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चंबल नदी पर बन रहा है देश का पहला कैंटीलीवर डबल बॉक्स ब्रिज, कम लागत, ज्यादा मजबूती है इसकी खासियत

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 26, 2023, 6:44 PM IST

बूंदी और कोटा जिले की सीमा पर चंबल नदी पर बन रहे पुलों में पहली बार जर्मन तकनीक कैंटीलीवर डबल बॉक्स कास्टिंग का उपयोग भारत में किया जा रहा है. इस तकनीक से लागत भी कम आती है, साथ ही मजबूती ज्यादा रहती है.

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चंबल नदी पर बन रहा है देश का पहला कैंटीलीवर डबल बॉक्स ब्रिज.

कोटा. केंद्र सरकार भारत माला प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे का निर्माण करवा रही है. इसका बड़ा हिस्सा राजस्थान से गुजर रहा है. एक्सप्रेस-वे में अलग-अलग तरह के स्ट्रक्चर का निर्माण हो रहा है. नई-नई तकनीक का उपयोग भी इसमें किया जा रहा है. बूंदी और कोटा जिले की सीमा पर चंबल नदी पर बन रहे ब्रिज में जर्मन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह कैंटीलीवर डबल बॉक्स कास्टिंग तकनीक है. इस तकनीक का उपयोग भारत में पहली बार चंबल नदी पर एक्सप्रेस-वे के लिए बनाए जा रहे दो पुलों में किया गया है. इस तकनीक के उपयोग से लागत कम आती है और मजबूती ज्यादा रहती है. इस तकनीक से बने ब्रिज में मेंटेनेंस की आवश्यकता भी कम रहती है.

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट (पीआईयू) सवाई माधोपुर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर मनोज शर्मा का कहना है कि ब्रिज का निर्माण जनवरी माह में पूरा हो जाएगा, लेकिन वर्तमान में जिस पैकेज नंबर 12 में यह निर्माण होना है. उसका 80 फीसदी के आसपास काम हुआ है. इस काम की डेडलाइन भी एनएचएआई ने 31 मार्च की दी हुई है. ऐसे में माना जा सकता है कि अगले साल मई जून में इस पर से ट्रैफिक निकलने लगेगा.

Country's first cantilever double box bridge
पहली बार जर्मन तकनीक कैंटीलीवर डबल बॉक्स कास्टिंग का उपयोग

इसे भी पढ़ें-देश में बिछ रहा है एक्सप्रेसवे का जाल, सबसे लंबा Expressway भी भारत में बन रहा

जल्द पूरा होगा काम : नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से निर्माण कर रही जीआर इंफ्रा लिमिटेड के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर राकेश कुमार कुंतल का कहना है कि दिल्ली से मुंबई की तरफ जाने वाले ब्रिज में 10 दिन के बाद वाहन गुजरने लगेंगे, वहीं मुंबई से दिल्ली की तरफ जाने वाले ब्रिज का जनवरी के अंतिम सप्ताह तक काम पूरा हो जाएगा.

इसलिए किया कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक का इस्तेमाल : ब्रिज को पहले कंपनी ने केवल स्टे यानी हैंगिंग बनाने का विचार किया था, लेकिन इसमें बदलाव करते हुए कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक से इस ब्रिज को बनाने के लिए तय किया गया. इस तकनीक में खर्चा भी कम आया है, इसके अलावा ये ज्यादा मजबूत है और कम मेंटेनेंस की आवश्यकता इसमें रहेगी, जबकि स्टे हैंगिंग ब्रिज में लागत ज्यादा आती, साथ ही निर्माण में समय भी ज्यादा लगता है. इसके अलावा ज्यादा भारी वाहनों के इस पर से गुजरने पर खतरा भी रहता है. कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक के ब्रिज में यह खतरा नहीं रहता. इसकी क्षमता भी ज्यादा वजन सहन करने की है.

first cantilever double box bridge
पहली बार जर्मन तकनीक कैंटीलेवर डबल बॉक्स कास्टिंग का उपयोग

जर्मनी में बना था इस तकनीक से पहला ब्रिज : इस तकनीक से पहले ब्रिज का निर्माण 1867 में जर्मनी में किया गया था. इसके बाद भारत में भी पहाड़ी इलाकों में इस तकनीक से ब्रिज बनने लग गए थे. इस तरह के बीच हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में बनाए गए हैं, लेकिन इसकी अपडेटेड तकनीक कैंटीलीवर डबल बॉक्स से चंबल नदी पर एक्सप्रेस वे पर यह देश का पहला ब्रिज बन रहा है. इसमें कैंटीलीवर बनाने की तकनीक में डबल बॉक्स का उपयोग किया गया है. जिसमें एक साथ स्लैब (स्पैन) बनाने के लिए पिलर से जोड़कर ही कंक्रीट की कास्टिंग साथ में की जाती है.

