जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने चित्तौडगढ़ के कपासन थाने में दर्ज एक मुकदमे को सरकार की ओर से जनहित में वापस लेने के आदेश को चुनौती देने पर दुबारा सुनवाई करने के आदेश पारित किया है. घर में घुसकर आग लगाकर नुकसान करने के मुकदमे को राज्य सरकार की ओर से जनहित में वापस ले लिया गया था, जिसके खिलाफ निगरानी याचिका पेश की गई थी.
अधिवक्ता फिरोज खान ने बताया कि चित्तौडगढ़ में वर्ष 2007 में कपासन पुलिस थाने में पीड़ित ने आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई थी, जिसमें अनुसंधान के बाद पुलिस ने भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 147, 148, 149, 435, 436, 454, 379 के तहत 29 आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र पेश किया. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संख्या-3 चित्तौडग़ढ़ में आरोप तय होने से पहले वर्ष 2015 में राज्य सरकार के गृह विभाग ने जनहित में मुकदमा वापस ले लिया. ट्रायल कोर्ट में अपर लोक अभियोजक ने प्रार्थना-पत्र पेश कर कहा कि अभियोजन पक्ष कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता, जिस पर न्यायालय ने कार्रवाई निरस्त करते हुए प्रकरण समाप्त कर दिया.
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2007 में घर में घुसकर किया था हमला : परिवादी मुबारक उर्फ सलमान की ओर से अधिवक्ता फिरोज खान ने हाईकोर्ट के समक्ष निगरानी याचिका दायर कर इस आदेश को चुनौती दी. उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 में आरोपियों ने एकराय होकर कई घरों पर हमला करते हुए पीड़ितों के घर जला दिए थे. पुलिस ने गहन अनुसंधान के बाद अपराध प्रमाणित मानकर आरोप पत्र पेश किया था. ऐसे में बिना किसी कारण सरकार मनमर्जी से अभियोजन वापस नहीं ले सकती. विचारण न्यायालय ने भी न्यायिक विवेक का उपयोग नहीं करते हुए यांत्रिकी रूप से विचारण निरस्त करने का आदेश पारित कर गंभीर विधिक त्रुटि की है.
विचारण फिर से शुरू करने के दिए निर्देश : हाईकोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान ने संरक्षक के रूप में राज्य सरकार को प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का कर्तव्य सौंपा है. सामाजिक शांति और सुरक्षा को चुनौती देने वाला प्रत्येक अपराध समाज के विरूद्ध किया गया अपराध है और राज्य, समाज का प्रतिनिधि होने के नाते इसके लिए आवश्यक संसाधनों के साथ आरोपियों पर मुकदमा चलाने का कार्यभार लेता है. यही कारण है कि राज्य खुद को अभियोजन पक्ष के रूप में प्रस्तुत करता है. इस मामले में पीड़ित अपने जीवन और स्वतंत्रता पर हुए हमले का शिकार है. ऐसे में उसे उपचारविहीन नहीं छोड़ा जा सकता. हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत की ओर से पारित अहम न्यायिक दृष्टांतों की रोशनी में आक्षेपित आदेश को न्यायोचित नहीं ठहराते हुए रद्द कर दिया और विचारण न्यायालय को पुन: विचारण शुरू करने के निर्देश दिए हैं.