कोटा: राजस्थान में गहलोत सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज निशुल्क कर दिया है. प्रदेश में सरकारी अस्पताल में ओपीडी और आईपीडी को निशुल्क करने का निर्देश दिया गया है. सीटी स्कैन और अन्य कई बड़ी जांचें तक निशुल्क हो रही है, लेकिन अस्पतालों के हालात ऐसे हैं कि सामान्य मेडिसिन भी मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं. एंटी कोल्ड दवा हो या फिर एंटी एलर्जी यह सामान्य दवाएं भी अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं. ये हालात मेडिकल कॉलेज कोटा के अस्पतालों के हैं. ईटीवी भारत ने जब रियलिटी चेक किया तो सामने आई अस्पतालों में दवाइयां ही उपलब्ध नहीं है.
ईटीवी भारत की टीम ने जब अस्पतालों का जायजा लिया तो मालूम चला कि मेडिकल कॉलेजों में दवाइयां ही उपलब्ध नहीं (shortage of medicines in government hospitals of rajasthan) है. ऐसे हालात मेडिकल कॉलेज कोटा के हैं. जहां एंटीकोल्ड, टिटनेस, वैक्सीन, बीपी के मरीजों के काम आने वाली लोसार्टन 50, दस्त की दवा मेट्रोजिल, एंटी एलर्जी सीपीएम, दर्द की डाइक्लोफिनेक और सिरिंज 5 और 2 एमएल जैसी दवाइयां नहीं हैं. साथ ही एंजायटी में काम आने वाली क्लोनजपम भी लंबे समय से नहीं आ रही हैं.
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20 फीसदी दवाएं नहीं है उपलब्ध: राज्य सरकार के मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में करीब 969 दवाएं मरीजों को फ्री देनी है. लेकिन इनमें से 20 फीसदी यानी करीब 180 दवा उपलब्ध ही नहीं है. केवल 791 दवाएं ही अस्पताल में मिल रही है. अधिकांश जो दवाइया उपलब्ध नहीं है, वहीं रूटीन सर्वाधिक उपयोग में आने वाली दवाइयां है. एमबीएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ. नवीन सक्सेना का कहना है कि वे स्थानीय स्तर पर खरीदकर मरीजों को दवा उपलब्ध करवाते हैं. जैसे ही दवा खत्म होती है और उसकी ड्रग वेयरहाउस से सप्लाई बंद हो जाती है. उसके बाद एमसीडीडब्ल्यू से एनओसी लेकर दवा खरीद ली जाती है.
कई काउंटरों के चक्कर लगाकर मिल रही दवाइयां: मरीज अस्पताल में डॉक्टर के पास से पर्ची पर दवाइयां लिखकर पहले एक काउंटर पर जाता है लेकिन वहां दवाइयां नहीं मिलती हैं. मरीज को ऐसे ही कई काउंटरों के चक्कर लगाने पड़ते है लेकिन इसके बावजूद उसे दवाइयां नहीं मिल पा रही है. जिससे मरीजों को काफी परेशानियों का सामना उठाना पड़ रहा है. एमबीएस अस्पताल में बीते ढाई महीने से यूरिन बैंक की सप्लाई भी नहीं हो रही है. ऐसे में मरीजों के परिजनों को इमरजेंसी होने पर निजी मेडिकल स्टोर की तरफ भागना पड़ रहा है.
प्रदेश स्तर पर खत्म हो गया रेट कॉन्ट्रैक्ट: ईटीवी भारत ने जब जांच पड़ताल की तो सामने आया कि कई दवाएं राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन से ही सप्लाई नहीं हो रही है. ऐसे में इन सभी दवाओं की खरीद स्थानीय स्तर पर करने के लिए एनओसी जारी की जा रही है. मेडिकल कॉलेज के ड्रग वेयरहाउस की बात की जाए तो वहां से लगातार पांच से सात दवाइयों की एनओसी जारी हो रही है. इनमें से कई दवाएं तो ऐसी है जिनकी खरीद के लिए प्रदेश स्तर पर राजस्थान मेडिकल सर्विस कॉरपोरेशन का रेट कॉन्ट्रैक्ट ही खत्म हो गया है. ऐसे में अब दोबारा रेट कॉन्ट्रैक्ट होगा, उसमें समय लगेगा, तब तक अस्पतालों में यह दवाओं की उपलब्धता नहीं रहेगी.
अस्पताल का जब रिकॉर्ड देखा गया तो सामने आया कि एक ही महीने में जुकाम और स्किन एलर्जी में उपयोग आने वाली सीपीएम की खपत करीब 5 लाख टेबलेट की हो जाती है. बीपी के मरीज के काम आने वाली लोसर्टन व सर्दी जुकाम में उपयोगी एंटी कोल्ड की खपत 30-30 हजार गोलियां हैं. डाइक्लोफिनेक 50 एमजी टेबलेट की खपत भी हर माह करीब एक लाख रहती है. ऐसे में बड़ी मात्रा में मरीजों को यह सामान्य दवा भी नहीं मिल पा रही है. हालात ये भी हैं कि अस्पतालों में हर माह एक लाख सिरिंज की जरूरत है, लेकिन यह बीते 3 से 4 महीने से नहीं आ रही है. अस्पताल को एनओसी मिलने पर कुछ खरीद स्थानीय स्तर पर कर लेता है लेकिन स्टॉक तुरंत खत्म हो जाता है. दूसरी तरफ अस्पतालों को यह महंगी भी पड़ रही है.
राजस्थान सरकार ने राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों को ओपीडी और आईपीडी जैसी सुविधाएं निशुल्क की हैं. प्रदेशभर के सरकारी अस्पतालों में 1 अप्रैल से शुरू किया गया हैं. बता दें कि, शुरुआती समय में इसे 1 महीने ड्राई रन के तहत शुरू किया जा रहा है. इस दौरान आने वाली समस्याओं को चिन्हित कर इनका समाधान निकाला जाएगा. ऐसे में 1 अप्रैल से प्रदेश वासियों को सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं देना होगा और मरीजों को पूर्ण रूप से निशुल्क इलाज अस्पतालों में मिल सकेगा. इसे लेकर चिकित्सा विभाग की ओर से आदेश किए गए है,