कोटा. राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय (Rajasthan Technical University) से संबंधित सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो गई. लेकिन हालात बीते कुछ सालों जैसे ही रहे हैं. इस बार भी करीब 40 फीसदी के आसपास ही सीटें भरी हैं. जबकि 60 फीसदी के आसपास सीटें खाली रह गई हैं. अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होने की कगार पर हैं. कई ब्रांचेज में इक्के दुक्के ही (Many colleges on verge of closure) एडमिशन स्टूडेंट्स ने लिए हैं. ऐसे में अब उनमें फैकल्टी रखकर पढ़ाना भी इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए महंगा साबित होने वाला है.
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी टीचिंग डिपार्टमेंट के इंजीनियरिंग कॉलेज को छोड़कर अन्य सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. एक्सपर्ट प्रदेश के सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की खाली सीटों के लिए डीम्ड व प्राइवेट यूनिवर्सिटी को जिम्मेदार बता रहे हैं.
सरकारी कॉलेज में 17 फीसदी एडमिशनः एडमिशन के आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो प्रदेश के 85 इंजीनियरिंग कॉलेजों में 18665 सीटें हैं. जिनमें 7654 में ही एडमिशन हुए हैं. जबकि 11008 सीटें खाली हैं. इनमें आरटीयू से संबद्ध प्रदेश के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों के हालात काफी (seats vacant in Engineering College) खराब है. यहां पर 1870 सीटें हैं, लेकिन महज 316 एडमिशन विद्यार्थियों ने लिए हैं. जबकि 1554 सीटें खाली हैं. जबकि राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी टीचिंग डिपार्टमेंट में 720 सीटों में से 575 में विद्यार्थियों ने एडमिशन लिया है. हालांकि इसमें भी पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग और एरोनॉटिकल जैसी सीटों पर प्रवेशित छात्रों की संख्या कम है.
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धौलपुर में एक भी एडमिशन नहीं, करौली में 12 बच्चेः राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय से संबद्ध सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति काफी खराब है. धौलपुर के कॉलेज में तो एक भी विद्यार्थी ने रुचि नहीं दिखाई, वहां पर 270 सीटों पर एक भी विद्यार्थी ने प्रवेश नहीं लिया है. इसी तरह करौली में इतनी ही सीटों पर 12 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है. जबकि बारां में 13 विद्यार्थियों ने एडमिशन लिया है. झालावाड़ में संख्या थोड़ी सी बढ़कर 33 हुई है, जबकि भरतपुर में 101 और भीलवाड़ा में 147 एडमिशन हुए हैं. इसी तरह से सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीईटी) की 150 सीटों में से 10 विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया है.
डीम्ड व निजी यूनिवर्सिटी उठा रही फायदाः आरटीयू के वाइस चांसलर प्रोफेसर एसके सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आया था. जिसमें डीम्ड यूनिवर्सिटी को ऑल इंडिया काउंसलिंग ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के अधीन नहीं माना गया. इसके चलते डीम्ड यूनिवर्सिटी अपनी सीटों पर ब्रांचेज में बदलाव एडमिशन के आधार पर कम ज्यादा कर सकती हैं. वर्तमान में अधिकांश विद्यार्थी कंप्यूटर साइंस व इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी ब्रांच को पसंद कर रहे हैं. जबकि सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, एयरोनॉटिकल और पेट्रोकेमिकल जैसी ब्रांचेज से दूर हो रहे हैं. ऐसे में यह सभी संस्थान कंप्यूटर साइंस और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में अपनी दूसरी ब्रांच को बदल देते हैं.
डीम्ड व निजी यूनिवर्सिटी की मनमानी के चलते बंद हो रहे कॉलेजः राजस्थान इंजीनियरिंग कॉलेजे सोसाइटी के संगठन सचिव श्रीधर सिंह का मानना है कि डीम्ड यूनिवर्सिटी कंप्यूटर के ब्रांच को बढ़ाकर बच्चों के प्रवेश ज्यादा ले लेती हैं. इसका नुकसान इंजीनियरिंग कॉलेजों को हो रहा है. हर साल इंजीनियरिंग में राजस्थान में 30000 से ज्यादा बच्चे एडमिशन ले रहे हैं, लेकिन आरटीयू के प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में यह एडमिशन 5800 के आसपास है. हमारे कई कॉलेज बंद होने की कगार पर हैं और उनकी अधिकांश सीटें खाली ही रह जाती हैं. जबकि जयपुर की ही दो डीम्ड यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर में 2000 के आसपास एडमिशन ले लिए हैं. इनमें एक में करीब 700 से 800 और दूसरी में 1200 से 1300 से एडमिशन हैं.
एक्सपर्ट के मुताबिक यह हैं कारण
देरी से एडमिशन: श्रीधर सिंह के मुताबिक राजस्थान के इंजीनियरिंग कॉलेज में आईआईटी, एनआईटी की काउंसलिंग के सेकंड राउंड के बाद ही एडमिशन होता है. यहां भी प्रक्रिया REAP (राजस्थान इंजीनियरिंग एडमिशन प्रोसेस) होती है, जिसमें JEE MAIN की रैंक ली जाती है. इसके देरी के चलते अधिकांश विद्यार्थी दूसरे इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश ले लेते हैं, जिनमें डीम्ड और प्राइवेट यूनिवर्सिटी शामिल हैं.
कोरोना: एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि कोविड-19 के चलते ही एडमिशन प्रोसेस देरी से हो गया. जबकि प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटी में समय से एडमिशन प्रक्रिया जारी है.