कोटा. जिले के दीगोद क्षेत्र के कोटसुवा ग्राम स्थित करीब 1100 साल पुराने ऐतिहासिक मां चामुंडा मंदिर में नवरात्रि के दौरान एक ऐसा चमत्कार होता है, जिस पर शायद आप विश्वास भी न करें, लेकिन यह हकीकत है और इसके गवाह स्थानीय बाशिंदे हैं. ग्रामीणों की मानें तो यहां नवरात्रि में तीन दिनों तक चंबल के पानी से दीपक जलता है और माता प्रत्यक्ष अपने भक्तों को ज्योत स्वरूप में दर्शन देती हैं.
कहते हैं कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती है. मां के साक्षात चमत्कारों की कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कोटा के दीगोद क्षेत्र के कोटसुवा ग्राम में माता उनके होने का साक्षात प्रमाण देती हैं और वो भी हजारों भक्तों के सामने. यहां चामुंडा माता मंदिर में आज भी प्राचीन परंपराओं के अनुसार नवरात्रि में पानी से दीपक जलते हैं और माता का ये चमत्कार तीन दिनों तक देखने को मिलता है. मंदिर समिति व गांव के बुजुर्गों की मानें तो यहां स्थित मां चामुंडा मंदिर करीब 1100 साल पुराना है. इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां नवरात्रि के दौरान सुबह से लेकर शाम तक दर्शन व पूजन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है.
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मंदिर स्थापना का इतिहास व प्रचलित कथाएं : कोटसुआ गांव स्थित माता चामुडा के प्रकट होने की कहानी भी चंबल नदी से जुड़ी है. बताया जाता है कि एक दिव्य कन्या के रूप में चंबल नदी के किनारे माता ने अपने बाल्य स्वरूप में दर्शन दिया था, जिसके चलते माता चामुंडा नाम से विख्यात हुई और माता चामुंडा का दरबार कोटसुआ गांव स्थापित हुआ. गांव के नरेश कुमार मीणा बताते हैं कि मंदिर में नवरात्रि में सालों से मैया का जस गीत गाया जाता है, जिसमें माता के अवतरण की कहानी होती है.
उन्होंने बताया कि विक्रम संवत 1169 में कोटसुआ गांव में चंबल नदी के दूसरे छोर पर माता ने एक दिव्य कन्या रूप में कालू कीर नामक एक नाविक दर्शन दिया था. मैया नाविक को नाव से नदी पार करवाने के लिए बुलाई और दिव्य कन्या रूप में वो इन्द्रासन से आई, लेकिन बीच नदी नाविक के मन में पाप आ गया. इसके बाद दिव्य कन्या स्वरूपा माता रानी ने नाविक को गोंद रूप में मक्खी बनाकर नाव में चिपका दिया.
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हालांकि, जब इसकी जानकारी अन्य ग्रामीणों को हुई तो वो वहां एकत्रित हुए. इसके बाद दिव्य कन्या ने उन्हें उनका परिचय दिया और कहा कि 14 साल बाद वापस नाविक सही सलामत उसके घर पहुंच जाएगा. साथ ही ग्रामीणों को उनका मंदिर बनवाने को कहा. वहीं, माता के कहेनुसार आखाराम पटेल ने उनका मंदिर बनवाया और तभी से कालू कीर के परिजन ही यहां माता रानी की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.
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तीन दिन तक पानी से जलता है दीपक : मंदिर में नवरात्रि में पंचमी,षष्टी और सप्तमी तक पानी से अखंड ज्योत जलती है, जिसमें खुद माता रानी पानी स्वरूप में प्रज्ज्वलित होती हैं. प्राचीन परंपरा के अनुसार यहां नवरात्रि के पहले दिन माता भोपे के शरीर में प्रवेश करती हैं. इसके बाद भोपे को ढोल नगाड़ों के साथ चंबल नदी ले जाया जाता है, जहां नदी के बीच से दो घड़े भरकर पानी लाया जाता है और उस पानी को मंदिर में रख दिया जाता है. इसके उपरांत भोपा का शुद्धिकरण तप शुरू होता है, जहां वो निराहार रहकर मंदिर में देवी का ध्यान लगाता है.
इस दौरान नौ दिनों तक वो केवल एक गिलास दूध का सेवन करता है. इसमें पंचमी को शाम के समय महाआरती के बाद भोपा के शरीर में माता प्रवेश करती हैं और फिर जिस घड़े में पानी भरकर लाया गया था, उसमें से माता को पानी दिया जाता है और उसी पानी को माता के ज्योत में डाला जाता है, जिससे दीपक 24 घंटों जलता है.