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Special: मूंगफली की खेती से किसानों ने मोड़ा मुंह, जिले में विलुप्त होने के कगार पर फसल

करौली में मानसून की बेरुखी, कीटों के दुष्प्रभाव, फसल के उचित दाम नहीं मिलने के कारण मूंगफली की खेती से किसानों ने मुंह मोड़ लिया है. दिनों दिन किसानों का रुझान मूंगफली की खेती की ओर से घटता जा रहा है. स्थिति यह है कि जहां दस साल पहले मूंगफली की खेती एक हजार हेक्टेयर से ऊपर में होती थी, वहीं अब यह पांच सौ हेक्टेयर से भी कम क्षेत्र में हो रही है. भारी मात्रा में होने वाली मूंगफली की फसल अब विलुप्त होने के कगार पर आ गई है. देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

Peanut farming declines
मूंगफली की खेती में गिरावट
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Published : Sep 30, 2020, 3:55 PM IST

करौली. राजस्थान में वैसे तो विभिन्न प्रकार की फसलों की पैदावार होती है लेकिन मूंगफली की खेती के लिए यह क्षेत्र काफी प्रसिद्द है. मूंगफली को गरीबों का बादाम भी कहा जाता है.खेती की बंपर पैदावार और अच्छे दाम मिलने से किसानों का इस फसल की उपज पर विशेष रुझान रहता था, लेकिन जिले में मानसून की बेरुखी, जलस्तर घटने और मेहनत का उचित मूल्य न मिलने के कारण अब साल दर साल किसानों का मूंगफली की खेती के प्रति रुझान कम होता जा रहा है.

मूंगफली की खेती में गिरावट

मूंगफली में बहुत सारे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. सस्ती कीमत पर मिलने के कारण इसे गरीबों का बादाम भी कहते हैं. लेकिन कम बारिश, फसलों में कीड़े लगने और दाम भी उचित न मिलने के कारण अब किसान भी धीरे-धीरे इसकी खेती की तरफ से मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

There was a rush of buyers
खरीदारों की लगती थी भीड़

जिले में खरीफ की फसल के रूप में मुख्य रूप से जुलाई के प्रारम्भ में बाजरा, मक्का, तिल, ज्वार, ग्वार मूंगफली आदि फसलें बोई जाती है. लेकिन धीरे-धीरे समय के अनुसार पूर्व में भारी मात्रा में होने वाली मूंगफली की फसल अब विलुप्त होने के कगार पर है. स्थिति यह हो गई है की जिले के सभी इलाकों में मूंगफली की खेती अब चुनिंदा इलाकों में ही होती है.

Karauli peanuts were in great demand
करौली की मूंगफली की होती थी बड़ी डिमांड

यह भी पढ़ें: Special: मटका मशरूम की खेती से किसान और बेरोजगार कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

जिले के इन इलाकों में होती है मूंगफली की खेती

वैसे तो 10 वर्ष पहले तक जिले के लगभग सभी इलाकों मे मूंगफली की खेती होती थी. किसानों का मूंगफली की खेती के प्रति विशेष रुझान भी था. वे रबी की फसल को समेट कर खरीफ की फसल में मुख्यतत: मूंगफली की खेती की तैयारियों मे जुट जाते थे. लेकिन फसल की लागत अधिक पड़ने और उसमें सफेद लट पड़ने के अतिरिक्त मानसून की बेरुखी के चलते अब गिने-चुने स्थानों पर ही मूंगफली की खेती की जाती है. जिले में मुख्यालय करौली के कुछ इलाके सहित सपोटरा हिण्डौन, मासलपुर इलाके में अब लगभग पांच सौ हेक्टेयर मे मूंगफली की खेती होती है.

दूर-दूर तक होती थी डिमांड

करौली क्षेत्र की मूंगफली की डिमांड दूर-दूर तक होती थी लोग करौली की मूंगफली को डिमांड के अनुसार उचित दाम देकर खरीदते थे. किसानों ने बताया कि करौली की मूंगफली पहले हिंडौन गंगापुर धौलपुर जयपुर तक जाती थी. लेकिन अब उपज कम होने के कारण और मूंगफली की आवक कम होने के कारण अब करौली में ही बेच दिया जाता है.

यह भी पढ़ें: Special: फसलों पर 'हरी लट' का वार, किसानों की मेहनत बेकार

इस कारण हुआ किसानों का रूझान कम

ईटीवी भारत की टीम ने जब करौली जिले के किसानों से मूंगफली के घटते उत्पादन के बारे में जाना तो उन्होंने बताया कि पूर्व में जिले के विभिन्न इलाकों में मूंगफली की खेती की बंपर पैदावार होती थी. लेकिन धीरे-धीरे क्षेत्र में पानी की कमी होने के कारण मूंगफली की पैदावार गिरती चली गई.

