कोटा. केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से कोटा में आयोजित हो रहे कृषि महोत्सव में देशभर के कई स्टार्टअप्स पहुंचे हैं. इसी क्रम में बिहार के पटना निवासी रिचा वात्सायन भी अपना प्रोडक्ट लेकर पहुंची हैं. उन्होंने एग्रीकल्चर वेस्ट से बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाया है. इसके जरिए रिचा ने दावा किया है कि यह महिलाओं के लिए सेफ व हाइजीनिक है. साथ ही उनकी स्किन को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचेगा.
रिचा का दावा है कि इससे किसी तरह का कोई प्रदूषण भी नहीं होगा. यह मेंस्ट्रुअल वेस्ट से होने वाले प्रदूषण को रोकने में सहायक होगा. नॉर्मल सेनेटरी पैड 95 फीसदी प्लास्टिक से बने होते हैं. इस बायोडिग्रेडेबल पैड को डिकम्पोज होने में करीब 6 महीने लगेंगे. इसका उपयोग ऑर्गेनिक मैन्योर यानी खाद के रूप में भी किया जा सकता है. रिचा अपने सेनीट्रस्ट बायोडिग्रेडेबल पैड्स का निर्माण कर रही हैं.
आर्टिकल से आया आईडिया : रिचा ने अपनी पढ़ाई आर्ट्स फील्ड में की है. वह एग्रीकल्चर वेस्ट से प्रोडक्ट बना रही हैं. रिचा ने बताया कि 2019 में उन्होंने यूनिसेफ का एक आर्टिकल पढ़ा था. इसमें मेंस्ट्रुअल (मासिक धर्म) वेस्ट के बारे में बताया गया था. इसके अनुसार ये वेस्ट भारत में बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रही है. हर साल हमारे देश में करीब 130 हजार टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट जनरेट होता है. इसके बाद ही उन्होंने इस फील्ड में काम करने का मन बनाया.
किसानों को भी फायदा : रिचा ने बताया कि उनके इको फ्रेंडली सैनिटरी पैड्स केले के पेड़ और तने से बनाए जा रहे हैं. केले की फसल करने के बाद जब उपज ले ली जाती है, तब यह पेड़ और तना किसानों के काम नहीं आता है. फसल के बाद किसान या तो इसे फेंक देते हैं या फिर खेत में ही जला देते हैं. इससे वायु प्रदूषण भी होता है और खेत को भी नुकसान पहुंचता है. हालांकि इस तने और पेड़ के रेशे को निकालकर वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट बनाते हैं. इसी से सेनेटरी पैड बना रहे हैं. किसानों को भी आमदनी हो रही है और कार्बन फुटप्रिंट कम होता है.
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महिलाओं को भी मिल रहा रोजगार : रिचा ने दावा किया है कि इस बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी पैड के जरिए महिलाओं को भी एक अच्छी आजीविका मिल रही है. साथ ही कई महिलाओं को सुरक्षित और स्वस्थ मेंस्ट्रुअल उपलब्ध करवा रहे हैं. मेंस्ट्रुअल वेस्ट का भी सॉल्यूशन इसके जरिए हो रहा है. उन्होंने कहा कि नॉर्मल सेनेटरी पैड सफेद रंग के होते हैं, उनको सफेद बनाने के लिए क्लोरीन से ब्लीच किया जाता है. इससे स्किन को भी नुकसान होता है. जबकि हमारे सेनेटरी पैड में नेचुरल फाइबर का कलर होता है. इसलिए यह स्किन फ्रेंडली भी है.
जमीन के लिए हानिकारक है नॉर्मल सेनेटरी पैड : रिचा ने दावा किया है कि नॉर्मल सेनेटरी पैड्स 300 से 400 साल तक नष्ट नहीं होते हैं. इनमें प्लास्टिक का तत्व होने के चलते यह जमीन के लिए नुकसानदायक होते हैं. ऐसे में इनके एक मजबूत विकल्प के रूप में ये इको फ्रेंडली सेनेटरी पैड है. उनका कहना है कि इसकी पैकिंग में उपयोग की जा रही पॉलिथीन भी डिकम्पोज होने वाली है. यह पॉलीलैक्टिक एसिड यानी पीएलए की बनी हुई है, जिसे कॉर्नस्टार्च से बनाया जाता है.
जागरूकता बढ़ने से डिमांड भी बढ़ रही : रिचा का मानना है कि अभी महिलाओं में बायोडिग्रेडेबल पैड्स के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं है. हालांकि अवेयरनेस बढ़ने के साथ ही लगातार इन प्रोडक्ट्स की डिमांड भी बढ़ रही है. उनका कहना है कि हर दिन 1000 बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स बनाए जा रहे हैं. इसके दाम भी ज्यादा नहीं हैं. नॉर्मल सेनेटरी पैड्स की कीमत में ही ये सेनेटरी पैड भी मिल रहे हैं.