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जोधपुर: लूणी में मनाया गया राष्ट्रीय पोषण सप्ताह, शिशुओं को लगाए गए टीके

लूणी के नवसृजित पंचायत समिति धवा में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया गया. इस दौरान 50 से अधिक नवजात शिशुओं को टीके लगाए गए. साथ ही बच्चों की खानपान और पौष्टिक आहार के बारे में महिलाओं को जानकारी दी गई.

Luni news, National Nutrition Wee, Infants vaccinated
लूणी में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया गया
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Published : Sep 4, 2020, 7:54 AM IST

लूणी (जोधपुर). राष्ट्रीय पोषण सप्ताह भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और खाद्य एवं पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया है. वार्षिक पोषण कार्यक्रम देश में प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है. पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण का महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास उत्पादकता, आर्थिक , विकास और अंततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है. इसी कड़ी में गुरुवार को नवसृजित पंचायत समिति धवा में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया गया. साथ ही 50 से अधिक नवजात शिशुओं को टीके लगाए गए. इस दौरान उनकी खानपान और पौष्टिक आहार के बारे में महिलाओं को जानकारी दी गई.

शैशवावस्था एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान उचित पोषण बच्चों को जीवन में बढ़ने, विकास करने, सीखने, खेलने में भाग लेने और समाज में योगदान करने योग्य बनाता है, जबकि कुपोषण संज्ञानात्मक क्षमता शारीरिक विकास प्रतिरक्षा प्रणाली को खराब करता है और बाद के जीवन में रोग जैसे कि मधुमेह एवं हृदय रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ाता जाती है, जबकि कुपोषण कई तरीकों से प्रकट हो सकता है. अंतिम उद्देश्य समस्त बच्चों को सभी रूपों में कुपोषण से मुक्त करना है. हालांकि कई शिशु एवं बच्चों को उचित आहार नहीं मिलता है, उत्कृष्ट शिशु एवं बाल आहार प्रगति के माध्यम से बेहतर बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले महत्वपूर्ण उपाय है.

यह भी पढ़ें- नवंबर के पहले सप्ताह में होगा राजस्थान पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का आयोजन

साथ ही उन्होंने कहा कि केवल मां का दूध से महीने की अवस्था के आसपास शिशुओं के पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता इसलिए स्तनपान के साथ अन्य खाद्य पदार्थों और तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है. साथ ही इस स्तनपान से परिवर्तन काल में पारिवारिक खाद्य पदार्थों की शुरुआत को अनुरूप आहार दिया जाता है. इसमें 1 महीने से लेकर 24 महीने की अवधि अपितु स्तनपान 2 साल से ऊपर हो सकता है. यह विकास की महत्वपूर्ण अवधि है, जिसके दौरान पोषण के तहत पोषक तत्वों की कमी और बीमारी का योगदान 5 साल से कम उम्र के बच्चों में अधिक दर से होता है.

6 महीने की अवस्था के बाद सभी शिशुओं को स्तनपान के अलावा पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए, जिससे शुरुआत में 6 से 8 महीने की अवस्था के 20 दिन में दो से तीन बार दिया जाना चाहिए. वहीं 9 से 11 महीने की अवस्था में रोज तीन-चार बार यह दिया जाना चाहिए और 12 से 24 महीने की अवस्था में आवश्यकता अनुसार अतिरिक्त पोस्ट आहार अल्फा के साथ प्रतिदिन एक से दो बार दिया जाना चाहिए, ताकि स्तनपान कराने के दौरान पर्याप्त मात्रा में लगातार अनुकूल और बच्चे की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का उपयोग करके दिया जाना चाहिए.

यह भी पढ़ें- राजस्थान : झुंझुनू का लाल सुबेदार शमशेर अली चीन बॉर्डर पर शहीद

इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम प्रबंधक सहित डॉक्टर और नर्स एएनएम के साथ करीब 3.7 लाख आशा और करीब 82 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधा कर्मचारियों को आईबाईसीएफ प्रशिक्षण दिया गया है. साथ ही उपयुक्त स्तनपान परंपराओं के महत्व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिए ग्रामीण स्तरों पर आशा द्वारा बैठक आयोजित की जा चुकी है.

लूणी (जोधपुर). राष्ट्रीय पोषण सप्ताह भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और खाद्य एवं पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया है. वार्षिक पोषण कार्यक्रम देश में प्रतिवर्ष 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है. पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण का महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास उत्पादकता, आर्थिक , विकास और अंततः राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है. इसी कड़ी में गुरुवार को नवसृजित पंचायत समिति धवा में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया गया. साथ ही 50 से अधिक नवजात शिशुओं को टीके लगाए गए. इस दौरान उनकी खानपान और पौष्टिक आहार के बारे में महिलाओं को जानकारी दी गई.

शैशवावस्था एवं प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान उचित पोषण बच्चों को जीवन में बढ़ने, विकास करने, सीखने, खेलने में भाग लेने और समाज में योगदान करने योग्य बनाता है, जबकि कुपोषण संज्ञानात्मक क्षमता शारीरिक विकास प्रतिरक्षा प्रणाली को खराब करता है और बाद के जीवन में रोग जैसे कि मधुमेह एवं हृदय रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ाता जाती है, जबकि कुपोषण कई तरीकों से प्रकट हो सकता है. अंतिम उद्देश्य समस्त बच्चों को सभी रूपों में कुपोषण से मुक्त करना है. हालांकि कई शिशु एवं बच्चों को उचित आहार नहीं मिलता है, उत्कृष्ट शिशु एवं बाल आहार प्रगति के माध्यम से बेहतर बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले महत्वपूर्ण उपाय है.

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साथ ही उन्होंने कहा कि केवल मां का दूध से महीने की अवस्था के आसपास शिशुओं के पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता इसलिए स्तनपान के साथ अन्य खाद्य पदार्थों और तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है. साथ ही इस स्तनपान से परिवर्तन काल में पारिवारिक खाद्य पदार्थों की शुरुआत को अनुरूप आहार दिया जाता है. इसमें 1 महीने से लेकर 24 महीने की अवधि अपितु स्तनपान 2 साल से ऊपर हो सकता है. यह विकास की महत्वपूर्ण अवधि है, जिसके दौरान पोषण के तहत पोषक तत्वों की कमी और बीमारी का योगदान 5 साल से कम उम्र के बच्चों में अधिक दर से होता है.

6 महीने की अवस्था के बाद सभी शिशुओं को स्तनपान के अलावा पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए, जिससे शुरुआत में 6 से 8 महीने की अवस्था के 20 दिन में दो से तीन बार दिया जाना चाहिए. वहीं 9 से 11 महीने की अवस्था में रोज तीन-चार बार यह दिया जाना चाहिए और 12 से 24 महीने की अवस्था में आवश्यकता अनुसार अतिरिक्त पोस्ट आहार अल्फा के साथ प्रतिदिन एक से दो बार दिया जाना चाहिए, ताकि स्तनपान कराने के दौरान पर्याप्त मात्रा में लगातार अनुकूल और बच्चे की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का उपयोग करके दिया जाना चाहिए.

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इस कार्यक्रम के अंतर्गत स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम प्रबंधक सहित डॉक्टर और नर्स एएनएम के साथ करीब 3.7 लाख आशा और करीब 82 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधा कर्मचारियों को आईबाईसीएफ प्रशिक्षण दिया गया है. साथ ही उपयुक्त स्तनपान परंपराओं के महत्व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिए ग्रामीण स्तरों पर आशा द्वारा बैठक आयोजित की जा चुकी है.

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