जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस दिनेश मेहता ने राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक रोजगार के लिए महिला के विवाहित जरूरी होने की शर्त को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित किया है. कोर्ट ने कहा कि अविवाहित होने के आधार पर सरकारी रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14/16 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन और महिला की गरिमा का भी हनन है.
बालोतरा निवासी मधु चारण की ओर से अधिवक्ता ने रिट याचिका दायर कर बताया कि महिला एवं बाल विकास विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के नियुक्ति के लिए जारी विस्तृत गाइडलाइन में 'महिला का विवाहित होना आवश्यक' की शर्त नंबर 2-A(ii) सम्मलित कर रखी है. जिस कारण सम्पूर्ण राजस्थान के सभी संबंधित राजस्व ग्राम में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों पर अविवाहित लड़की/महिला आवेदन ही नहीं कर सकती है. याची की ओर से बताया गया कि बाल विकास परियोजना अधिकारी बालोतरा की ओर से 28 जून, 2019 को विज्ञप्ति जारी की गई. इसमें तहसील के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों पर रिक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायिका के पदों के लिए आवेदन पत्र मांगे गए.
पढ़ें: भ्रष्टाचारियों की पहचान पर रोक लगाने पर भड़की भाजपा, लॉ एक्सपर्ट ने बताया असंवैधानिक
याची के राजस्व गांव गुगड़ी में पहले आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पद पर याची की माता नियुक्त थी, लेकिन उनके असामयिक निधन के चलते पद रिक्त हो गया. याची के पिता के दो पुत्रियां हैं. इस कारण माता के देहांत पश्चात दोनों पिता के पास ही रह रही हैं. याची की ओर से ये भी बताया गया कि किसी भी नागरिक को उसकी वैवाहिक स्थिति को आधार मानकर उसे सार्वजनिक रोजगार देने से इंकार नहीं किया जा सकता. अगर ऐसी शर्त अधिरोपित की जाती है, तो वह प्रथमदृष्टया अवैध, मनमानी और असंवैधानिक है.
याची के अधिवक्ता ने न्यायालय का ध्यान सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक निर्णय मधु किशकर बनाम बिहार राज्य की ओर भी दिलाया और बताया कि पूर्व में महिला बनाम पुरूष के मध्य भेदभाव होने को चुनोती दी जाती रही है. लेकिन अब तो राजस्थान सरकार के कृत्य से अविवाहित महिला बनाम विवाहित महिला के मध्य भेदभाव करने का नया अध्याय शुरू किया गया है, जो मनमाना, अवैध और गैरवाजिब है.
पढ़ें: गंभीर मामलों में विशेष पैरोल का लाभ ना देना असंवैधानिक नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि याची द्वारा आवेदन पत्र अंतिम तिथि के पश्चात पेश किया है. इसलिए नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है. साथ ही बताया कि 'महिला के विवाहित होना जरूरी' के नियम बाबत राज्य सरकार की मंशा यह है कि अविवाहित लड़की के नियुक्त कर देने के बाद उसकी शादी हो जाने पर वह अन्यत्र चली जाने से आंगनबाड़ी केंद्र का काम बाधित हो जाएगा. कोर्ट ने राज्य सरकार के तर्कों से असहमत होते हुए महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि सार्वजनिक रोजगार के लिए अविवाहित उम्मीदवार होने मात्र से उसे अपात्र मानना अतार्किक, भेदभावपूर्ण और संविधान के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.
साथ ही उच्च न्यायालय के एकलपीठ न्यायाधीश ने अपने निर्णय में व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि इस न्यायालय को यह गौर करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है कि भेदभाव करने का एक नया मोर्चा, जिसकी कल्पना या विचार तक संविधान निर्माताओं ने भी नहीं की थी. अब राज्य सरकार द्वारा अविवाहित होने की शर्त लगाकर खोल दिया है, जो अवैध है. कोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए नियुक्ति नियमावली/परिपत्र की विवाहित होने की आवश्यक शर्त नंबर 2(A)(ii) एवं विज्ञप्ति की शर्त को निरस्त करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए कि राज्य सरकार चाहे, तो अविवाहित महिला से अंडरटेकिंग ले सकती है. इस संबंध में वर्तमान नियम/परिपत्र को तदनुसार संशोधित कर सकती है. साथ ही याची को मैरिट अनुसार चार सप्ताह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति देने के आदेश दिए.