कोटा. पूरे देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस के मामले में कोटा का सिक्का चलता है और यहां पर आने वाले लाखों बच्चों से कोटा की अर्थव्यवस्था चलती है. समय के साथ कोटा की कोचिंग संस्थाओं ने प्रदेश के अन्य जिलों के अलावा दूसरे राज्यों में भी अपने सेंटर खोले हैं. वहीं, कोटा के एक बड़े कोचिंग संस्थान ने उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना ऑफलाइन सेंटर शुरू किया है, जिसके बाद से ही कोटा के हॉस्टल, मेस और कोचिंग से जुड़े अन्य व्यापारियों की परेशानी बढ़ गई है. कोचिंग के लिए कोटा आने वाले विद्यार्थियों में आधे विद्यार्थी बिहार और उत्तर प्रदेश से होते हैं. ऐसे में जब उन्हें उनके राज्य में बेहतर कोचिंग की सुविधा महैया होगी तो वो भला यहां क्यों आएंगे? एलन के निदेशक राजेश माहेश्वरी ने बताया कि यूपी और बिहार के विद्यार्थियों और अभिभावकों की बरसों पुरानी मांग पूरी हुई है.
दोनों प्रदेशों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी कोटा आते हैं. इसके बावजूद भी हजारों ऐसे विद्यार्थी हैं, जो किन्हीं कारणों से यहां नहीं आ पाते हैं. वहीं, उनके राज्य में सेंटर के खुलने से अब वो आसानी से वहां पहुंच सकेंगे. कोटा व्यापार महासंघ के महासचिव अशोक माहेश्वरी ने बताया कि 11वीं व 12वीं के बच्चे को कोटा में आने से ये सेंटर रोक सकते हैं. इसका असर कोटा में जरूर देखने को मिलेगा. इन नए खुल रहे सेंटर का क्या इंफ्रास्ट्रक्चर रहता है, इसके अनुसार ही असर देखने को मिलेगा.
इसे भी पढ़ें - Special: कोटा में बनकर खड़े हो गए 3800 हॉस्टल, 200 और कतार में, मालिकों को संशय भरेंगे या नहीं
1 जनवरी से शुरू होंगे दोनों जगह बैच : राजेश महेश्वरी ने बताया कि लखनऊ और पटना में अगले साल 1 जनवरी से बैच शुरू होंगे. वहीं, कोटा पढ़ने नहीं आ सकने वाले बच्चों के लिए की यह केंद्र खोले गए हैं, ताकि किसी भी प्रतिभा को पढ़ाई के अभाव में रुकने नहीं दिया जाएं. कोटा जैसी क्वालिटी एजुकेशन के लिए जाना जाता है, वैसी ही कोचिंग दोनों सेंटरों पर स्टूडेंट्स को उपलब्ध कराई जाएगी. नए खोले गए दोनों सेंटर में विद्यार्थियों को ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन सपोर्ट भी दिए जाएंगे. उन्होंने कहा कि उनका ध्येय स्टूडेंट के नॉलेज और कांसेप्ट को फाउंडेशन बेस पर मजबूत करना है.
सालों से चल रहे हैं कई राज्यों में केंद्र, अब खुले बड़े सेंटर : कोटा के 10 बड़े कोचिंग संस्थान हैं, जिनके जयपुर, सीकर, जोधपुर, भीलवाड़ा, दिल्ली, श्रीनगर, भटिंडा, भुवनेश्वर, बिलासपुर, देहरादून, चंडीगढ़, इंदौर, भोपाल, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, वडोदरा, बेंगलुरु, हैदराबाद, डिब्रुगढ़, गुवाहाटी, हिसार, नाशिक, नागपुर, ग्वालियर, व दुर्गापुर कोलकाता सहित कई शहरों में पहले से सेंटर चल रहे हैं. अब नए सेंटर लगातार खोले जा रहे हैं और जहां भी अब सेंटर खोले जा रहे हैं, उन शहरों से ज्यादा तादाद में बच्चे कोटा आते हैं.
