कोटा. एनवायरमेंटल क्लीयरेंस नहीं होने के चलते हेरिटेज चंबल रिवर फ्रंट का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चला गया है. इसी तरह से कोटा में दूसरे प्रोजेक्ट देवनारायण पशुपालक आवासीय योजना में भी नगर विकास न्यास ने एनवायरमेंटल क्लीयरेंस नहीं ली. अब इस पर स्टेट लेवल की कमेटी ने आपति जता दी है. सामने आ रहा है कि बिना एनवायरमेंटल क्लीयरेंस के नगर विकास न्यास ने देवनारायण पशुपालक आवासीय योजना के तहत निर्माण कर दिया है.
जानकारी के मुताबिक अभी भी निर्माण का दूसरे फेज का जारी है. यह निर्माण भी चंबल घड़ियाल सेंचुरी के इको सेंसेटिव जोन में हुआ है. ना तो इस मामले में तब यूआईटी के सचिव से लेकर इंजीनियरों ने ध्यान दिया, ना ही फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने निर्माण रुकवाने की जद्दोजहद की. यूआईटी के सचिव मानसिंह मीणा का कहना है कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का एक पत्र आया था. फॉरेस्ट को लेकर बनी स्टेट लेवल की कमेटी का भी लेटर है. दोनों लेटर को आए काफी ज्यादा समय हो गया. इस संबंध में जांच करवा रहे हैं.
बता दें कि इस योजना में 1200 पशुपालकों के रहने के लिए घर और पशु बाड़े बनाए गए हैं. इसमें 738 से ज्यादा पशु बाड़े बनकर तैयार हो गए हैं. शेष का निर्माण जारी है. करीब 100 एकड़ से ज्यादा एरिया में बनी इस योजना को पूरे देश की ऐसी एकमात्र योजना बता कर प्रचारित किया गया है.
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इसलिए जरूरी थी 'ईसी' : यह योजना मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व से महज 3.3 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि चंबल घड़ियाल अभयारण्य से 7.93 किमी की दूरी पर है. ये दोनों ही अभयारण्य इको सेंसेटिव जोन में आ रहे हैं. ऐसे में इसके लिए राज्य सरकार के जरिए केंद्र सरकार के बने पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति लेना जरूरी था. इसी दौरान दिए गए दिशा-निर्देशों के आधार पर ही निर्माण होता है.
आवेदन किया, लेकिन नहीं ली स्वीकृति : वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से स्वीकृति लेने के लिए नगर विकास न्यास ने फाइल भी प्रस्तुत की थी. इसमें जब वन विभाग ने टोपोग्राफिकल शीट में इसे सेंचुरी इलाके में पाया तो इस आवेदन को डिलिस्टेड कर दिया था. इसमें कुछ फॉर्मेलिटी होना शेष था. बाद में इसकी पालना नहीं की गई और बिना एनवायरमेंटल क्लीयरेंस के ही निर्माण शुरू करवा दिया गया. इस योजना की अधीक्षण अभियंता आरके राठौर का कहना है कि निर्माण के लिए पहले एनवायरमेंटल क्लीयरेंस डीलिस्टेड हो गई थी, लेकिन अब दोबारा इसे ले लेंगे, इसके लिए लेटर भी आया हुआ है.
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डीसीएफ के पत्र पर भी नहीं दिया ध्यान : मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के डीसीएफ ने 6 सितंबर 2021 को एक पत्र लिखा था. इसमें यूआईटी के अधिकारियों से आग्रह किया गया था कि यह प्रोजेक्ट पर्यावरण स्वीकृति के दायरे में आता है. फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980 व वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के नियमानुसार निर्माण के पूर्व पर्यावरण स्वीकृति लेना आवश्यक है. इतना ही नहीं, डीसीएफ ने सर्टिफाइड भी किया है कि इस कार्य के लिए नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड से पूर्वानुमति लेकर स्टेट एनवायरमेंटल इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी में सबमिट करना आवश्यक बताया था, लेकिन यूआईटी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
कोटा के वन्य जीव प्रेमी बृजेश विजयवर्गीय का कहना है कि एनवायरमेंटल क्लीयरेंस के साथ बने पर्यावरण मंत्रालय कुछ निर्माण के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां का भी जिक्र करता है, लेकिन जब अनुमति ही नहीं ली गई तो इन सावधानियों को भी ध्यान में नहीं रखा गया हैं. पानी के स्रोत, उसकी आवश्यकता और उसके बाद उपचारित अपशिष्ट जल की जांच की जानकारी देनी थी. इसके अलावा निर्माण के लिए क्या-क्या मशीनरी लाई जाएगी और उन्हें कैसे संचालित किया जाएगा, इसकी जानकारी भी देनी होती है. वाटर हार्वेस्टिंग और ठोस अपशिष्ट उत्पादन उपचार की व्यवस्था भी की जानी थी.