Country's first cantilever double box bridge
कम लागत, ज्यादा मजबूती है इसकी खासियत

इसे भी पढ़ें-SPECIAL : देखें कहां पर बना है राजस्थान का सबसे लंबा एनिमल अंडरपास और कैसे गुजरेंगे वन्यजीव यहां से ?

नदी के बीच में नहीं है कोई पिलर : इस तकनीक में पहले नदी के किनारे पर पिलर खड़े कर दिए जाते हैं, इसके बाद इन पिलर से ही दाईं और बाईं दोनों तरफ स्पैन की कंक्रीट कास्टिंग शुरू की जाती है. यह आगे जाकर दूसरी तरफ के पिलर से निकले स्पैन से मिल जाते हैं. इस ब्रिज में तीन तरह के स्पैन हैं, जबकि दो तरह के कैंटीलीवर स्पैन है, जिसमें एक स्पैन 120 मीटर लम्बा है, जबकि दो 60-60 मीटर लंबे हैं.

first cantilever double box bridge
चंबल नदी पर बन रहा है देश का पहला कैंटीलेवर डबल बॉक्स ब्रिज

दो पिलर पर 120 मीटर लम्बा स्पैन : ब्रिज की कुल लंबाई 720 मीटर है, इनमें से 240 मीटर लंबे एरिया में कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक का उपयोग किया गया है. जबकि शेष में गर्डर स्पैन के जरिए ही ब्रिज बनाया गया है. इसमें कुल 20 पिलर खड़े किए गए हैं, जिनमें 19 स्पैन रखे गए हैं, जबकि तीन स्पैन और चार पिलर कैंटीलीवर डबल बॉक्स टेक्निक के हैं, जिनपर 240 मीटर ब्रिज बना है. दो पिलर के बीच में 120 मीटर लम्बा स्पैन बनाया गया है. शेष बचे 16 स्पैन और 16 पिलर गर्डन स्पैन तकनीक से बनाए गए हैं. जिसके जरिए हाई लेवल ब्रिज का निर्माण किया जाता है. हाड़ौती में भी कई हाई लेवल ब्रिज गर्डर स्पैन तकनीक से बने हुए हैं.

चंबल नदी पर बन रहा है देश का पहला कैंटीलीवर डबल बॉक्स ब्रिज.

कोटा. केंद्र सरकार भारत माला प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे का निर्माण करवा रही है. इसका बड़ा हिस्सा राजस्थान से गुजर रहा है. एक्सप्रेस-वे में अलग-अलग तरह के स्ट्रक्चर का निर्माण हो रहा है. नई-नई तकनीक का उपयोग भी इसमें किया जा रहा है. बूंदी और कोटा जिले की सीमा पर चंबल नदी पर बन रहे ब्रिज में जर्मन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. यह कैंटीलीवर डबल बॉक्स कास्टिंग तकनीक है. इस तकनीक का उपयोग भारत में पहली बार चंबल नदी पर एक्सप्रेस-वे के लिए बनाए जा रहे दो पुलों में किया गया है. इस तकनीक के उपयोग से लागत कम आती है और मजबूती ज्यादा रहती है. इस तकनीक से बने ब्रिज में मेंटेनेंस की आवश्यकता भी कम रहती है.

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट (पीआईयू) सवाई माधोपुर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर मनोज शर्मा का कहना है कि ब्रिज का निर्माण जनवरी माह में पूरा हो जाएगा, लेकिन वर्तमान में जिस पैकेज नंबर 12 में यह निर्माण होना है. उसका 80 फीसदी के आसपास काम हुआ है. इस काम की डेडलाइन भी एनएचएआई ने 31 मार्च की दी हुई है. ऐसे में माना जा सकता है कि अगले साल मई जून में इस पर से ट्रैफिक निकलने लगेगा.

