कोटा. जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन में बिना अपनी जान की परवाह किए वीरता का प्रदर्शन करने वाले कोटा के कुन्हाड़ी निवासी मेजर युद्धवीर सिंह को शौर्य चक्र व गैलंट्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें यह सम्मान गणतंत्र दिवस के मौके पर दिया गया. युद्धवीर सिंह सितंबर 2022 में ही मेजर बन गए थे. उनके पिता कर्नल कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि 11 अप्रैल, 2022 को कुलगाम जिले में एक वाहन में आतंकवादियों के होने की खुफिया जानकारी के बाद कैप्टन युद्धवीर सिंह ने खुफिया अभियान शुरू किया था. उन्होंने आतंकवादियों की निगरानी और उन्हें रोकने के लिए टीम का नेतृत्व किया और संदिग्ध वाहन का तेजी से पीछा करते हुए आतंकवादियों के भागने के रास्ते बंद कर दिए थे.
इस दौरान कैप्टन युद्धवीर सिंह ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की थी. वहीं, आतंकियों को रोकने के क्रम में आतंकवादियों ने उन पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी. जिस पर सैनिकों के साथ उन्होंने जवाबी कार्रवाई भी की. जिसके बाद आतंकवादी एक घर में जा छुपे. ऐसे में कैप्टन युद्धवीर ने सूझबूझ का परिचय देते हुए इस घर की कड़ी घेराबंदी कर दी. लेकिन आतंकवादियों ने हथगोले और अंधाधुंध फायरिंग कर बचने की कोशिश की. इसके बावजूद वो रेंगते हुए इस घर के करीब पहुंचे और आतंकवादियों को गोली मार दी थी. जिनमें एक विदेशी आतंकवादी भा शामिल था.
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बचपन से ही आर्मी की ओर था झुकाव: कर्नल कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि वे 11वीं मैकेनाइज्ड बटालियन (18 राजपुताना राइफल्स, भावनगर) में बतौर कैप्टन तैनात हुए थे. इनकी ड्यूटी जम्मू-कश्मीर में लगी थी. वर्तमान में 9वीं बटालियन राष्ट्र राइफल्स में सेवारत हैं. वे कोटा की कुन्हाड़ी फैमिली से हैं और वर्तमान में कोटा के ही धाकड़खेड़ी में उनका निवास है. हालांकि खुद कीर्तिवर्धन सिंह जयपुर में रहते हैं. मेजर युद्धवीर सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अहमदाबाद से की. उनकी मां दिव्या कंवर ग्रहणी है और दिव्या के पिता के चिमन सिंह भी आर्मी कमांडर रहे हैं. युद्धवीर का ननिहाल और खुद का परिवार भी आर्मी से जुड़ा रहा है. ऐसे में वे बचपन से ही आर्मी की ओर आकर्षित थे. मेजर युद्धवीर सिंह अभी अविवाहित हैं. उनके परिवार में बड़े भाई धनंजय सिंह होटल इंडस्ट्री में सक्रिय हैं.
आर्मी में चौथी पीढ़ी: कुन्हाड़ी परिवार की एक बहुत मजबूत मार्शल परंपरा है और वह चौथी पीढ़ी के अधिकारी हैं. उनके परदादा, ब्रिगेडियर के अरिसाल को 1919 में फील्ड मार्शल केसी करियप्पा के समान बैच में 4 राज राइफल में नियुक्त किया गया था. वे स्वतंत्र भारत के पहले कमांडर-इन-चीफ थे. युद्धवीर के दादा दिवंगत ब्रिगेडियर नाहर सिंह को जून 1952 में भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून से पास होने पर स्वॉर्ड ऑफ ऑनर मिला. वहीं, 1965 के भारत-पाक युद्ध में वो घायल हो गए थे. जिसमें उन्होंने 5वीं बटालियन राज राइफल की कमान संभाली थी. युद्धवीर के पिता कर्नल कीर्तिवर्धन सिंह 62 कैवेलरी में नियुक्त किए गए थे. अब तक कुन्हाड़ी परिवार के 16 सदस्य भारतीय सशस्त्र बलों में सेवाएं देने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं.