कोटा. कोटा यूनिवर्सिटी ने अपने कैंपस में उगी वनस्पतियों का पूरा सर्वे किया है. विश्वविद्यालय परिसर में किस-किस तरह के पेड़-पौधे और वनस्पति लगे हैं इसकी पूरी डिटेल रिपोर्ट तैयार की गई है. यही नहीं, विश्वविद्यालय के दो फैकेल्टी मेंबर्स ने इस पर एक रिसर्च पेपर भी पब्लिश किया है. इस रिसर्च पेपर के अनुसार अभी तक 184 तरह के पेड़-पौधे व वनस्पति कैंपस में मिले हैं जिनकी पूरी डिटेल बुकलेट में फोटो ग्राफ के साथ तैयार की गई है. ऐसा करने वाला यह प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय बन गया है.
कोटा विश्वविद्यालय में वाइल्ड लाइफ साइंस की पूर्व कोऑर्डिनेटर डॉ. सुरभि श्रीवास्तव ने बताया कि बच्चे पौधे के फोटोग्राफ खींच कर लाते थे. फिर हम खुद जाकर उन्हें देखते थे. हमने सीधे तौर पर भी खुद फोटोग्राफ्स लेकर डाटा कलेक्ट किया है. इसमें सभी को चिन्हित किया गया है. इसके बाद डॉ. शिवाली ने इन पौधों और पेड़ की पूरी फैमिली डिटेल, ऑर्डर, स्पीसीज सब एकत्रित की है. वाइल्ड लाइफ साइंस के सेमेस्टर फर्स्ट और थर्ड के स्टूडेंट को इसमें शामिल किया गया है. इन्होंने ही वनस्पतियों के फोटोग्राफ लेने में मदद की है. इसमें बॉटनी के भी स्टूडेंट भी शामिल हैं.
बर्ड्स और बटरफ्लाई को ढूंढते हुए शुरुआत हुई
कोटा विश्वविद्यालय में वाइल्ड लाइफ साइंस की पूर्व कोऑर्डिनेटर डॉ. सुरभि श्रीवास्तव ने बताया कि वह बर्ड्स एंड बटरफ्लाई पर रिसर्च कर रही हैं. इसी के लिए रोज शाम को ऑफिस के बाद पूरे कैंपस का भ्रमण करती थीं. फिर एक आइडिया आया कि यहां पर काफी संख्या में प्लांट हैं. ऐसे में उनके साथ ही पढ़ा रही फैकल्टी शिवाली खारोलीवाल से संपर्क किया. इसके साथ ही उन्हें बताया कि वह यूनिवर्सिटी कैंपस का पूरा सर्वे कर यहां मौजूद वनस्पतियों पर रिसर्च कर सकती हैं. इसके बाद उन्होंने यह कार्य शुरू कर दिया. इसमें यूनिवर्सिटी में बॉटनी और वाइल्ड लाइफ साइंस में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को भी साथ ले लिया गया.
इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित किया रिसर्च पेपर
डॉ. शिवाली खारोली वालों ने बताया कि इस पूरी बुकलेट को तैयार करने के बाद हमने इस पर पूरा रिसर्च पेपर भी तैयार किया. इसे 4 जनवरी को ही इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस रिसर्च ने पब्लिश किया है. यह बॉटनी का ही पेपर है. इससे बच्चों को काफी फायदा देगा. इससे यूनिवर्सिटी कैंपस में कितनी प्रजाति एक्जिस्ट करती हैं यह भी जानकारी मिलेगी. डॉ सुरभि श्रीवास्तव का कहना है कि विश्वविद्यालय परिसर में उगी वनस्पतियों पर सर्वे कर रिसर्च पेपर पब्लिश करने वाली यह राजस्थान की पहली यूनिवर्सिटी है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अभी कुछ प्लांट्स रह गए हैं जिन पर भी हम काम कर रहे हैं. 184 वनस्पतियों की बुकलेट हमने पब्लिश कर दी है. इसके बाद आगे कई स्पीसीज और मिली है.
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पूरे 1 साल चली रिसर्च, हर सीजन के पौधे लिए
शिवाली खारौलीवाल ने बताया कि सर्दी, गर्मी, बरसात सभी सीजन में अलग-अलग पेड़-पौधे कैंपस में आते हैं. ऐसे में सभी पर हमने नजर रखी है. यह रिसर्च 15 अगस्त 2021 से हमने शुरू की थी जो 15 जुलाई 2022 तक चली. इसके बाद हमने सभी पौधों की प्रजाति को ढूंढा, इसमें समय लगा जिसके बाद पूरी एक बुकलेट फोटोग्राफ्स के साथ तैयार की है. इसकी पूरी एक बुकलेट विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर डॉ. नीलिमा सिंह को भी सौंपी है. इसके अलावा लाइब्रेरी और बॉडी डिपार्टमेंट में भी बुक दी है. वाइल्ड लाइफ साइंस डिपार्टमेंट में भी बुक को दिया जाएगा.
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बड़ी संख्या में मिले हैं औषधीय पौधे
इस पूरी रिसर्च में यूनिवर्सिटी के सभी गार्डन, रोड साइड लगे प्लांट्स से लेकर हर छोटी-बड़ी वनस्पति को चयनित किया है. इन 184 प्लांट्स में हर्ब्स यानी छोटे पौधे 74 थे. इसके बाद सर्बस यानी झाड़ियां 62 मिली हैं. इसी तरह से 42 तरह के पेड़, 4 तरह की बेल और एक तरह की बेल क्रिपर यानी सरफेस पर फैलने वाली बेल भी मिली हैं. डॉ शिवानी खारोलीवाल ने यह बताया कि दवाओं के रूप में उपयोग होने वाले या कहें तो औषधीय पौधे भी बड़ी संख्या में मिले हैं.
इनमें अश्वगंधा, शंखपुष्पी, नीम, तुलसी, गिलोय, बेलपत्र, करंज व डाक (पलाश) शामिल हैं. वहीं फली कैटेगरी के पौधे सर्वाधिक मिले हैं. इसके बाद दूसरा नंबर बथुआ फैमिली यानी हरी घास जैसे उगने वाले पौधे ज्यादा मिले हैं. साथ ही गुडहल और सनफ्लावर कैटेगरी के भी काफी पौधे यूनिवर्सिटी के कैंपस में हैं. बाकी अन्य प्रत्याशियों के 1 या 2 पौधे हैं. ऐसे में करीब दो दर्जन से ज्यादा प्रजातियों के पौधे इसमें मिले हैं.
शिवाली खारोलीवाल ने कहा कि बेसिकली हमारा मकसद यह था कि हम वनस्पति को बच्चों तक पहुंचाएं. बच्चे प्लांट को आसानी से पहचान सकें. वाइल्डलाइफ के स्टूडेंट को कई बीमारियों के बारे में भी पढ़ाया जाता है. ऐसे में उन बीमारियों की दवा किस तरह से बनती है या फिर किस वनस्पति का उपयोग कर जानवरों को राहत दी जा सकती है. कई बीमारियों में मेडिसिन प्रॉपर नहीं पहुंच पाती है ऐसे में कौन से प्लांट को एप्रोच कर मेडिसिन के रूप में प्रयोग कर सकते हैं इस बारे में भी स्टूडेंट्स जान सकेंगे.