Country's first cantilever double box bridge
पहली बार जर्मन तकनीक कैंटीलीवर डबल बॉक्स कास्टिंग का उपयोग

इसे भी पढ़ें-देश में बिछ रहा है एक्सप्रेसवे का जाल, सबसे लंबा Expressway भी भारत में बन रहा

जल्द पूरा होगा काम : नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तरफ से निर्माण कर रही जीआर इंफ्रा लिमिटेड के सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर राकेश कुमार कुंतल का कहना है कि दिल्ली से मुंबई की तरफ जाने वाले ब्रिज में 10 दिन के बाद वाहन गुजरने लगेंगे, वहीं मुंबई से दिल्ली की तरफ जाने वाले ब्रिज का जनवरी के अंतिम सप्ताह तक काम पूरा हो जाएगा.

इसलिए किया कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक का इस्तेमाल : ब्रिज को पहले कंपनी ने केवल स्टे यानी हैंगिंग बनाने का विचार किया था, लेकिन इसमें बदलाव करते हुए कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक से इस ब्रिज को बनाने के लिए तय किया गया. इस तकनीक में खर्चा भी कम आया है, इसके अलावा ये ज्यादा मजबूत है और कम मेंटेनेंस की आवश्यकता इसमें रहेगी, जबकि स्टे हैंगिंग ब्रिज में लागत ज्यादा आती, साथ ही निर्माण में समय भी ज्यादा लगता है. इसके अलावा ज्यादा भारी वाहनों के इस पर से गुजरने पर खतरा भी रहता है. कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक के ब्रिज में यह खतरा नहीं रहता. इसकी क्षमता भी ज्यादा वजन सहन करने की है.

first cantilever double box bridge
पहली बार जर्मन तकनीक कैंटीलेवर डबल बॉक्स कास्टिंग का उपयोग

जर्मनी में बना था इस तकनीक से पहला ब्रिज : इस तकनीक से पहले ब्रिज का निर्माण 1867 में जर्मनी में किया गया था. इसके बाद भारत में भी पहाड़ी इलाकों में इस तकनीक से ब्रिज बनने लग गए थे. इस तरह के बीच हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में बनाए गए हैं, लेकिन इसकी अपडेटेड तकनीक कैंटीलीवर डबल बॉक्स से चंबल नदी पर एक्सप्रेस वे पर यह देश का पहला ब्रिज बन रहा है. इसमें कैंटीलीवर बनाने की तकनीक में डबल बॉक्स का उपयोग किया गया है. जिसमें एक साथ स्लैब (स्पैन) बनाने के लिए पिलर से जोड़कर ही कंक्रीट की कास्टिंग साथ में की जाती है.

Country's first cantilever double box bridge
कम लागत, ज्यादा मजबूती है इसकी खासियत

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नदी के बीच में नहीं है कोई पिलर : इस तकनीक में पहले नदी के किनारे पर पिलर खड़े कर दिए जाते हैं, इसके बाद इन पिलर से ही दाईं और बाईं दोनों तरफ स्पैन की कंक्रीट कास्टिंग शुरू की जाती है. यह आगे जाकर दूसरी तरफ के पिलर से निकले स्पैन से मिल जाते हैं. इस ब्रिज में तीन तरह के स्पैन हैं, जबकि दो तरह के कैंटीलीवर स्पैन है, जिसमें एक स्पैन 120 मीटर लम्बा है, जबकि दो 60-60 मीटर लंबे हैं.

first cantilever double box bridge
चंबल नदी पर बन रहा है देश का पहला कैंटीलेवर डबल बॉक्स ब्रिज

दो पिलर पर 120 मीटर लम्बा स्पैन : ब्रिज की कुल लंबाई 720 मीटर है, इनमें से 240 मीटर लंबे एरिया में कैंटीलीवर डबल बॉक्स तकनीक का उपयोग किया गया है. जबकि शेष में गर्डर स्पैन के जरिए ही ब्रिज बनाया गया है. इसमें कुल 20 पिलर खड़े किए गए हैं, जिनमें 19 स्पैन रखे गए हैं, जबकि तीन स्पैन और चार पिलर कैंटीलीवर डबल बॉक्स टेक्निक के हैं, जिनपर 240 मीटर ब्रिज बना है. दो पिलर के बीच में 120 मीटर लम्बा स्पैन बनाया गया है. शेष बचे 16 स्पैन और 16 पिलर गर्डन स्पैन तकनीक से बनाए गए हैं. जिसके जरिए हाई लेवल ब्रिज का निर्माण किया जाता है. हाड़ौती में भी कई हाई लेवल ब्रिज गर्डर स्पैन तकनीक से बने हुए हैं.

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