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ग्रामीणों की कोरोना से जंग: 30 हजार की आबादी वाले जायल में 850 प्रवासी लौटे, एक भी पॉजिटिव केस नहीं

लॉकडाउन में मिली रियायत के बाद शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है. इस बीच ईटीवी भारत की टीम ने नागौर जिले की जायल ग्राम पंचायत के हालात जाने. इस दौरान अधिकांश लोग कोरोना गाइडलाइन की पालना करते दिखे, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी दिखे जो बिना मास्क पहने बाहर घूम रहे थे. कुछ लोगों की बेपरवाही कहीं पूरे गांव की मेहनत पर पानी नहीं फेर दे. देखिए खास रिपोर्ट...

report of Jayal village, Corona in Nagaur
जायल ग्राम पंचायत की ग्राउंड रिपोर्ट
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Published : Jun 20, 2020, 10:44 PM IST

नागौर. लॉकडाउन में छूट के बाद शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी जिंदगी सरपट दौड़ने लगी है. जिला प्रशासन लगातार चेता रहा है कि लॉकडाउन की सख्ती के बीच अस्त-व्यस्त हुआ जनजीवन फिर से पटरी पर लौटे, इसी मकसद से छूट दी गई है. साथ ही कोरोना संबंधी गाइडलाइन की हर हाल में पालना होनी चाहिए. ग्रामीण इलाकों में आमजन इस बात को लेकर कितने जागरूक हैं और सरकारी निर्देशों की कितनी पालना हो रही है, इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम शनिवार को नागौर जिले के जायल गांव पहुंची.

जायल ग्राम पंचायत की ग्राउंड रिपोर्ट

गांव में अधिकांश लोग कोरोना संबंधी निर्देशों की पालना करते दिखे. करीब 30 हजार की आबादी वाली जायल ग्राम पंचायत में कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए 19 मार्च से ही आमजन सतर्क हो गया था. हालांकि, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया था. लेकिन नागौर जिले के बाकी शहरों के साथ ही जायल में भी लगभग सभी दुकानें 19 मार्च से ही बंद रखी गई थी.

850 से ज्यादा प्रवासी श्रमिक गांव लौटे

सरपंच जगदीश कड़वासरा बताते हैं कि कोरोना काल में जायल ग्राम पंचायत में 850 से ज्यादा प्रवासी घर लौटे हैं. गनीमत यह है कि अभी तक इस ग्राम पंचायत में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं मिला है. कोरोना काल में ग्राम पंचायत की ओर से भामाशाहों के सहयोग से 200 जरूरतमंद परिवारों को रसद सामग्री के पैकेट बांटना शुरू किया गया था. लॉकडाउन के अंत में सहायता लेने वाले परिवारों की संख्या एक हजार तक पहुंच गई थी. जरूरतमंद परिवारों को ग्राम पंचायत की ओर से पानी के टैंकर भी निशुल्क भिजवाए गए.

भामाशाहों ने की जरूरतमंदों की मदद

इसके साथ ही गंभीर बीमारी से ग्रसित ऐसे लोग जिनकी दवा बाहर से मंगवानी पड़ती थी. उनके लिए खास व्यवस्था की गई और जयपुर, जोधपुर, अजमेर और बीकानेर से दवा मंगवाने की व्यवस्था भी की गई. ग्रामीण भारत सैन का कहना है कि क्षेत्र में आकस्मिक घटना होने पर और गर्भवती महिलाओं को खून की कमी नहीं रहे, इसके चलते लॉकडाउन के बीच ही गांव के युवाओं ने रक्तदान कर 100 यूनिट रक्त एकत्रित किया था. साथ ही जरूरतमंद लोगों के ऑपेरशन और गर्भवती महिलाओं के लिए भी भामाशाहों की मदद से सहयोग किया गया.

पढ़ें- कोरोना से ग्रामीणों की जंग: कितने सतर्क हैं सेवाड़ा गांव के लोग, देखें ग्राउंड रिपोर्ट

इन सब व्यवस्थाओं के लिए ग्राम पंचायत ने भामाशाहों का सहयोग लिया और 35 लाख रुपए इकट्ठा किए. बाकायदा इसके एक-एक रुपए का हिसाब भी रखा गया है. शिक्षक सहदेवराम लोमरोड़ का कहना है कि कोरोना काल में बाहर से आने वाले सभी लोगों की सूची तैयार की गई और उन्हें क्वॉरेंटाइन करने के लिए ग्राम पंचायत की पांच स्कूलों में व्यवस्था की गई. उन्होंने बताया कि रहने और खाने-पीने की व्यवस्था तो आमतौर पर जिले के हर क्वॉरेंटाइन सेंटर पर थी, लेकिन जायल में क्वॉरेंटाइन लोगों के लिए फल और अखबार-मैगजीन की भी व्यवस्था की गई थी.

मनरेगा के तहत मिला मजदूरों को काम

हैदराबाद से लौटे ग्रामीण बाबूलाल ने बताया कि जायल की गुजरियावास स्कूल में क्वॉरेंटाइन गांव के कुछ लोगों ने अपनी मेहनत के दाम पर स्कूल की साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम भी किया. लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में काम नहीं मिलने पर यहां अपने घर आए प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के माध्यम से रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है. इस गांव में ऐसे करीब 200 प्रवासी कामगार हैं, जो कोरोना काल में दूसरे राज्यों से लौटे हैं और उनका जॉबकार्ड बनवाकर मनरेगा में रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है.

150 प्रवासी मजदूरों और स्थानीय कामगारों को मिला निशुल्क राशन

ई-मित्र संचालक राहुल सोलंकी का कहना है कि करीब 150 प्रवासी मजदूरों और स्थानीय कामगारों की सूची तैयार कर जिला रसद अधिकारी कार्यालय को भेजी गई है, जिसके आधार पर उन्हें निशुल्क गेहूं और चने की दाल दी जा रही है. ई-मित्र संचालक का कहना है कि तकनीकी त्रुटि की वजह से कुछ लोगों को गेहूं और चने की दाल नहीं मिल पाई है, जिसे दुरुस्त करवाया जा रहा है.

लॉकडाउन में छूट के बाद जिले के बाकी जगहों की तरह ही जायल में भी जनजीवन सामान्य होने लगा है. जब हम जायल पहुंचे तो लगभग सभी दुकानें खुली थीं, लेकिन रोजमर्रा की जरूरत के सामान की दुकान के अलावा बाकी किसी भी दुकान पर भीड़ नहीं दिखी.

सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग पर विशेष ध्यान

शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर रस्सियां बांध रखी हैं. इसके साथ ही लगभग हर दुकान पर सैनेटाइजर भी रखा हुआ मिला. किराणा की दुकान चलाने वाले अशोक शर्मा का कहना है कि दुकान के बाहर रस्सी बांधकर वे सुरक्षित दूरी के नियम का पालन कर रहे हैं. बिना मास्क पहने दुकान पर समान लेने आने वालों को वे खुद भी मास्क दे रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना काल में वे करीब 5 हजार मास्क बनवाकर बांट चुके हैं.

पढ़ें- Yoga Day Special: जयपुर की हेमलता शर्मा करेंगी 12 घंटे लगातार योग, बनाएंगी वर्ल्ड रिकार्ड!

जायल के बाजार में लोग अपना काम करते दिखे, लेकिन इनमें से अधिकांश ने मुंह को कपड़े या मास्क से ढका हुआ था. साथ ही एक मीटर की शारीरिक दूरी के नियम का पालन कर रहे थे. कुछ लोग ऐसे भी दिखे, जिन्होंने ना तो मास्क पहने थे और ना ही सुरक्षित दूरी के नियम का पालन कर रहे थे. ग्रामीणों, ग्राम पंचायत और भामाशाहों ने अपनी मेहनत के दम पर जायल ग्राम पंचायत को कोरोना संक्रमण से बचाकर रखा है. लेकिन कोरोना संबंधी नियमों में थोड़ी सी भी लापरवाही इस पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती.

नागौर. लॉकडाउन में छूट के बाद शहरों के साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी जिंदगी सरपट दौड़ने लगी है. जिला प्रशासन लगातार चेता रहा है कि लॉकडाउन की सख्ती के बीच अस्त-व्यस्त हुआ जनजीवन फिर से पटरी पर लौटे, इसी मकसद से छूट दी गई है. साथ ही कोरोना संबंधी गाइडलाइन की हर हाल में पालना होनी चाहिए. ग्रामीण इलाकों में आमजन इस बात को लेकर कितने जागरूक हैं और सरकारी निर्देशों की कितनी पालना हो रही है, इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम शनिवार को नागौर जिले के जायल गांव पहुंची.

जायल ग्राम पंचायत की ग्राउंड रिपोर्ट

गांव में अधिकांश लोग कोरोना संबंधी निर्देशों की पालना करते दिखे. करीब 30 हजार की आबादी वाली जायल ग्राम पंचायत में कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे को देखते हुए 19 मार्च से ही आमजन सतर्क हो गया था. हालांकि, 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन लागू किया गया था. लेकिन नागौर जिले के बाकी शहरों के साथ ही जायल में भी लगभग सभी दुकानें 19 मार्च से ही बंद रखी गई थी.

850 से ज्यादा प्रवासी श्रमिक गांव लौटे

सरपंच जगदीश कड़वासरा बताते हैं कि कोरोना काल में जायल ग्राम पंचायत में 850 से ज्यादा प्रवासी घर लौटे हैं. गनीमत यह है कि अभी तक इस ग्राम पंचायत में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला नहीं मिला है. कोरोना काल में ग्राम पंचायत की ओर से भामाशाहों के सहयोग से 200 जरूरतमंद परिवारों को रसद सामग्री के पैकेट बांटना शुरू किया गया था. लॉकडाउन के अंत में सहायता लेने वाले परिवारों की संख्या एक हजार तक पहुंच गई थी. जरूरतमंद परिवारों को ग्राम पंचायत की ओर से पानी के टैंकर भी निशुल्क भिजवाए गए.

