जैतारण (पाली). जिले के नानणा ग्राम पंचायत के सोड़पुरा राजस्व ग्राम में मृत्यु भोज को लेकर एक बहुत ही अनुकरणीय उदाहरण देखने को मिला. तीनों भाइयों ने अपनी मां के इंतकाल के बाद मृत्यु भोज न करने का निर्णय लिया. मृत्युभोज में खर्च होने वाली राशि को शिक्षण संस्थानों और धार्मिक कार्य के लिए खर्च करने की बात कही.
सोडपुरा के पछोर वाले बाडिया में मरहूम हवलदार सायर काठात के पुत्र कर्नल सलीम काठात, साबिर काठात और इकबाल काठात ने मिलकर अपनी मां मरहूम हज्जन महफूल काठात का फातिहा नहीं करने का एलान करके एक नई इबारत लिखी है.
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चीता मेहरात (काठात) समाज में बड़े स्तर पर फातिहा करना एक आम रिवाज है, जिसके अंतर्गत औरत की मौत होने पर नौवें दिन और आदमी की मौत होने पर दसवें दिन 5 हजार से 10 हजार तक लोगों का सामूहिक भोज रखा जाता है. कई सालों से राजस्थान चीता मेहरात (काठात) महासभा इस बुराई को रोकने के लिए प्रयासरत है. कर्नल पद से सेवानिवृत्त सलीम काठात चार बार सरपंच रहे है. इकबाल काठात उनके परिवार में पढें लिखे है. उन्होंने ही मृत्युभोज नहीं करने का संकल्प लिया. जिसके बाद काठात समाज में यह एलान किया गया कि हम हमारी बुजुर्ग मां का फातेहा नहीं करके उक्त खर्च होने वाली राशि धार्मिक कार्यों में लगाएगें.
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इसी कड़ी में उन्होंने कहा कि नानणा में पड़ने वाली 6 मस्जिदों- (तालाब वाला बाडिया, काला नाडा, नानणा खास, श्यामपुरा, खोखरी, नौकडी) में पांच-पांच हजार और शिक्षा के लिए शहीद मोहन काठात राजकीय माध्यमिक विद्यालय सोडपुरा में 10 हजार, शहीद पूरण काठात राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय नानणा में 10 हजार देंगे. जिसके बाद हाथों हाथ वो राशि दे दी गई.
बता दें कि पाली, अजमेर, राजसमंद, भीलवाड़ा में एक काठात मेहरात जाति बसती है, जो पिछड़ा वर्ग में आती है. मगरा क्षेत्र में बसी इस जाति के लोग खेती करते हैं, कुछ भारतीय सेना में भी तैनात हैं. देश की रक्षा में काठात समाज के कई सैनिक शहीद भी हो चुके है.
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इस अवसर पर सैकड़ों लोगों ने इस फैसले की सराहाना की. साथ ही सब ने प्रण किया कि ऐसे ही हम लोग भी सामूहिक भोज में पैसा खर्च नहीं करके सामाजिक कार्यों में खर्च करेंगे. तो यह पिछड़े हुए इस काठात समाज की तरक्की की तरफ बढ़ा एक लाजवाब कदम है जो आगे जाकर मील का पत्थर साबित होगा.