नागौर. मानसून की बारिश के बाद अचानक मौसम में आए बदलाव ने किसानों की मेहनत पर एक बार फिर पानी फेर दिया है. बीते दिनों पश्चिम दिशा से चली तेज गर्म हवा की चपेट में आने से खेतों में खड़ी फसल जल गई है. बारिश के बाद चलने वाली गर्म हवा को स्थानीय लहजे में झोला कहते हैं. झोले की चपेट में आकर फसल खराब होने से किसान बेहद चिंतित हैं. अपनी चार महीने की मेहनत बेकार होने से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती है.
किसानों की इस पीड़ा को जानने के लिए ई टीवी भारत की टीम जायल उपखंड की डेह उप तहसील के गांवों में पहुंची तो चौंकाने वाले हालात सामने आए हैं. यहां खेतों में खड़ी मूंग, मोठ, तिल और बाजरे की फसल खराब हो गई है. किसानों का कहना है कि अब एक बार फिर बारिश हो भी जाए तो भी इन जली हुई फसलों को नया जीवन नहीं मिलने वाला है. ऐसे में उन्होंने फसल बीमा का मुआवजा दिलवाने की मांग की है. साथ ही सरकार से गुहार लगाई है कि खराबा घोषित कर मुआवजा दिया जाए. डेह इलाके के 15-20 गांवों में कमोबेश यही हालात हैं. जिले के बाकी हिस्सों में भी धूप और गर्म हवा से फसलों को नुकसान होने की जानकारी है.
डेह उपतहसील इलाके के कमेड़िया गांव के किसान मालाराम का कहना है कि लंबे अंतराल से इस इलाके में बारिश नहीं हुई है. वहीं, पिछले दिनों गर्म हवा चली, जिसकी चपेट में आने से उनकी मूंग की फसल खराब हो गई है. पौधे जल गए हैं, जो फूल और फलियां आई थीं, वो भी गिर गई हैं. पहले आई फलियों में दाना ही नहीं बन पाया है. अगर दाना बना भी है तो वो पकने से पहले ही सूखकर काला पड़ गया है. उनका कहना है कि फसल बीमा करने वाली कंपनी के प्रतिनिधियों ने एक बार भी आकर उनकी सुध नहीं ली है.
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एक अन्य किसान सांवताराम का कहना है कि पिछले दिनों झोले की चपेट में आने से मूंग और मोठ के पौधे खराब हो गए हैं. पहले जो फलियां आई थीं, अब वो या तो गिर गई हैं या पौधों पर ही सूख गई हैं. फलियों में जो थोड़े बहुत दाने बने थे, वो भी खराब हो गए हैं. कमोबेश यही हालात तिल और बाजरे की फसल का है. तिल के पौधे मुरझा गए हैं और उन पर आए हुए फूल गिर गए हैं. नए फूल नहीं बन पा रहे हैं. ऐसे में उनकी पूरी मेहनत पर पानी फिर गया है. बाजरे की फसल का भी यही हाल है. अचानक तेज गर्मी पड़ने से बाजरे के पौधों पर लगे सिट्टों में जो दाने बने थे, वो खराब होने लगे हैं.
किसानों का कहना है कि उन्होंने अपनी फसल का बीमा करवाया है, लेकिन बदले मौसम में फसल खराब होने के बाद एक बार भी उनकी सुध नहीं ली गई है. वहीं, खेती का गणित बताते हुए किसान अखाराम कहते हैं कि एक बीघा जमीन पर मूंग, मोठ, तिल या बाजरे की बुवाई करने में 15-20 हजार रुपए का खर्च आता है. उनके इलाके में सिंचाई की सुविधा नहीं है. इसलिए पूरी खेती बारिश पर निर्भर है. बारिश में अंतराल होने और तेज गर्मी पड़ने से फसलें खराब हो गई हैं. जब फसल अच्छी होती है तो खर्चा और मेहनत निकालने के बाद मुनाफा भी बचता है. लेकिन, इस बार हालात ये हैं कि प्रति बीघा 5 किलो पैदावार भी नहीं होगी. ऐसे में मेहनत की भरपाई होना तो दूर जो खर्चा लगा है, वो भी नहीं निकल पाएगा.
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किसानों का कहना है कि अभी तो जले हुए पौधों को खेत से हटाने के लिए मजदूरी भी उन्हें अपनी जेब से देना पड़ेगा. मौसम में अचानक हुए बदलाव के कारण कमोबेश यही हालात जिले के बाकी इलाकों के खेतों और किसानों के हैं. जिले के बाकी इलाकों में भी मूंग, मोठ, तिल और बाजरे की फसल गर्म हवा की चपेट में आने से झुलस गई है. फूल और फलियां खराब होने से किसानों की लागत निकलना भी मुश्किल है. ऐसे में किसानों के चहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं. डेह को तहसील बनाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता बीरबल कमेड़िया का कहना है कि डेह क्षेत्र के गांवों में खराब हुई फसल का किसानों को मुआवजा दिलाने और खराबा घोषित करने के लिए उन्होंने अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखा है.
कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जायल इलाके में 4500 हेक्टेयर में ज्वार, 22000 हेक्टेयर में बाजरा, 45500 हेक्टेयर में मूंग, 9000 हेक्टेयर में मोठ, 500 हेक्टेयर में चवला, एक हजार हेक्टेयर में मूंगफली और करीब 600 हक्टेयर में तिल की बुवाई की गई है. इसके अलावा 6500 हेक्टेयर में ग्वार और 500 हेक्टेयर में कपास की फसल भी किसानों ने बोई है. गर्म हवा की चपेट में आने से ज्यादा नुकसान मूंग, मोठ, तिल और बाजरे की फसल को होने की जानकारी है. इन चारों फसलों की जिले में कुल 8,81,642 हेक्टेयर में बुवाई हुई है. 2,90,918 हेक्टेयर में बाजरा, 5,12,495 हेक्टेयर में मूंग, 65,055 हेक्टेयर में मोठ और तिल 13,174 हेक्टेयर में बोया गया है. वहीं, जिले में इस साल खरीफ के सीजन में कुल 11,20,484 हेक्टेयर में बुवाई हुई है, जबकि लक्ष्य 12,46,000 हेक्टेयर में बुवाई का था.