नागौर. सांप्रदायिकता, नफरत, धार्मिक और जातिगत भेदभाव की खबरें अकसर सुनने को मिलती है लेकिन इन छिटपुट घटनाओं के बावजूद कुछ पॉजिटिव खबरें ऐसी आती हैं जो विश्वास दिला जाती हैं कि इंसानियत जिंदा है. ऐसा ही कुछ डीडवाना तहसील के ग्राम छापरी खुर्द में देखने को मिला (Example of Brotherhood in Nagaur). मुस्लिम बहुल गांव ने अपने हिंदू भाई की अंतिम यात्रा का हर वो कर्मकांड कराया जो धार्मानुसार जरूरी थी.
पश्चिम बंगाल का 'सरकार परिवार'- इस गांव में पश्चिम बंगाल के कृष्णा नगर निवासी मुकुल सरकार पिछले 20 सालों से अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों के साथ रहते थे. मुकुल की पिछले कई दिनों से तबियत खराब थी. आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं थी. जिसकी सूचना मिलने पर गांव के हबीब खान और असलम खान ने इंसानियत का फर्ज निभाया (Example of Brotherhood in Nagaur). अपनी गाड़ी में मुकुल को इलाज के लिए जयपुर लेकर गए, जहां उन्होंने मुकुल को अस्पताल में भर्ती करवाया. कोशिश बचाने की पूरी की गई लेकिन दुर्भाग्यवश से मुकुल की तबीयत में सुधार नहीं हुआ और 2 जनवरी को उनका देहांत हो गया.
मुकुल की मौत से गांव में सन्नाटा- गांव में जब मुकुल की मौत का समाचार पहुंचा तो समूचा गांव शोकमग्न हो गया. 20 सालों से हर सुख दुख में ये लोग सरकार के साथ खड़े रहे थे. एक झटके में उसके मौत की खबर ने मानो सबको तोड़ कर रख दिया. फिर उसके आर्थिक हालात को देखते हुए मिलकर अंतिम संस्कार का निर्णय लिया गया. आसपास से जानकारी जुटाई गई और हिंदू रस्मों के साथ मुकुल के अंतिम संस्कार की तैयारी करने में जुट गए. जब मुकुल का शव गांव पहुंचा तो 12 साल के बेटे से मुखाग्नि दिलवाई गई (Nagaur Muslims Helped in funeral of Hindu Man ).
गांव में सिर्फ एक ही हिंदू परिवार- छापरी खुर्द गांव पूर्ण रूप से मुस्लिम बहुल है यही कारण है कि यहां सिर्फ एक ही हिंदू रहता था. वो भी किराए पर. मुकुल सरकार अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे. इस गांव में मुकुल के परिवार के अलावा आज तक कोई भी हिंदू परिवार नहीं बस पाया था. मुकुल सरकार खुद भी कोलकाता के कृष्णा नगर का रहने वाले थे.
गांव वालों से था अच्छा रिश्ता- मुकुल सरकार दो दशक से यहां रह रहे थे. एक एक घर को जानते थे और गांव का हरेक परिवार भी उनसे वाकिफ था. बेहद अच्छा रिश्ता था वह गांव में सबके साथ ईद मनाते थे तो दीपावली पर उनके साथ पूरे गांव वाले खुशियां साझा करते थे. मुकुल का रिश्ता पूरे गांव वालों के साथ इतना अच्छा था कि दुख सुख में मुकुल उनके साथ हर समय खड़ा रहता था तो अगर मुकुल के किसी भी तरह का दुख आता तो गांव वाले उसके साथ खड़े हो जाते थे.
20 साल तक नहीं लिया किराया- 20 साल पहले जब मुकुल इस गांव में आया था तो नवाब खान (पुत्र सुल्तान खान) से मिला था और अपने काम को लेकर उसने यहां किराए के मकान के लिए उनसे कहा था. कहा था कि मुझे किराए का मकान दें ताकि मैं इस गांव में रहकर अपना गुजारा कर सकूं. नवाब खान ने भी खुली बांहों से मुकुल का स्वागत किया. अपना घर किराए पर दे दिया लेकिन 20 सालों में कभी भी मुकुल से किराया नहीं लिया गया.
पड़ोसी जब बन गए भाई- मुकुल की तबीयत पिछले 6 महीने से बेहद खराब थी. मुकुल के परिवार के लोग कोलकाता में रहते थे इस कारण से वह यहां आने में असमर्थ थे. इस बात का पता जब मुकुल के पड़ोसी हबीब खान (पुत्र जीतू खान) को चला तो वह बिना कुछ समय गंवाए ही मुकुल को लेकर जयपुर इलाज कराने के लिए चले गए. हबीब खान अपनी खुद की गाड़ी से मुकुल को महीने में करीब 2 से 3 बार जयपुर लेकर जाते थे और उसका इलाज करवाते थे.अंतिम संस्कार में छापरी खुर्द के सरपंच भवरू खान समेत गांव के डेढ़ सौ लोग शामिल हुए, जो सभी मुस्लिम थे.