लोगों पर हल्दी केसर युक्त दूध-दही का छिड़काव करते है लेकिन इस बार केवल मंदिर में सेवा करने वाले लोग ही इस परंपरा को प्रतीकात्मक रूप से मनाएंगे.
बता दें कि श्रीनाथजी के दर्शन करने देश के कोने-कोने से और खासकर गुजरात से सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन मंदिर आते थे. आम दिनों में करीब 4 से 5 हजार लोग भगवान के दर्शन करने आते थे लेकिन जन्माष्ठमी पर लगभग सत्तर हजार से एक लाख तक श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता था लेकिन इस बार मंदिर परिसर सूना पड़ा है. पिछले 348 सालों के इतिहास में पहली बार आम श्रद्धालुओं के लिए इतने दिनों तक श्रीनाथजी के दर्शन बंद किए गए हैं.
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मंदिर के अधिकारी सुधाकर शास्त्री के मुताबिक श्रीनाथजी को मेवाड़ पधारे 348 साल हुए हैं. इतने सालों में यह पहली बार है जब श्रीनाथजी के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए 145 दिनों तक बंद रहे हो. मंदिर के अधिकारी ने बताया कि संक्रमण के खतरे और सरकार की गाइडलाइंस को देखते हुए तिलकायत महाराज की आज्ञा से दर्शनथियों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है.
पहले की तरह ही मंदिर में पूजा-पाठ होगा
मंदिर के अधिकारी ने जानकारी दी कि जन्माष्ठमी पर पूर्व की भांति ही लाड़ लड़ाए जाएंगे. कीर्तनकार के माध्यम से कृष्ण लला के जन्मोत्सव पर कीर्तन का गान किया जाएगा. प्रभु को केसरिया वस्त्र और श्रृंगार से सुशोभित किया जाएगा और तरह-तरह के भोग भी अरोगाए जाएंगे. साढ़े तीन सौ वर्ष पुरानी परंपरानुसार रात्रि 12 बजे 21 तोपों की सलामी दी जाएगी और अगले दिन नंदमहोत्सव पर हल्दी केसर युक्त दही का छिड़काव कर होली खेली जाएगी.