कोटा. किसानों को फसल खराब से होने वाले नुकसान के भरपाई के लिए सरकार लंबे समय से फसल बीमा करवाती आ रही है, लेकिन किसानों की इन बीमा में कोई रुचि नहीं है. अधिकांश किसान ये बीमा नहीं करवाते हैं, जिसके चलते जब फसल खराब होता है, तब उन्हें क्लेम नहीं मिल पाता है, हालांकि इसका प्रीमियम जब किसान भरता है, तो उससे काफी कम राशि ही देनी पड़ती है. इसकी करीब 80 फीसदी राशि केंद्र और राज्य सरकार वहन करती है. इसके बावजूद स्वतः अपनी मर्जी से फसल बीमा करवाने वाले किसानों की संख्या 1 फीसदी भी नहीं है.
लोन लेने पर स्वतः हो जाता है बीमा : कोटा जिले की बात की जाए तो 67763 किसानों का बैंकों के जरिए ही बीमा करवाया गया है. इसमें 259887 एप्लीकेशन अभी तक बन गई है. इनमें अपनी मर्जी से लोन करवाने वाले किसान महज 333 हैं. शेष 67430 किसानों का बैंक या सोसाइटी के जरिए बीमा हुआ है. इसके अनुसार माना जाए तो महज 0.5 फ़ीसदी किसान ही स्वतः अपना बीमा करवाने वाली सूची में शामिल हैं. बीते साल खरीफ की फसल में 282 किसानों ने का बीमा करवाया था, रबी की फसल में यह संख्या महज 131 रही.
बीमा कंपनियां भर रही जेब : किसानों का आरोप है कि हमारे साथ बीमा कंपनियां धोखा कर देती हैं. फसल खराबा का आकलन क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट से ही किया जाता है. इसमें सर्वेयर अपने मनमर्जी से ही डिटेल भर देता है. किसान की पूरी बात नहीं मानी जाती और इसके चलते उन्हें बीमा का क्लेम पूरा नहीं मिल पाता है. कई किसान तो ऐसे हैं, जिनका कहना है कि प्रीमियम से भी आधी राशि उन्हें नहीं मिली है. कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार बीते 5 सालों में 2019 से लेकर अब तक 561 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिला है, जबकि किसानों को जो क्लेम दिए गए हैं वह महज 204 करोड़ रुपए के हैं. इस पर किसानों का कहना है कि कंपनी अपनी जेब इस प्रीमियम के जरिए भर रही है.
35 फीसदी एरिया का भी नहीं हुआ बीमा : कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार इस बार खरीफ की फसल में 2 लाख 78 हजार हेक्टेयर में फसल की बुवाई होनी थी, इसकी अपेक्षा 255737 हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है. जबकि बीमा महज 85353 हेक्टेयर जमीन का ही हुआ है. ऐसे में माना जाए तो कोटा जिले में महज 35 फीसदी से भी कम भूमि फसल बीमा के कवर में शामिल है. कृषि विभाग के कार्यवाहक अतिरिक्त निदेशक खेमराज शर्मा का कहना है कि अभी आंकड़े पूरी तरह से नहीं आए हैं. यह आंकड़ा 1 लाख से ऊपर जा सकता है. अगस्त महीने के अंत तक फाइनल फिगर आएगा. उनका कहना है कि बीते सालों में करीब 1 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि का फसल बीमा होता रहा है.
किसानों का महज 20 फीसदी प्रीमियम : अतिरिक्त निदेशक शर्मा के अनुसार राज्य सरकार और केंद्र सरकार बराबर हिस्सा किसानों के प्रीमियम का देती हैं, जबकि किसान को महज कुछ प्रतिशत हिस्सा ही देना होता है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार प्रीमियम राशि का करीब 80 फीसदी हिस्सा वहन करती है, जबकि किसान को महज 20 फीसदी पैसा ही देना पड़ता है. इसके बावजूद भी योजना में किसानों की रुचि नहीं रहती है. बागवानी वाली फसलों में खराबे का कारण ज्यादा होता है, साथ ही उसकी लागत भी ज्यादा होती है. ऐसे में किसानों को इन फसलों के लिए थोड़ा ज्यादा प्रीमियम देना होता है. फसल बीमा के तहत बीमा अमाउंट का 8 से 10 फीसदी प्रीमियम होता है. इसमें किसान का 2 से 4 फीसदी, जबकि शेष राज्य और केंद्र सरकार वहन करती हैं.
जिले के आधे किसान हुए योजना में शामिल : अतिरिक्त निदेशक शर्मा के अनुसार ज्यादातर किसानों के केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) होते हैं या केसीसी के माध्यम से उन्होंने लोन करवा दिया है, इसलिए बीमा लेते हैं. जिले में करीब 1 लाख 20 हजार किसान हैं, जबकि आंकड़े देखें तो 67000 किसानों ने ही बीमा किया है. यह संख्या 50 फीसदी से ऊपर ही है. किसानों का मानना है कि बीमा क्लेम नहीं मिलता है. उन्होंने कहा कि हमने प्रचार प्रसार व फायदे भी बताए व प्रयास भी पूरा किया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा कवरेज हो, लेकिन ऐसा नहीं होता है.
किसानों के लिए कई पेचीदगियां, नहीं मिलता फायदा : भारतीय किसान संघ के प्रांत मंत्री जगदीश शर्मा कलमंडा का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा की कई पेचीदगियां हैं, इसलिए यह किसानों को रास नहीं आ रही है. सरकार की इस स्कीम में कई परेशानी है. बीमा कंपनियां प्रीमियम तो सहजता से काट लेती हैं, लेकिन विपत्ति या आपदा आ जाए, तब मदद नहीं मिलती है. किसान व सरकारी एजेंसी सर्वे करके रिपोर्ट भेजते हैं, उसके बावजूद भी बीमा कंपनियां कई तरह के अड़ंगे लगा देती हैं. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ कुठाराघात किया जाता है, चक्कर कटवाएं जाते हैं, लेकिन उसे कुछ मिलता नहीं है.
सरकारी विभाग उदासीन : जगदीश शर्मा कलमंडा का आरोप है कि फसल खराब होने के बाद किसान जब पोर्टल पर सूचना देता है, तब एक खसरा नंबर डालने के बाद पोर्टल बंद हो जाता है. सबकी सूचना डालने पर कई घंटे लग जाते हैं. इन परेशानियों के चलते किसान बीमा कंपनियों से मुंह मोड़ रहा है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि इसके पीछे मूल कारण सरकार और प्रशासन की उदासीनता और बीमा कंपनियों का भ्रष्टाचार है. हमारा मानना है कि किसानों को लाभ मिलना चाहिए. खराबी की सूचना देने के लिए पंचायत स्तर पर एक कार्यालय होना चाहिए, यह लोग ऑनलाइन या फोन के जरिए शिकायत लेते हैं, जो कि हर कोई नहीं कर पाता. किसानों को बीमा क्लेम मिलने का भी पारदर्शी फॉर्मूला होना चाहिए.