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गहलोत सरकार के लिए बजरी माफिया बने चुनौती...आम आदमी बजरी के बढ़ते दामों से परेशान...

वसुंधरा पर बजरी माफिया के साथ  बार-बार मिलीभगत का आरोप लगाने वाले सूबे के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए अब बजरी माफिया पर लगाम लगाना चुनौती बन गया है. ना तो बजरी के दाम कम हो रहे हैं, और ना ही बजरी माफियाओं पर अंकुश लग पा रहा है. ऐसा में आम आदमी को भवन निर्माण के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ रही है, और बजरी माफिया मोटा मुनाफा कमा रहा है.

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Published : Feb 6, 2019, 1:39 PM IST

सरकार के लिए बजरी माफिया बने चुनौती

नागौर. बजरी खनन पर करीब दो साल पहले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद नागौर जिले सहित प्रदेशभर में बजरी का संकट पैदा हो गया था. अब बजरी का संकट कुछ हद तक कम हुआ है. लेकिन अब भी आम आदमी के लिए निर्माण का काम चलाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. 16 दिसंबर 2017 से पहले बजरी की एक ट्रॉली 1000 से 1200 रुपए में मिल रही थी. वही आज 2400 से तीन 3000 रुपए में मिल रही है. बजरी के खनन पर लगी रोक के बावजूद अवैध रूप से बजरी खनन कर माफिया चांदी काट रहे हैं.

इसका असर यह हुआ कि निर्माण कार्यों की संख्या में पिछले दो साल से गिरावट दर्ज की गई है. सरकारी निर्माण कार्यों का काम करने वाले ठेकेदारों के लिए भी बजरी की किल्लत ने परेशानी खड़ी कर दी है. ठेकेदारों का कहना है कि निर्माण की लागत बढ़ने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. साथ ही समय पर बजरी नहीं मिलने के कारण प्रोजेक्ट में देरी होती है, तो उन पर पेनाल्टी की तलवार भी लटकी रहती है.

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डेढ़ गुना तक बढ़ गई निर्माण कार्यों की लागत

जानकारों का कहना है कि बजरी खनन पर रोक और बजरी के दाम में हुई बढ़ोतरी से निर्माण कार्यों की लागत में भी डेढ़ गुना का इजाफा हुआ है. ऐसे हालात में लोग बहुत जरूरी होने पर ही निर्माण का काम शुरू करते हैं. निर्माण कार्यों में लगे कारीगरों और मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी इसका असर पड़ा है.

नागौर के करीब 20 गांवों में होता है बजरी का खनन

नागौर जिले के कुचेरा और रियांबड़ी इलाके के 20 गांवों में बजरी का खनन होता है. इनमें से कुछ के पास ही बजरी खनन की लीज है. बाकी जगहों पर अवैध रूप से ही बजरी का खनन हो रहा है. अवैध खनन को रोकने के सवाल पर कलेक्टर दिनेश कुमार यादव का कहना है कि पुलिस और प्रशासन मिलकर बजरी माफिया के खिलाफ नियमित अभियान चलाते हैं. लेकिन माफिया के मजबूत नेटवर्क के कारण बजरी के अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है. हालांकि, उनका दावा है कि एक मजबूत रणनीति बनाकर बजरी माफिया के खिलाफ जल्द बड़ा अभियान चलाया जाएगा.

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बजरी के अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और खनिज विभाग के दस्तों ने कई बार संयुक्त रूप से और कई बार अलग अलग दबिश भी दी. लेकिन उनके हाथ बजरी से भरे कुछ वाहन ही लगे. मशीनरी मौके पर बजरी खनन करते हुए आज तक नहीं पकड़ी गई. इसका बड़ा कारण यह है कि बजरी के अवैध खनन में लगे माफिया ने आसपास ही अपने ठिकाने बना रखे हैं. दबिश की सूचना मिलते ही वे मशीनरी को मौके से गायब कर देते हैं.

नागौर. बजरी खनन पर करीब दो साल पहले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद नागौर जिले सहित प्रदेशभर में बजरी का संकट पैदा हो गया था. अब बजरी का संकट कुछ हद तक कम हुआ है. लेकिन अब भी आम आदमी के लिए निर्माण का काम चलाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. 16 दिसंबर 2017 से पहले बजरी की एक ट्रॉली 1000 से 1200 रुपए में मिल रही थी. वही आज 2400 से तीन 3000 रुपए में मिल रही है. बजरी के खनन पर लगी रोक के बावजूद अवैध रूप से बजरी खनन कर माफिया चांदी काट रहे हैं.

इसका असर यह हुआ कि निर्माण कार्यों की संख्या में पिछले दो साल से गिरावट दर्ज की गई है. सरकारी निर्माण कार्यों का काम करने वाले ठेकेदारों के लिए भी बजरी की किल्लत ने परेशानी खड़ी कर दी है. ठेकेदारों का कहना है कि निर्माण की लागत बढ़ने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. साथ ही समय पर बजरी नहीं मिलने के कारण प्रोजेक्ट में देरी होती है, तो उन पर पेनाल्टी की तलवार भी लटकी रहती है.

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डेढ़ गुना तक बढ़ गई निर्माण कार्यों की लागत

जानकारों का कहना है कि बजरी खनन पर रोक और बजरी के दाम में हुई बढ़ोतरी से निर्माण कार्यों की लागत में भी डेढ़ गुना का इजाफा हुआ है. ऐसे हालात में लोग बहुत जरूरी होने पर ही निर्माण का काम शुरू करते हैं. निर्माण कार्यों में लगे कारीगरों और मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी इसका असर पड़ा है.

