रामगंजमंडी (कोटा). राजस्थान में कोरोना पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा 15,627 पहुंच गया है. वहीं, अब तक 365 कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो चुकी है. कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन को फिलहाल हटा दिया गया है. अनलॉक होते ही जहां आम जनजीवन सामान्य हुआ है, वहीं अब लोग कोरोना वायरस को लेकर लापरवाही भी बरत रहे हैं. शहरों में पहले की तरह ही एक बार फिर से लोग सड़कों पर नजर आ रहे हैं. दुकानें खुल गई हैं, लोग काम-धंधे पर लौट रहे हैं. चिंता का विषय यह है कि अब लॉकडाउन में मिली छूट के साथ ही कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की रफ्तार भी तेजी से बढ़ रही है.
भारत अब इस महामारी के बहुत ही संवेदनशील चरण में प्रवेश कर चुका है. लाखों की संख्या में महानगरों से देश के ग्रामीण अंचल की ओर लौटे प्रवासी मजदूरों की मजबूरी ने कोरोना के प्रसार के खतरे को भी ग्रामीण भारत की ओर मोड़ दिया है. लोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिए घरों में रह रहे हैं. शहरी क्षेत्रों के लोग गांव की तरफ तेजी से पलायन कर रहे हैं. ऐसे में गांवों में खतरा बढ़ता जा रहा है.
'5041 जनसंख्या वाला है हिरियाखेड़ी ग्राम पंचायत'
देश की 70 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है. ऐसे में ये लोग कैसे सुरक्षित रह पाएंगे, क्या ग्रामीण कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तैयार हैं? इसका जायजा लेने के लिए ईटीवी भारत की टीम रामगंजमंडी के हिरियाखेड़ी ग्राम पंचायत पहुंची. जिसकी कुल आबादी 5041 है. इस ग्राम पंचायत के तहत 3 गांव दुहनिया, चरियाखेड़ी और चौसला आते हैं. ETV ने यहां के लोगों से बात की और जाना की ग्रामीण खुद को कोरोना से कैसे सुरक्षित रख रहे हैं.
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कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के साथ साथ हर कोई लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहा है, इसके बावजूद भी शहर के पढ़े लिखे लोग इन अपीलों पर अधिक ध्यान नहीं दे रहे और घरों से बाहर निकल जाते हैं. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ग्रामीण क्षेत्रों की तश्वीर इससे बिल्कुल उल्टी हैं. इस ग्राम पंचायत के लोग भी शहरी लोगों के सामने एक बड़ी मिसाल पेश कर रहे हैं.
- ग्रामीणों ने लगाए कोरोना नाके, गांव की सीमाएं सील, एंट्री बन्द
- बच्चे घर-घर दे रहे जागरूकता का संदेश
- शहरी लोगों से ज्यादा जागरूक दिख रहे हैं ग्रामीण
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील का ग्रामीणों में हुआ है खासा असर
गांव की महिलाओं का कहना है कि कोरोना काल में उन्होंने खुद को महामारी से बचाए रखने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. साथ ही हमेशा मुंह पर कपड़ा और मास्क लगाए रखा. लेकिन गांव के कुछ लोग थोड़े लापरवाह नजर आए. जैसे कोरोना खत्म ही हो गया हो. इन लोगों ने ना तो मुंह पर मास्क लगाया था और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहे थे.
'कोरोना काल में मिल रही हैं सारी सुविधाएं'
वहीं महिलाओं से सरकार द्वारा चलाई गई खाद्य सुरक्षा योजना के बारे में जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पिछले 10 सालों से उन्हें इस योजना के तहत किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिला था. लेकिन जब से कोरोना महामारी आई है तो योजना के तहत उन्हें गेहूं और अनाज दिया जा रहा है.
भामाशाह मकसूद अली ने बताया कि कोरोना काल में मजदूरों की मदद के लिए विधायक ने मात्र 38 राशन पैकेट ही पंचायत को भेजवाए थे. लेकिन गांव के भामाशाहों ने मिलकर करीब 6 लाख रुपए के राशन किट बांटे हैं.
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ग्रामीणों ने बताया कि जब से कोरोना महामारी आई है वे सरकार द्वारा जारी किए गए सभी गाइडलाइन्स का पालन करते आ रहे हैं. गांव के दुकानदार सुनील नायक ने बताया कि हर ग्राहक को 1 मीटर दूर से ही सामान दिया जाता है. दुकान पर बिना मास्क लगाए कोई आता है तो उसे राशन नहीं दिया जाता है.
दुहनिया गांव में मजदूरी कर रही महिला ने बताया कि 3 महीने से लॉकडाउन होने की वजह से सारे काम बंद है. लेकिन जब से अनलॉक हुआ है, काम वापस से शुरू हो गया है. ऐसे में काम करने वाले मजदूर मुंह पर मास्क लगाकर ही कार्यक्षेत्र में जाते हैं.
'सरपंच ने निभाई अहम भूमिका'
गांव के सरंपच जोहरा बी बताती हैं कि जैसे ही उन्हें कोरोना महामारी के बारे में पता चला. उन्होंने जल्द से जल्द पूरे गांव को सैनिटाइज करवाया. गांव में युवाओं की एक टीम बनाई. ये टीम घर-घर में जाकर लोगों को जागरूक करने का काम करती है. साथ ही सभी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों को मुहैया कराने का काम करती है.
सरपंच ने बताया कि गांव में बैरिकेड्स लगाए गए हैं, ताकि बाहर से आने वाले लोग गांव में प्रवेश ना कर सकें. अगर बाहर से कोई आता भी है तो उसे 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन किया जाता है. हमारी पड़ताल में रामगंजमंडी का हिरियाखेड़ी ग्राम पंचायत पूरी तरह से सतर्क नजर आया.
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विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में जिस गति से वाइरस फैल रहा है -उससे साफ़ है कि संक्रमित व्यक्ति के संक्रमण स्रोत का ठीक-ठीक पता लगाना अब उतना सम्भव नहीं रहा. भले ही सरकार आधिकारिक रूप से स्वीकार करे न करे, इसमें कोई शक नहीं की, अब हम कम्युनिटी ट्रांसमिशन के दौर में हैं. ऐसे में इन गांवों की तरह ही शहरी लोगों को भी सतर्क रहने की जरूरत है.