कोटा. राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सीएम की कुर्सी और सरकार गठन की कयावद चल रही है. प्रदेश में ऐसे कई नेता हैं, जो एक से ज्यादा बार चुनाव जीतकर विधानसभा की दहलीज पर फिर से पहुंचे हैं. हाड़ौती की बात की जाए तो यहां पर प्रताप सिंह सिंघवी एक बार फिर चुनाव में जीत का परचम लहराया है. छबड़ा सीट से प्रताप सिंह सिंघवी सातवीं बार चुनाव जीतकर विधायक बने हैं.
इसी क्रम में बात की जाए तो कोटा के रामगंजमंडी से चुनाव जीते मदन दिलावर छठी बार विधायक बने हैं. वहीं सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री और झालरापाटन से चुनाव जीती वसुंधरा राजे सिंधिया और कोटा उत्तर से चुनाव जीते कांग्रेस प्रत्याशी शांति धारीवाल पांचवीं बार एमएलए बने हैं. इस बार के नतीजों में चौथी बार एमएलए बनने के क्लब में शामिल होने वाले पांच प्रत्याशियों को हार का भी मुंह देखना पड़ा है.
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सिंघवी लड़ चुके हैं आठ, दिलावर ने लड़े 7 चुनाव: छबड़ा से प्रताप सिंह सिंघवी आठ बार चुनाव लड़े और सात बार विधायक बने हैं. सिंघवी ने कभी अपनी सीट नहीं बदली. छबड़ा सीट से 1985 में उन्होंने पहला चुनाव लड़ा. इसके बाद 1993, 1998 और 2003 में चुनाव जीते. प्रताप सिंह सिंघवी 2008 में चुनाव हार गए. वहीं 2013, 2018 और 2023 में फिर चुनाव में सिंधवी ने बाजी मारी. हालांकि लगातार 7 बार विधायक नहीं रहे हैं. इसी तरह से मदन दिलावर छह बार विधायक रहे हैं. दिलावर बारां जिले की अटरू सीट से 1990 से 2008 तक लगातार विधायक रहे. साल 1990, 1993, 1998 और 2003 में वो चुनाव जीते थे. दिलावर को साल 2008 में बारां अटरू से चुनाव में मात मिली थी. साल 2018 और 2023 में रामगंज मंडी से मदन दिलावर एमएलए बने हैं.
वसुंधरा राजे लगातार पांच बार झालरापाटन से विधायक: साल 2003 में वसुंधरा राजे सिंधिया ने झालरापाटन से चुनाव लड़ा था. इसके बाद लगातार में वो पांच चुनाव जीती हैं. पांचो चुनाव में कांग्रेस ने वसुंधरा राजे के सामने प्रत्याशी बदला है. राजे 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में फिर चुनाव जीतकर विधायक बनीं हैं. कोटा उत्तर से चुनाव जीतने वाले शांति धारीवाल भी पांचवीं बार विधायक बने हैं. धारीवाल पहली बार 1993 में हिंडोली से विधायक चुने गए थे. इसके बाद 1998 में कोटा से चुनाव जीते. साल 2008, 2018 और 2023 में कोटा उत्तर से धारीवाल ने सियासी दंगल में बाजी मारी. धारीवाल साल 2003 और 2013 का चुनाव हार गए थे.
तीन के क्लब में शामिल हुए यह तीन विधायक: बूंदी से चुनाव जीते कांग्रेस के विधायक हरिमोहन शर्मा भी तीन के क्लब में शामिल हो गए हैं. उन्होंने पहला चुनाव 1985 में बूंदी सीट से जीता था. इसके बाद 2003 में वह हिंडोली से विधायक रहे हैं. वहीं उन्हें 20 साल बाद दोबारा विधायक बनने का मौका 2023 में बूंदी सीट से मिला है. तीन बार चुनाव में जीत दर्ज करने वाले विधायकों में कोटा दक्षिण से भाजपा के संदीप शर्मा भी शामिल हो गए हैं. संदीप शर्मा 2014 में उपचुनाव जीते थे. इसके बाद 2018 और 2023 का भी चुनाव जीत चुके हैं. गहलोत सरकार में मंत्री रहे अशोक चांदना भी हिंडोली सीट से लगातार तीन चुनाव जीत कर हैट्रिक लगाई है. चांदना साल 2013, 2018 और 2023 तीनों चुनाव में बाजी मारी है.
चौथी बार विधायक बनने से चूके: हाड़ौती से चुनाव में खड़े चार पूर्व विधायक ऐसे हैं जो कि चार बार विधायक रहने के क्लब शामिल हो सकते थे, लेकिन ये चारों कैंडिडेट चुनाव हार गए. इनमें बूंदी से चुनाव लड़ रहे भाजपा के अशोक डोगरा शामिल है. डोगरा 2008 , 2013 और 2018 में बूंदी से विधायक रह चुके हैं. वहीं केशवरायपाटन से चुनाव में खड़ी भाजपा प्रत्याशी चंद्रकांता मेघवाल भी चौथी बार जीत का स्वाद नहीं चख सकीं. मेघवाल रामगंज मंडी से 2008 व 2013 और केशोरायपाटन से 2018 में विधायक बनीं थीं. बारां जिले के अंता से चुनाव मैदान में किस्म्त अजमाने वाले प्रमोद जैन भाया भी इसी ग्रुप में शामिल हो गए हैं. भाया 2003 में बारां से निर्दलीय विधायक रहे. इसके बाद 2008 और 2018 में भाया अंता से विधायक चुने गए थे. इसी तरह से भाजपा के पूर्व विधायक नरेंद्र नागर भी 2003, 2013 और 2018 में खानपुर से विधायक रहे हैं, लेकिन इस बार यह चारों ही प्रत्याशी चुनावी वैतरणी नहीं पार कर सके. इसी तरह से भवानी सिंह राजावत ने टिकट मांगा था. प्रत्याशी के रूप में खड़े भी हुए नामांकन भी वापस नहीं लिया, लेकिन भाजपा प्रत्याशी को अपना समर्थन दे दिया था. राजावत चुनाव भी हार गए हैं. वे चुनाव जीतते तो चौथी बार विधानसभा में दाखिल होते. रजावत साल 2003, 2008 और 2013 में लाडपुरा से विधायक रह चुके हैं.
रामनारायण पांच और भरत सिंह कुंदनपुर चार बार रहे हैं विधायक: भरत सिंह कुंदनपुर ने पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था, वे चुनाव लड़ते और जीते तो पांचवें बार के विधायक बन सकते थे. इसी तरह से रामनारायण मीणा को भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया. रामानारायण मीणा चुनाव लड़ते और जीतते तो छठी बार विधायक होते. बारां जिले से बात की जाए तो कांग्रेस प्रत्याशी किशनगंज से निर्मला सहरिया और बारां अटरू विधानसभा से पानाचंद मेघवाल चुनाव जीतते तो तीसरी बार के विधायक होते. इसी तरह से कोटा उत्तर से चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद गुंजल भी चुनाव जीतते तो तीसरी बार विधायक बनते. गुंजल एक बार रामगंजमंडी और एक बार कोटा उत्तर से विधायक रह चुके हैं.