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पंरपरागत बीजों को संरक्षित करने की पहल, देश भर में कृषि मंत्रालय कर रहा सर्वे - Traditional seeds

कृषि मंत्रालय पूरे देश में सर्वे कर ऐसे पंरपरागत बीजों पर अध्ययन कर रहा है जो किसानों को अच्छी फसल देते हैं. जिसके तहत जिले के काजरी में पंरपरागत बीजों पर अध्ययन किया जा रहा है. यहां खास तौर पर वैज्ञानिक मूंग के बीजों पर काम कर रहे हैं.

कृषि मंत्रालय कर रहा सर्वे, Ministry of Agriculture is conducting the survey
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Published : Sep 30, 2019, 8:53 PM IST

जोधपुर. जिले में कृत्रिम यानी हाईब्रिड रूप से तैयार होने वाले फसली बीजों के मुकाबले परंपरागत बीज किसानों को ज्यादा फसल देते हैं. इन बीजों की गुणवत्ता ज्यादा होती है जो कम बारिश में भी अच्छी फसल देते हैं. जिसे लेकर कृषि मंत्रालय पूरे देश में सर्वे कर ऐसे पंरपरागत बीजों पर अध्ययन कर रहा है जो किसानों को अच्छी फसल देते हैं.

पंरपरागत बीजों को लेकर कृषि मंत्रालय कर रहा सर्वे

वहीं जोधपुर स्थित काजरी में भी इसको लेकर काम चल रहा है. यहां खास तौर से मूंग के बीजों पर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. काजरी परिसर में मौजूद विभिन्न किस्मों के बीज के अलावा किसानों से प्राप्त नमूनों पर भी काम हो रहा है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बाजार में आ रहे हाईब्रिड बीज के मुकाबले बेहतर साबित हो सकते हैं. ग्रामीण विकास विज्ञान समिति किसानों के साथ मिल कर जोधपुर और जैसलमेर के आठ गांवों में काम कर रही है. जो परंपरागत बीजों को सग्रहित कर रही है. जिसे काजरी में लगाकर अध्ययन किया जा रहा है.

इस परियोजना के संयोजक राजेंद्र कुमार का कहना है कि हमारा उद्देश्य है कि जो बीज किसानों को सूखें में भी फसल दे रहा है उसे संरक्षित कर ज्यादा से ज्याद किसानों तक पहुंचाया जाए. जिससे किसान की आजीविका बढ़ सके.

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वहीं इस परियोजना में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के साथ अन्य 18 विभाग भी शामिल है जो मूंग, मोठ, बाजारा सहित अन्य पर पूरे भारत में काम कर रहे है. जिसके तहत बीजों के जिनोम पर रिसर्च की जा रही है. काजरी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजवंत कालिया का कहना है कि जोधपुर की काजरी में 4100 मूंग और 1545 मोठ के जर्म प्लाज्मा लगा रखें है जिन पर अध्ययन किया जा रहा है.

जोधपुर. जिले में कृत्रिम यानी हाईब्रिड रूप से तैयार होने वाले फसली बीजों के मुकाबले परंपरागत बीज किसानों को ज्यादा फसल देते हैं. इन बीजों की गुणवत्ता ज्यादा होती है जो कम बारिश में भी अच्छी फसल देते हैं. जिसे लेकर कृषि मंत्रालय पूरे देश में सर्वे कर ऐसे पंरपरागत बीजों पर अध्ययन कर रहा है जो किसानों को अच्छी फसल देते हैं.

पंरपरागत बीजों को लेकर कृषि मंत्रालय कर रहा सर्वे

वहीं जोधपुर स्थित काजरी में भी इसको लेकर काम चल रहा है. यहां खास तौर से मूंग के बीजों पर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. काजरी परिसर में मौजूद विभिन्न किस्मों के बीज के अलावा किसानों से प्राप्त नमूनों पर भी काम हो रहा है.

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वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बाजार में आ रहे हाईब्रिड बीज के मुकाबले बेहतर साबित हो सकते हैं. ग्रामीण विकास विज्ञान समिति किसानों के साथ मिल कर जोधपुर और जैसलमेर के आठ गांवों में काम कर रही है. जो परंपरागत बीजों को सग्रहित कर रही है. जिसे काजरी में लगाकर अध्ययन किया जा रहा है.

इस परियोजना के संयोजक राजेंद्र कुमार का कहना है कि हमारा उद्देश्य है कि जो बीज किसानों को सूखें में भी फसल दे रहा है उसे संरक्षित कर ज्यादा से ज्याद किसानों तक पहुंचाया जाए. जिससे किसान की आजीविका बढ़ सके.

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वहीं इस परियोजना में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के साथ अन्य 18 विभाग भी शामिल है जो मूंग, मोठ, बाजारा सहित अन्य पर पूरे भारत में काम कर रहे है. जिसके तहत बीजों के जिनोम पर रिसर्च की जा रही है. काजरी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजवंत कालिया का कहना है कि जोधपुर की काजरी में 4100 मूंग और 1545 मोठ के जर्म प्लाज्मा लगा रखें है जिन पर अध्ययन किया जा रहा है.

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Body:पंरपरागत बीजों को संरक्षित करने की पहल, देश भर में सर्वे
जोधपुर।
(कृत्रिम हाईब्रिड )रूप से तैयार होने वाले फसली बिजों के मुकाबले परंपरागत बीज किसानों को ज्यादा फसल देते हैं, इन बिजों की गुणवत्ता ज्यादा होती है जो कम बारिश में भी अच्छी फसल देते हैं। इसको लेकर पूरे देश में कृषि मंत्रालय पूरे देश में सर्वे कर ऐसे पंरपरागत बीजों पर अध्ययन कर रहा है। जो किसानों को अच्छी फसल देते हैं। जोाधपुर स्थित काजरी में भी इसको लेकर काम चल रहा है। यहां खास तौर से मूंग के बीजों पर वैज्ञानिक काम कर रहे हे, काजरी परिसर में मौजूद विभिन्न किस्मों के बीज के अलावा किसानों से प्राप्त नमूनों पर भी काम हो रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बाजार में आ रहे हाईब्रिड बीज के मुकाबले में बेहतर साबित हो सकते हैं। ग्रामीण विकास विज्ञान समिति किसानों के साथ मिल कर जोधपुर व जैसलमेर के आठ गांवों में काम कर रही है। जो परंपरागत बीजों को सग्रहित कर रही है इसे काजरी में लगाकर अध्ययन किया जा रहा है। इस परियोजना के संयोजक राजेंद्र कुमार का कहना हे कि हमारा उद्देश्य है कि जो बीज किसानों को सूखें में भी फसल दे रहा है उसे संरक्षित करे और ज्यादा से ज्याद किसानों तक पहुंचाया जिससे किसान की आजीविका बढ सके। इस परियोजना में भारत सरकार के डिपार्टम्ेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के साथ  18 अन्य विभाग भी शामिल है। जो मूंग मोठ बाजारा सहित अन्य पर पूरे भारत में काम चल रहा है। बीजों के जिनाेम पर रिसर्च की जा रही है। काजरी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजवंत कालिया का कहना है कि जोधपुर की काजरी में 4100 मूंग व 1545 मोठ के जर्म प्लाज्मा लगा रखें जिन पर अध्ययन किया जा रहा है।
बाईट 1 : राजेंद्र कुमार, परियोजना, संयोजक
बाईट 2 : डॉ राजवंत कालिया, वरिष्ठ वैज्ञानिक काजरी जोधपुर



Conclusion:
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