भामाशाहों ने की जरूरतमंदों की मदद

इसके साथ ही गंभीर बीमारी से ग्रसित ऐसे लोग जिनकी दवा बाहर से मंगवानी पड़ती थी. उनके लिए खास व्यवस्था की गई और जयपुर, जोधपुर, अजमेर और बीकानेर से दवा मंगवाने की व्यवस्था भी की गई. ग्रामीण भारत सैन का कहना है कि क्षेत्र में आकस्मिक घटना होने पर और गर्भवती महिलाओं को खून की कमी नहीं रहे, इसके चलते लॉकडाउन के बीच ही गांव के युवाओं ने रक्तदान कर 100 यूनिट रक्त एकत्रित किया था. साथ ही जरूरतमंद लोगों के ऑपेरशन और गर्भवती महिलाओं के लिए भी भामाशाहों की मदद से सहयोग किया गया.

पढ़ें- कोरोना से ग्रामीणों की जंग: कितने सतर्क हैं सेवाड़ा गांव के लोग, देखें ग्राउंड रिपोर्ट

इन सब व्यवस्थाओं के लिए ग्राम पंचायत ने भामाशाहों का सहयोग लिया और 35 लाख रुपए इकट्ठा किए. बाकायदा इसके एक-एक रुपए का हिसाब भी रखा गया है. शिक्षक सहदेवराम लोमरोड़ का कहना है कि कोरोना काल में बाहर से आने वाले सभी लोगों की सूची तैयार की गई और उन्हें क्वॉरेंटाइन करने के लिए ग्राम पंचायत की पांच स्कूलों में व्यवस्था की गई. उन्होंने बताया कि रहने और खाने-पीने की व्यवस्था तो आमतौर पर जिले के हर क्वॉरेंटाइन सेंटर पर थी, लेकिन जायल में क्वॉरेंटाइन लोगों के लिए फल और अखबार-मैगजीन की भी व्यवस्था की गई थी.

मनरेगा के तहत मिला मजदूरों को काम

हैदराबाद से लौटे ग्रामीण बाबूलाल ने बताया कि जायल की गुजरियावास स्कूल में क्वॉरेंटाइन गांव के कुछ लोगों ने अपनी मेहनत के दाम पर स्कूल की साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम भी किया. लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में काम नहीं मिलने पर यहां अपने घर आए प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के माध्यम से रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है. इस गांव में ऐसे करीब 200 प्रवासी कामगार हैं, जो कोरोना काल में दूसरे राज्यों से लौटे हैं और उनका जॉबकार्ड बनवाकर मनरेगा में रोजगार मुहैया करवाया जा रहा है.

150 प्रवासी मजदूरों और स्थानीय कामगारों को मिला निशुल्क राशन

ई-मित्र संचालक राहुल सोलंकी का कहना है कि करीब 150 प्रवासी मजदूरों और स्थानीय कामगारों की सूची तैयार कर जिला रसद अधिकारी कार्यालय को भेजी गई है, जिसके आधार पर उन्हें निशुल्क गेहूं और चने की दाल दी जा रही है. ई-मित्र संचालक का कहना है कि तकनीकी त्रुटि की वजह से कुछ लोगों को गेहूं और चने की दाल नहीं मिल पाई है, जिसे दुरुस्त करवाया जा रहा है.

लॉकडाउन में छूट के बाद जिले के बाकी जगहों की तरह ही जायल में भी जनजीवन सामान्य होने लगा है. जब हम जायल पहुंचे तो लगभग सभी दुकानें खुली थीं, लेकिन रोजमर्रा की जरूरत के सामान की दुकान के अलावा बाकी किसी भी दुकान पर भीड़ नहीं दिखी.

सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग पर विशेष ध्यान

शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने के लिए दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर रस्सियां बांध रखी हैं. इसके साथ ही लगभग हर दुकान पर सैनेटाइजर भी रखा हुआ मिला. किराणा की दुकान चलाने वाले अशोक शर्मा का कहना है कि दुकान के बाहर रस्सी बांधकर वे सुरक्षित दूरी के नियम का पालन कर रहे हैं. बिना मास्क पहने दुकान पर समान लेने आने वालों को वे खुद भी मास्क दे रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना काल में वे करीब 5 हजार मास्क बनवाकर बांट चुके हैं.

पढ़ें- Yoga Day Special: जयपुर की हेमलता शर्मा करेंगी 12 घंटे लगातार योग, बनाएंगी वर्ल्ड रिकार्ड!

जायल के बाजार में लोग अपना काम करते दिखे, लेकिन इनमें से अधिकांश ने मुंह को कपड़े या मास्क से ढका हुआ था. साथ ही एक मीटर की शारीरिक दूरी के नियम का पालन कर रहे थे. कुछ लोग ऐसे भी दिखे, जिन्होंने ना तो मास्क पहने थे और ना ही सुरक्षित दूरी के नियम का पालन कर रहे थे. ग्रामीणों, ग्राम पंचायत और भामाशाहों ने अपनी मेहनत के दम पर जायल ग्राम पंचायत को कोरोना संक्रमण से बचाकर रखा है. लेकिन कोरोना संबंधी नियमों में थोड़ी सी भी लापरवाही इस पूरी मेहनत पर पानी फेर सकती.

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