कोटा. राजस्थान में अधिकांश बिजली का उत्पादन कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट से हो रहा है, लेकिन वर्तमान में कोयले की आपूर्ति बाधित होने के चलते इन थर्मल प्लांट में कोयले का स्टॉक कम हो रहा है. हालात ऐसे हैं कि सभी प्लांट क्रिटिकल स्थिति में पहुंच गए हैं. थर्मल प्लांट के पास एक दिन से लेकर 4 दिन तक का कोयला ही मौजूद है. इसके बावजूद बिजली की डिमांड लगातार बढ़ रही है, ऐसे में लगातार उत्पादन करना अब चुनौती बना हुआ है. इसी को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल और ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने दिल्ली में केंद्रीय कोयला मंत्री से मुलाकात की और कोयले को लेकर आ रही समस्या पर चर्चा की.
मुख्यमंत्री भजनलाल ने कहा कि उन्हें प्रल्हाद जोशी से उचित आश्वासन मिला है. वर्तमान में औसत 16.5 कोयले की रैक राजस्थान को आवंटित हो रही है, जबकि 23 रैक की डिमांड राजस्थान की रहती है. इस स्थिति में थर्मल प्लांट में कोयले के स्टॉक की कमी आ गई है, ऐसे में पीईकेबी व परसा कोल ब्लॉक से खनन शुरू होने तक कोल इंडिया से अतिरिक्त कोयला दिलवाले का आग्रह किया गया है. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ कोल ब्लॉक में आ रही समस्याओं के त्वरित निदान की भी मांग की. सीएम ने राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के अधिकारियों को अतिरिक्त रैक की व्यवस्था करना और रास्ते में चल रही रैक का डायवर्जन कराने के लिए केन्द्रीय कोयला मंत्रालय के माध्यम से रेल मंत्रालय के स्तर पर समन्वय करने का भी आग्रह किया. प्रल्हाद जोशी ने आश्वासन दिया है कि वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से बात कर राजस्थान की कोल ब्लॉक की समस्याओं का निराकरण करवाएंगे. साथ ही राजस्थान में कोयले की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए भी प्रयास करेंगे.
हाड़ौती के पावर प्लांट्स में कोयले की कमी : हाड़ौती में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के चार पावर प्लांट हैं, इनमें कोटा, झालावाड़ के कालीसिंध और बारां जिले के छबड़ा में दो प्लांट हैं. इन पावर प्लांट में 4760 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है, लेकिन उत्पादन 4100 मेगावाट के आसपास ही हो रहा है. यह उत्पादन भी कम ज्यादा होता रहता है. कोटा संभाग के पावर प्लांट को 18 रैक कोयले की रोज आवश्यकता होती है, लेकिन 12 कोयले की रैक ही पावर प्लांट पहुंच पा रही है. इसके चलते यहां के कोयले का स्टॉक भी कम हो गया है. वहीं, कोयले के स्टॉक के बारे में जानकारी मांगने पर अधिकारी कतराने लगे हैं. कोटा थर्मल व छबड़ा थर्मल के अधिकारी इस मामले में टालमटोल रवैया अपनाते रहे.
खपत से कम हो रही है सप्लाई : कोटा सुपर थर्मल पावर प्लांट में 7 यूनिट के जरिए 1240 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. वर्तमान में करीब 1220 मेगावाट बिजली का उत्पादन यहां पर हो रहा है. प्लांट पूरी क्षमता से चल रहा है. हालांकि, कोयले की कमी यहां पर भी है. वर्तमान में 45,000 टन का स्टॉक है, जबकि रोज की खपत 20,000 टन है. यहां पर दो दिन से ज्यादा का कोयला है, रोज यहां 4 रैक औसत आ रही है और खपत इससे ज्यादा की है.
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कोयले की कमी से उत्पादन क्षमता कम : झालावाड़ स्थित कालीसिंध थर्मल में वर्तमान में 1000 मेगावाट के आसपास उत्पादन हो रहा है. हालांकि, इस थर्मल पावर प्लांट की क्षमता 1200 मेगावाट है. यहां पर 600- 600 मेगावाट की दो यूनिट लगी हुई हैं, लेकिन 80 फीसदी क्षमता से ही उत्पादन हो रहा है. चीफ इंजीनियर केएल मीणा ने बताया कि यहां पर दोनों यूनिट संचालित की जा रही हैं, लेकिन उनकी क्षमता थोड़ी कम है, क्योंकि कोयले की भी कमी उनके यहां पर बनी हुई है. वर्तमान में 35,000 टन कोयला उनके पास है. हर दिन औसत दो से तीन कोयले की रैक आ रही है, जबकि हर दिन चार रैक कोयले की खपत है. वर्तमान में जो स्टॉक है, वह भी दो दिन का ही है, ऐसे में अधिकांश कोयला कन्वेयर बेल्ट से सीधा बंकरों में डाला जा रहा है.
छबड़ा थर्मल की यूनिट में 1 दिन का कोयला : बारां जिले के छबड़ा स्थित ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस यूनिट के पास महज 15,000 टन कोयले का स्टॉक बचा है. उनकी खपत करीब 12,000 के आसपास है. यहां पर 1000 मेगावाट क्षमता की चार यूनिट लगी हुई हैं, लेकिन उत्पादन 900 मेगावाट के आसपास ही हो रहा है. यह उत्पादन कम होकर 750 मेगावाट के आसपास भी चला जाता है, क्योंकि जैसे ही कोयले की कमी होती है उत्पादन कम कर दिया जाता है. चारों यूनिट चलाई जाती हैं, लेकिन उनकी उत्पादन क्षमता कम कर दी जाती है. हालांकि, छबड़ा थर्मल पावर प्लांट की ही सुपर क्रिटिकल यूनिट के पास 4 दिन का कोयला है, उनकी खपत तीन रैक की है और सप्लाई भी दो से तीन रैक की हो रही है.