कोटा. देश में हजारों की संख्या में हर साल डॉक्टर और इंजीनियरों देने वाला कोटा का कोचिंग आज बदनामी का दंश झेल रहा है. यहां पर हो रहे सुसाइड को मुद्दा बनाया जा रहा है. इसी मुद्दे का विरोध करने के लिए कोटा के इंडस्ट्रियलिस्ट व्यापारी और सभी ट्रेड के लोग एकजुट हो गए हैं. इन लोगों का कहना है कि तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पुडुचेरी, एमपी व केरल से काफी कम सुसाइड राजस्थान में हो रहे हैं. इसके बावजूद भी कोटा के विरुद्ध षडयंत्र रचकर यहां की कोचिंग इंडस्ट्री को खत्म किया जाने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह 6000 करोड़ की कोचिंग इंडस्ट्री है. जिससे कोटा का हर व्यक्ति प्रभावित है. यहां तक की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोग इसमें रोजगार से जुड़े हुए हैं.
दूसरे राज्यों से राजस्थान के सुसाइड दर कम, ईर्ष्या के चलते कर रहे बदनाम: द स्मॉल स्केल इंडस्ट्री एसोसिएशन के फाउंडर चेयरमैन गोविंद राम मित्तल ने कहा कि तेलंगाना में 26.2, यूपी में 23.5, पांडिचेरी में 23.5, एमपी में 14, केरल में 12.3, तमिलनाडु में 12.1, महाराष्ट्र में 11.5, मणिपुर में 11.4 प्रतिशत आत्महत्या की दर है. जबकि राजस्थान में यह आंकड़ा चार फीसदी से भी काम है. इसके बावजूद भी कोटा को बदनाम किया जा रहा है क्योंकि कोटा का मुकाबला में सीधे तौर पर पढ़ाई के मामले में नहीं कर सके हैं. कोटा के इस कोचिंग व्यवसाय और आम नागरिक को लुटेरा बताया जा रहा है. जबकि बड़े-बड़े मेट्रो शहरों की चुनौती देते हुए कोटा से टॉपर्स निकले और विश्व में अपना नाम रोशन किया है. कोटा ने स्टूडेंट्स और अभिभावकों की सेवा की है. कोटा के बारे में जो धारणा बनाई जा रही है, वह पूरी तरह निराधार है. उसका कोई आधार नहीं है. दूसरे स्टेट में कोचिंग कोटा से ईर्ष्या रखते हैं.
ढाई लाख बच्चों की फीस और यहां रुकने के खर्चे से ही चल रही अर्थव्यवस्था: कोटा की अर्थव्यवस्था में कोचिंग ही सबसे बड़ी धुरी है. यहां पर 2.5 लाख विद्यार्थी हर साल कोचिंग करने के लिए आते हैं. जिनकी फीस से लेकर हॉस्टल या पीजी रेंट और मैच सहित अन्य सभी खर्च मिला लिए जाए, तो यह 2 लाख से लेकर 4.5 लाख रुपए के बीच होते हैं. यह राशि फुटकर व्यापारियों से लेकर हॉस्टल, कोचिंग, मैस व पीजी मालिक और स्थानीय दुकानदारों तक पहुंचती है. यहां तक की ट्रांसपोर्टेशन और ऑटो से लेकर हर तरह के व्यापार को इन बच्चों से होने वाली आमदनी से ही फायदा है. इन्हीं बच्चों से कोटा शहर को करीब 5 से 6 हजार करोड़ रुपए सालाना मिल रहे हैं.
कोरोना में 2 साल दंश झेल चुकी है अर्थव्यवस्था: कोटा व्यापार महासंघ के अध्यक्ष क्रांति जैन का कहना है कि कोविड-19 के काल में साल 2020 और 2021 में अधिकांश समय कोचिंग बंद रहे. साल 2020 के अंत में कोचिंग चालू भी हुए, लेकिन 2021 में आई दूसरी लहर में फिर बंद हो गए थे. इनको लेकर कोचिंग संस्थानों से लेकर सभी ने कई प्रयास भी किए. हॉस्टल एसोसिएशन से लेकर यहां के व्यापार महासंघ ने भी आंदोलन खड़ा किया. तब जाकर कोचिंग संस्थानों को दोबारा शुरू करने की अनुमति मिली थी. दूसरे शहरों के अर्थव्यवस्था साल 2021 में ही पटरी पर लौट गई थी, लेकिन कोटा के हालात काफी विकट बने हुए थे. यहां पर इस आंदोलन में ऑटो चालक से लेकर एक छोटी दुकान और फुटकर व्यवसाय भी जुड़ गया था. क्योंकि उसका व्यापार भी कोचिंग इंडस्ट्री के चलते ही चल रहा था. जब अनुमति मिली उसके बाद साल 2022 में ऐसा बूम कोटा में आया कि अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटी.