नागौर के करीब 20 गांवों में होता है बजरी का खनन

नागौर जिले के कुचेरा और रियांबड़ी इलाके के 20 गांवों में बजरी का खनन होता है. इनमें से कुछ के पास ही बजरी खनन की लीज है. बाकी जगहों पर अवैध रूप से ही बजरी का खनन हो रहा है. अवैध खनन को रोकने के सवाल पर कलेक्टर दिनेश कुमार यादव का कहना है कि पुलिस और प्रशासन मिलकर बजरी माफिया के खिलाफ नियमित अभियान चलाते हैं. लेकिन माफिया के मजबूत नेटवर्क के कारण बजरी के अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है. हालांकि, उनका दावा है कि एक मजबूत रणनीति बनाकर बजरी माफिया के खिलाफ जल्द बड़ा अभियान चलाया जाएगा.

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बजरी के अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और खनिज विभाग के दस्तों ने कई बार संयुक्त रूप से और कई बार अलग अलग दबिश भी दी. लेकिन उनके हाथ बजरी से भरे कुछ वाहन ही लगे. मशीनरी मौके पर बजरी खनन करते हुए आज तक नहीं पकड़ी गई. इसका बड़ा कारण यह है कि बजरी के अवैध खनन में लगे माफिया ने आसपास ही अपने ठिकाने बना रखे हैं. दबिश की सूचना मिलते ही वे मशीनरी को मौके से गायब कर देते हैं.

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नागौर. वसुंधरा पर बजरी माफिया के साथ  बार-बार मिलीभगत का आरोप लगाने वाले सूबे के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए अब बजरी माफिया पर लगाम लगाना चुनौती बन गया है. ना तो बजरी के दाम कम हो रहे हैं, और ना ही बजरी माफियाओं पर अंकुश लग पा रहा है. ऐसा में आम आदमी को भवन निर्माण के लिए मोटी रकम चुकानी पड़ रही है, और बजरी माफिया मोटा मुनाफा कमा रहा है.



बजरी खनन पर करीब दो साल पहले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद नागौर जिले सहित प्रदेशभर में बजरी का संकट पैदा हो गया था. अब बजरी का संकट कुछ हद तक कम  हुआ है. लेकिन अब भी आम आदमी के लिए निर्माण का काम चलाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. 16 दिसंबर 2017 से पहले बजरी की एक ट्रॉली 1000 से 1200 रुपए में मिल रही थी. वही आज 2400 से तीन 3000 रुपए में मिल रही है. बजरी के खनन पर लगी रोक के बावजूद अवैध रूप से बजरी खनन कर माफिया चांदी काट रहे हैं.

इसका असर यह हुआ कि निर्माण कार्यों की संख्या में पिछले दो साल से गिरावट दर्ज की गई है. सरकारी निर्माण कार्यों का काम करने वाले ठेकेदारों के लिए भी बजरी की किल्लत ने परेशानी खड़ी कर दी है. ठेकेदारों का कहना है कि निर्माण की लागत बढ़ने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. साथ ही समय पर बजरी नहीं मिलने के कारण प्रोजेक्ट में देरी होती है, तो उन पर पेनाल्टी की तलवार भी लटकी रहती है. 



डेढ़ गुना तक बढ़ गई निर्माण कार्यों की लागत



जानकारों का कहना है कि बजरी खनन पर रोक और बजरी के दाम में हुई बढ़ोतरी से निर्माण कार्यों की लागत में भी डेढ़ गुना का इजाफा हुआ है. ऐसे हालात में लोग बहुत जरूरी होने पर ही निर्माण का काम शुरू करते हैं. निर्माण कार्यों में लगे कारीगरों और मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी इसका असर पड़ा है.



नागौर के करीब 20 गांवों में होता है बजरी का खनन

नागौर जिले के कुचेरा और रियांबड़ी इलाके के 20 गांवों में बजरी का खनन होता है. इनमें से कुछ के पास ही बजरी खनन की लीज है. बाकी जगहों पर अवैध रूप से ही बजरी का खनन हो रहा है. अवैध खनन को रोकने के सवाल पर कलेक्टर दिनेश कुमार यादव का कहना है कि पुलिस और प्रशासन मिलकर बजरी माफिया के खिलाफ नियमित अभियान चलाते हैं. लेकिन माफिया के मजबूत नेटवर्क के कारण बजरी के अवैध खनन पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है. हालांकि, उनका दावा है कि एक मजबूत रणनीति बनाकर बजरी माफिया के खिलाफ जल्द बड़ा अभियान चलाया जाएगा.



बजरी के अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और खनिज विभाग के दस्तों ने कई बार संयुक्त रूप से और कई बार अलग अलग दबिश भी दी. लेकिन उनके हाथ बजरी से भरे कुछ वाहन ही लगे. मशीनरी मौके पर बजरी खनन करते हुए आज तक नहीं पकड़ी गई. इसका बड़ा कारण यह है कि बजरी के अवैध खनन में लगे माफिया ने आसपास ही अपने ठिकाने बना रखे हैं. दबिश की सूचना मिलते ही वे मशीनरी को मौके से गायब कर देते हैं.


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