पाली. वन्य जीव प्रेमियों को एक बार फिर 50 साल बाद कुंभलगढ़ के अभ्यारण में बाघ की दहाड़ सुनाई देगी. वन विभाग ने कुंभलगढ़ और पाली के बीच के जंगल को बाघों के लिए काफी सुरक्षित और उपयुक्त माना है. इस प्रोजेक्ट को अशोक गहलोत की हरी झंडी मिलने के बाद इस पर वन विभाग ने काम करना शुरू कर दिया है.
कुंभलगढ़ में जल्द नजर आएंगे बाघ
कुंभलगढ़ और पाली के जंगलों में 250 साल पहले तक बाघों की संख्या काफी थी. लेकिन, धीरे धीरे इस क्षेत्र से बाघ खत्म हो गए. वन विभाग एक बार फिर से इस क्षेत्र में बाघों की चहल पहल करने के लिए यह पर बाघ छोड़ने की तेरी कर रहा है. वह विभाग ने यह बाघ छोड़ने के लिए अपना पहला प्रस्ताव काफी पहले सरकार को भेज दिया था. लेकिन, उस प्रस्ताव के कुछ संशोधन करने के लिए फिर से वन विभाग को भेजा. अब अव विभाग ने यहां पर बाघों को विस्थापित करने की तैयारी पूरी कर ली हैं. जल्द ही पाली से जुड़े इस जंगल मे दो मादा व एक नर बाघ की दहाड़ सुनाई देगी.
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25 वर्ग किमी क्षेत्र बढ़ाया गया
इस प्रस्ताव में बाघ संरक्षित क्षेत्र में 355 वर्ग किमी एरिया को बढ़ाकर 380 किमी किया गया है. नए प्रस्ताव में करीब 25 वर्ग किमी क्षेत्र बढ़ाया गया है. बाघ संरक्षित क्षेत्र दिवेर की नाल से लगाकर मांगा की माल से पाली के लाटाडा तक की सीमा तय की गई है. एरिया करीब 60 किलोमीटर लंबा और 6 से 10 किलो मीटर चौड़ाई में होगा. नए प्रस्ताव में 2 किमी क्षेत्र में 75 और 5 किमी की क्षेत्र में 85 गांव आते हैं.
बता दें कि इसमें 1 किमी की दूरी में सीमा से लगते 35 गांव शामिल है. पाली सीमा में लगते सेवंत्री, उमरवास, रूपनगर, बागोल, कोट, पनोता, सुमेर, गांथी, लापी, मण्डीगढ़ और राजपुरा शामिल हैं. इसके अलावा अभ्यारण में मौजूद सहकारी जिलों की संख्या का आंकड़ा भी मांगा गया है.