ऑटो से लेकर टी स्टॉल और रेहड़ी वालों को भी मिल रहा व्यापार: कोटा व्यापार महासंघ के महासचिव अशोक माहेश्वरी ने बताया कि कोटा में कोचिंग के चलते ही टी स्टॉल, मोची, टेलर, ड्राईक्लीनिंग, फुटकर सब्जी व फ्रूट, डेयरी, खोमचे, फास्टफूड, हेयर सलून, ऑटो, टैक्सी, रेस्टोरेंट, साइकल, बाइक रेंट, फोटो स्टूडियो, जेरोक्स, रेडीमेट, किराना, जनरल स्टोर, जूस सेंटर, स्टेशनरी, प्रिंटिंग व डेली यूज शॉप का व्यापार बड़े स्तर लर चल रहा है. इनसे जुड़े रोजगार में इलेक्ट्रिशियन, हॉस्टल वार्डन सिक्योरिटी गार्ड से लेकर कोचिंग में पढ़ा रही फैकल्टी, स्टाफ और इतनी बड़ी बिल्डिंगों के मेंटेनेंस में जुड़ा कार्मिक भी रोजगार ले रहा है. यह सभी लोग कोटा से ही हैं. इनको मिलने वाली सैलरी भी इन बच्चों की संख्या पर ही तय होती है.
हम एकजुट होकर कर रहे हैं आत्महत्या रोकने का प्रयास: अशोक माहेश्वरी का कहना है कि कोटा में कोचिंग करने आने वाले विद्यार्थियों की आत्महत्या की दर को काफी कम है, लेकिन कुछ आत्महत्या हुई भी हैं. हमें पूरे मामले को लेकर सतर्क और चिंतित हैं. हालांकि महज कुछ आत्महत्याओं के चलते कोचिंग इंडस्ट्री को बदनाम नहीं किया जा सकता, हम भी चाहते हैं कि कोटा में कोई बच्चा सुसाइड नहीं करें. इसके लिए सरकार की गाइडलाइन से लेकर हर संभव प्रयास हम भी कर रहे हैं. हम अपने व्यापार को बचाने के लिए जुटे हुए हैं. हमें ही इन बच्चों से व्यापार मिलता है. हम उनके सुसाइड को नहीं देख सकते है. इसीलिए सब एकजुट से प्रयास कर रहे हैं. हमने स्टाफ की ट्रेनिंग से लेकर बच्चों के मनोरंजन और तनाव मुक्त रखने के लिए कई प्रयास भी शुरू किए हैं और यह प्रयास जरुर रंग लाएंगे.
कोचिंग में बच्चे कम हुए तो खत्म हो जाएगा शहर: कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल का कहना है कि अगर बच्चों की संख्या में यहां पर गिरावट होगी, तो यहां रोजगार भी कम हो जाएगा. इतनी बड़ी-बड़ी कोचिंग की बिल्डिंग व हॉस्टल खड़े हो गए हैं, यह धीरे-धीरे खत्म होंगे. इसके अलावा कोचिंग संस्थान चल रहे हैं, वह सभी परेशान हो जाएंगे. यहां पर रोजगार की भारी कमी हो जाएगी और इसी के चलते कोटा खत्म हो जाएगा. यह षड्यंत्र दूसरे शहर के लोग रच रहे हैं और लगातार कोटा को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. कोटा के बाहर स्थित दूसरे बड़े कोचिंग इस तरह की पढ़ाई भी नहीं करवा रहे हैं.
सरकार ने उठाएं हैं यह कदम, कमेटी जाकर करेगी सिस्टम का रिव्यू: कोचिंग के बच्चों में सुसाइड को रोकने के लिए राज्य सरकार भी चिंतित है. इसी के चलते राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री के निर्देश पर एक कमेटी गठित की है. इसके अलावा प्रदेश स्तर पर मनोचिकित्सकों की टीम को भी कोचिंगों के निरीक्षण के लिए भेजा गया है. कोटा जिला कलेक्टर ने आने वाले दो महीना तक कोचिंग छात्रों के लिए जाने वाले किसी भी तरह के टेस्ट पर रोक लगाई है. इसके साथ ही हर संडे को पूरी तरह से अवकाश और हर बुधवार को आधे दिन पढ़ाई और आधे दिन फन क्लास लगाने के निर्देश दिए हैं. जिसमें बच्चों से मोटिवेशन की बात की जानी है. उसके अलावा मोटिवेशनल लेक्चर और हॉस्टल एसोसिएशन को हर संडे को स्माइलिंग कोटा कैंपेन के तहत फन डे के रूप में मनाने के निर्देश दिए हैं. वहीं 2 तारीख को राज्य स्तरीय कमेटी कोटा आएगी, जो कि सारे सिस्टम का रिव्यू भी करेगी.
इस तरह से है 6000 करोड़ की कोचिंग इंडस्ट्री:
- कोटा में है 10 से ज्यादा बड़े कोचिंग संस्थान
- इनमें पढ़ रहे हैं 2 लाख से ज्यादा स्टूडेंट
- मेडिकल और इंजीनियरिंग एंट्रेंस में देशभर में चलता है कोटा का सिक्का
- कोचिंग इंडस्ट्री ही कोटा की अर्थव्यवस्था की धुरी
- 3800 हॉस्टल में 1.65 लाख रूम
- 50 हजार पीजी रूम और 1 या 2 बीएचके फ्लैट
- 1 लाख लोग ले रहे हैं रोजगार
- यहां पर है 600 ओपन मैस