मूंगफली की पैदावार के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही बालू मिट्टी में मूंगफली की पैदावार अच्छी होती है.लेकिन प्रकृति के प्रकोप के चलते विभिन्न प्रकार के रोगों से लगातार इसका उत्पादन घटता गया. फसल का उचित मुआवजा नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे काफी संख्या में किसानों ने मूंगफली की खेती करना बंद कर दिया.

क्या कहते हैं अधिकारी

करौली जिले में मूंगफली की घटती पैदावार को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने सहायक कृषि निदेशक बीडी शर्मा से बात की तो उनका कहना था कि करौली जिले में आज से 10 वर्ष पहले लगभग 1000 हेक्टेयर भूमि में मूंगफली का उत्पादन होता था. जिले में मूंगफली की पैदावार पूर्व में सपोटरा उपखंड के विभिन्न गांवों सहित मासलपुर, करौली जिला मुख्यालय सहित विभिन्न गांवों में होती थी लेकिन वर्तमान में 500 हेक्टेयर से भी कम भूमि पर इसकी खेती की जा रही है.

उत्पादन घटने का कारण

सहायक कृषि निदेशक का कहना है कि मूंगफली उत्पादन घटने का मुख्य कारण बरसात का कम होना है. बहुत कम अवधि और कम मात्रा में बरसात होने के कारण मूंगफली उत्पादन लगातार घटता चला गया.पूर्व में बरसात सितंबर माह तक होती थी. वर्तमान में हालात यह हो गए हैं कि मानसून अगस्त माह में ही विदा हो जाते हैं जिसके कारण मूंगफली की फसल को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है.

दूसरा प्रमुख कारण मूंगफली की फसल में सफेद कीट रोग का होना है. हालांकि कृषि विभाग के द्वारा अनुदान पर भी कीटनाशक दवाइयां किसानों को वितरित की जाती हैं और नियंत्रण भी किया गया है लेकिन जितनी राहत किसान को मिलनी चाहिए नहीं मिल पाई है. इससे किसान का रुझान मूंगफली की फसल से हटता चला गया.

वहीं तीसरा मुख्य कारण यह है कि जिले के किसानों में एक प्रचलन यह भी था कि मई-जून में अग्रिम फसल का उत्पादन शुरू कर देते थे जिसको पानी की विशेष आवश्यकता होती है लेकिन नलकूपों में भी पानी की कमी होने के कारण पर्याप्त मात्रा में मूंगफली की फसल को पानी नहीं मिल पाता है जिसके कारण उत्पादन घटता चला गया.

करौली. राजस्थान में वैसे तो विभिन्न प्रकार की फसलों की पैदावार होती है लेकिन मूंगफली की खेती के लिए यह क्षेत्र काफी प्रसिद्द है. मूंगफली को गरीबों का बादाम भी कहा जाता है.खेती की बंपर पैदावार और अच्छे दाम मिलने से किसानों का इस फसल की उपज पर विशेष रुझान रहता था, लेकिन जिले में मानसून की बेरुखी, जलस्तर घटने और मेहनत का उचित मूल्य न मिलने के कारण अब साल दर साल किसानों का मूंगफली की खेती के प्रति रुझान कम होता जा रहा है.

मूंगफली की खेती में गिरावट

मूंगफली में बहुत सारे पोषक तत्व भी पाए जाते हैं जो बादाम में होते हैं. सस्ती कीमत पर मिलने के कारण इसे गरीबों का बादाम भी कहते हैं. लेकिन कम बारिश, फसलों में कीड़े लगने और दाम भी उचित न मिलने के कारण अब किसान भी धीरे-धीरे इसकी खेती की तरफ से मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

There was a rush of buyers
खरीदारों की लगती थी भीड़

जिले में खरीफ की फसल के रूप में मुख्य रूप से जुलाई के प्रारम्भ में बाजरा, मक्का, तिल, ज्वार, ग्वार मूंगफली आदि फसलें बोई जाती है. लेकिन धीरे-धीरे समय के अनुसार पूर्व में भारी मात्रा में होने वाली मूंगफली की फसल अब विलुप्त होने के कगार पर है. स्थिति यह हो गई है की जिले के सभी इलाकों में मूंगफली की खेती अब चुनिंदा इलाकों में ही होती है.

