जोधपुर. कोरोना के बाद लोगों में इम्युनिटी को लेकर काफी जागरूकता आई है. हर कोई इसकी बात करने लगा है, लेकिन बच्चों में इम्युनिटी बनी रहे इसको लेकर गंभीर प्रयास आयुर्वेद विश्वविद्यालय कर रहा है. विश्वविद्यालय हर माह आने वाले पुष्य नक्षत्र के दिन प्राचीनतम पद्धति के तहत स्वर्ण प्राशन की खुराक पिला रहा है. जिसमें स्वर्ण का भी अंश होता है. यह नवजात से लेकर से 16 वर्ष की आयु तक के बच्चों को दिया जाता है.
पुष्य नक्षत्र में आसानी से पचा लेते हैं बच्चेः विश्वविद्यालय के सहआचार्य डॉ. संजय श्रीवास्तव ने बताया कि स्वर्ण प्राशन में स्वर्ण अंश के साथ शहद, ब्रह्माणी, अश्वगंधा, सहित अन्य रसायन होता है. जिसका सेवन पुष्य नक्षत्र के दौरान किया जाता है. इसका कारण यह है कि इस दिन इसे बच्चे आसानी से पचा लेते है. इससे बच्चों की शारीरिक एवं मानसिक गति में अच्छा सुधार होता है. बहुत असरदार इम्युनिटी बूस्टर होता है. डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार स्वर्ण प्राशन कार्यक्रम के परिणाम को लेकर आईआईटी जोधपुर के साथ हमारा रिसर्च प्रोजेक्ट भी चल रहा है.
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रिसर्च में सर्वांगीण विकास पर नजरः डॉ. श्रीवास्वत के अनुसार आईआईटी के साथ रिसर्च में जो बच्चें लंबे समय से स्वर्ण प्राशन ले रहे हैं. उनके स्वास्थ्य को लेकर डेटा जुटाया है. ज्यादतर बच्चों के सर्दी, खांसी, जुखाम सहित अन्य साधारण बीमारियों को लेकर अस्पताल जाना कम हुआ है. उनकी शारीरिक वृद्धि भी बेहतर हुई है. ऐसे कई बिंदुओं पर अध्ययन चल रहा है. यह क्रम हमारा लगातार जारी है. हर पुष्य नक्षत्र पर 1200 से लेकर 1400 बच्चों को खुराक पिलाई जा रही है. इसका कोई दुष्परिणाम नहीं होता है.
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जोधपुर से तय हो रहा है एक प्रोटोकॉलः डॉ. संजय श्रीवास्तव के अनुसार स्वर्ण प्राशन का उपयोग सभी जगह पर होता है. सभी जगह के अलग-अलग प्रोटोकॉल व तरीके हैं. देश भर में एक रूपता लाने के लिए जोधपुर आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने कॉमन प्रोटोकॉल तैयार किए हैं. जिन्हें केंद्र के मार्फत पूरे देश में लागू करने पर काम चल रहा है. जिससे सभी बच्चों को ही तरीके से यह उपयोग औषधि दी जा सके. बच्चों को यह औषधि एक साल में 12 से 14 बार दी जाती है.
यह है स्वर्ण प्राशन परंपराः हमारे देश में वैदिक काल से ही स्वर्ण प्राशन का उपयोग हो रहा है. ऋषि मुनि संक्रमण से बचने के लिए इसका उपयोग किया करते थे. हमारे प्रचीन 16 संस्कारों में स्वर्ण का भी एक संस्कार होता है. जिसके अनुसार नवजात के मुंह में सोने का स्पर्श करवाया जाता है. इसके लिए सोने की सलाई से बच्चे की जीभ पर शहद चटाया जाता है. आजकल बहुत कम लोग इसकी पालना कर रहे हैं. कहा जाता है कि इस संस्कार का पालन पूरे नियम से जिन बच्चों के साथ होता है, उनकी अन्य से तुलना में रोगों से लड़ने की क्षमता बेहतर होती है.