जोधपुर. शहर की भीतरी परकोटे में एक हवेली ऐसी भी है जिसका एक-एक पत्थर पुष्य नक्षत्र के दिन रखा गया. बाकी के समय में हवेली के निर्माण में जुटे कारीगर पथरों को तराशने का काम करते थे. इसलिए इसका नाम ही पुष्य नक्षत्र हवेली रखा गया. ज्योतिष में पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व है. उसके अनुरूप वास्तु शास्त्र में भी इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. एक साल में सिर्फ 13 पुष्य नक्षत्र आते है. ऐसे में रघुनाथमल जोशी द्वारा बनाई गई इस हवेली का निर्माण 21 साल चला. इस दौरान सिर्फ 273 दिन ही पत्थरों की चुनाई की गई थी. इस हवेली को लेकर एक जापानी ने डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी.
यूरोपियन शैली में हुआ निर्माण : यह हवेली चांदपोल के पास फुलेराव की घाटी के मार्ग पर स्थित है. इसका निर्माण 1890 ईस्वी में जोधपुर नरेश जसवंत सिंह द्वितीय के कामदार पुष्करणा रघुनाथमल जोशी उर्फ भूर जी ने आरंभ करवाया था, जो 1911 तक चला. हवेली के निर्माण की योजना इस प्रकार बनाई गई की हवेली के लिए आवश्यक पत्थरों की तुड़ाई एवं घड़ाई पूरे वर्ष चलती रहे, लेकिन चिनाई केवल पुष्य नक्षत्र में होती थी. भूरजी के परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य आनंद जोशी बताते हैं कि हवेली का निर्माण यूरोपियन शैली में हुआ है. भूरजी बहुत वास्तु शास्त्र को मानते थे. राजा के यहां थे इसलिए निर्माण में अंग्रेजी शैली अपनाई थी.
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लगाई किंग एडवर्ड की मूर्ति : आनंद जोशी बताते हैं कि यूरोपियन शैली की इस हवेली के अंदर प्रवेश करते ही चौक में एक फूल है. जहां जालियों के बीच में इंग्लैंड के तत्कालीन सम्राट किंग एडवर्ड की प्रतिमा लगाई गई है. एक खंबे पर रानी विक्टोरिया की भी मूर्ति लगी है. जोशी का कहना हैं कि हवेली बनने के बाद किंग भी यहां आए थे. इसकी नक्काशी को देखकर प्रभावित हुए थे. हवेली में एक हाल में पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी देखते ही बनती है. जोशी का कहना है कि हम आज भी उसी रूप में पुरातत्व के हिसाब से इसकी देखरेख और रखरखाव करते है. जिससे इसका वैभव बना रहे.