Karauli peanuts were in great demand
करौली की मूंगफली की होती थी बड़ी डिमांड

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जिले के इन इलाकों में होती है मूंगफली की खेती

वैसे तो 10 वर्ष पहले तक जिले के लगभग सभी इलाकों मे मूंगफली की खेती होती थी. किसानों का मूंगफली की खेती के प्रति विशेष रुझान भी था. वे रबी की फसल को समेट कर खरीफ की फसल में मुख्यतत: मूंगफली की खेती की तैयारियों मे जुट जाते थे. लेकिन फसल की लागत अधिक पड़ने और उसमें सफेद लट पड़ने के अतिरिक्त मानसून की बेरुखी के चलते अब गिने-चुने स्थानों पर ही मूंगफली की खेती की जाती है. जिले में मुख्यालय करौली के कुछ इलाके सहित सपोटरा हिण्डौन, मासलपुर इलाके में अब लगभग पांच सौ हेक्टेयर मे मूंगफली की खेती होती है.

दूर-दूर तक होती थी डिमांड

करौली क्षेत्र की मूंगफली की डिमांड दूर-दूर तक होती थी लोग करौली की मूंगफली को डिमांड के अनुसार उचित दाम देकर खरीदते थे. किसानों ने बताया कि करौली की मूंगफली पहले हिंडौन गंगापुर धौलपुर जयपुर तक जाती थी. लेकिन अब उपज कम होने के कारण और मूंगफली की आवक कम होने के कारण अब करौली में ही बेच दिया जाता है.

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इस कारण हुआ किसानों का रूझान कम

ईटीवी भारत की टीम ने जब करौली जिले के किसानों से मूंगफली के घटते उत्पादन के बारे में जाना तो उन्होंने बताया कि पूर्व में जिले के विभिन्न इलाकों में मूंगफली की खेती की बंपर पैदावार होती थी. लेकिन धीरे-धीरे क्षेत्र में पानी की कमी होने के कारण मूंगफली की पैदावार गिरती चली गई.

मूंगफली की पैदावार के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही बालू मिट्टी में मूंगफली की पैदावार अच्छी होती है.लेकिन प्रकृति के प्रकोप के चलते विभिन्न प्रकार के रोगों से लगातार इसका उत्पादन घटता गया. फसल का उचित मुआवजा नहीं मिलने के कारण धीरे-धीरे काफी संख्या में किसानों ने मूंगफली की खेती करना बंद कर दिया.

क्या कहते हैं अधिकारी

करौली जिले में मूंगफली की घटती पैदावार को लेकर जब ईटीवी भारत की टीम ने सहायक कृषि निदेशक बीडी शर्मा से बात की तो उनका कहना था कि करौली जिले में आज से 10 वर्ष पहले लगभग 1000 हेक्टेयर भूमि में मूंगफली का उत्पादन होता था. जिले में मूंगफली की पैदावार पूर्व में सपोटरा उपखंड के विभिन्न गांवों सहित मासलपुर, करौली जिला मुख्यालय सहित विभिन्न गांवों में होती थी लेकिन वर्तमान में 500 हेक्टेयर से भी कम भूमि पर इसकी खेती की जा रही है.

उत्पादन घटने का कारण

सहायक कृषि निदेशक का कहना है कि मूंगफली उत्पादन घटने का मुख्य कारण बरसात का कम होना है. बहुत कम अवधि और कम मात्रा में बरसात होने के कारण मूंगफली उत्पादन लगातार घटता चला गया.पूर्व में बरसात सितंबर माह तक होती थी. वर्तमान में हालात यह हो गए हैं कि मानसून अगस्त माह में ही विदा हो जाते हैं जिसके कारण मूंगफली की फसल को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है.

दूसरा प्रमुख कारण मूंगफली की फसल में सफेद कीट रोग का होना है. हालांकि कृषि विभाग के द्वारा अनुदान पर भी कीटनाशक दवाइयां किसानों को वितरित की जाती हैं और नियंत्रण भी किया गया है लेकिन जितनी राहत किसान को मिलनी चाहिए नहीं मिल पाई है. इससे किसान का रुझान मूंगफली की फसल से हटता चला गया.

वहीं तीसरा मुख्य कारण यह है कि जिले के किसानों में एक प्रचलन यह भी था कि मई-जून में अग्रिम फसल का उत्पादन शुरू कर देते थे जिसको पानी की विशेष आवश्यकता होती है लेकिन नलकूपों में भी पानी की कमी होने के कारण पर्याप्त मात्रा में मूंगफली की फसल को पानी नहीं मिल पाता है जिसके कारण उत्पादन घटता चला गया.

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