छोटे सेंटर कर रहे थे मार्केटिंग का काम : चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष शुभम अग्रवाल का कहना है कि जितने भी सेंटर पहले थे, वो छोटे सेंटर हैं. साथ ही ये लोग कोटा के लिए मार्केटिंग का काम कर रहे थे, क्योंकि जब बच्चे वहां पढ़ते थे तो उन्हें लगता था कि यहां पर इतनी अच्छी पढ़ाई मिल रही है. ऐसे में वो कोटा चले आते थे, लेकिन अब जो सेंटर खोले जा रहे हैं, वो बड़े हैं. इससे कोटा को नुकसान होगा, क्योंकि इन जगहों से ही कोटा को ज्यादातर रेवेन्यू मिलता है. वहीं, कोचिंग संस्थानों की योजनाएं नए-नए केंद्र खोलने की है, इससे ये रेवेन्यू भी कम होगा.
इसे भी पढ़ें - Special : कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री का देशभर में सिक्का, ओवरसीज में भी करवा रहे एंट्रेंस की तैयारी
शुरू हो गया बच्चों का पलायन : चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के महासचिव अशोक लड्ढा ने कहा कि यूपी और बिहार से आने वाले विद्यार्थियों की संख्या 50 से 60 फीसदी होती है. ऐसे में कोटा आने वाले विद्यार्थियों की संख्या गिर जाएगी, क्योंकि वहां पहले बड़े कोचिंग संस्थानों के केंद्र नहीं थे. लड्ढा ने कहा कि वर्तमान में कोटा से बच्चे पलायन करने लगे हैं. साथ ही उन्होंने दावा किया कि 1500 रुपए की फीस देकर विद्यार्थी अपने केंद्र को बदलवा सकता है. ऐसे में अब दीपावली की छुट्टियों पर जब ये बच्चे जाएंगे, तब वापस नहीं लौटेंगे.
चुनौती से बढ़ी परेशानी : बीते 2 साल पहले ही कोटा में ऑनलाइन से ऑफलाइन कोचिंग में कदम रखने वाले एक संस्थान ने केंद्र खोला था, जिसको पहले साल में ही अच्छी तादाद में स्टूडेंट्स मिले थे. इस कोचिंग संस्थान ने बिहार में अपना सेंटर शुरू किया था, जहां बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने प्रवेश भी लिया था. उसके बाद कोटा की कोचिंग संस्थान में बिहार और लखनऊ जाने का फैसला लिया था. इसी क्रम में 15 व 16 अक्टूबर को पटना और लखनऊ में दो केंद्र खोले गए, जिससे कोटा के व्यापारी अब चिंतित हैं.
कोटा में घटेगी कोचिंग छात्रों की संख्या : कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि कोटा में करीब 2 लाख बच्चे आते हैं. यहां पर ढाई लाख सिंगल रूम उपलब्ध है, जिन में हॉस्टल व पीजी सभी के रूम शामिल हैं. कोटा आने वाले बच्चों में 50 फीसदी से ज्यादा बच्चे बिहार और उत्तर प्रदेश के होते हैं. ऐसे में बच्चों को पढ़ाई के लिए उनके शहर, कस्बे या गांव के आसपास ही ऑप्शन मिल जाएगा. इस कारण कोटा में बच्चों की संख्या कम होनी लाजमी है. करीब 10 से 15 फीसदी की गिरावट पहले साल में ही देखने को मिल सकती है, जिसके अनुसार कोटा में 25 से 30 हजार बच्चे कम हो जाएंगे.
शहर की छवि बिगड़ने से हो रहा नुकसान : चंबल हॉस्टल एसोसिएशन के महासचिव अशोक लड्ढा ने कहा कि कोटा में इस साल वैसे भी कोचिंग छात्रों की संख्या कमी थी. इसके अलावा रिजल्ट का असर देखने को मिला था. दूसरी ओर लगातार बढ़ी खुदकुशी के मामलों के कारण भी शहर की छवि खराब हुई है, जिससे लगातार नुकसान हो रहा है.