जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए कहा कि वैवाहिक सम्बंधों में पक्षों की निजता का सम्मान करना चाहिए और ऐसे मामलों में सर्तकता बरतने के साथ उनकी पहचान को गोपनीय रखा जाए. कोर्ट ने रजिस्ट्ररी को निर्देश दिए हैं कि राज्य के सभी पारिवारिक न्यायालयों को एक परिपत्र जारी करे की भविष्य में पारिवारिक मामलों में निजता का पूरा ध्यान रखते हुए उनके नाम व मोबाइल नम्बर भी गोपनीय रखें और उनको एक्सएक्स और वाईवाई के नाम से प्रदर्शित किया जाए.
जस्टिस अरूण मोंगा की एकलपीठ में पिता की कस्टडी में रह रहे दो नाबालिग बच्चों से मां ने मिलने के लिए याचिका पेश की थी. हाईकोर्ट ने याचिका को निस्तारित करते हुए यह आदेश दिया कि बच्चों को मनोचिकित्सक के पास काउंसलिंग के लिए भेजा जाए. मामले के अनुसार बच्चों की मां ने 25 अक्टूबर, 2021 को पारिवारिक न्यायालय जोधपुर में एक प्रार्थना पत्र पेश कर अपने दो बच्चों की अभिरक्षा व उसे बच्चों से मिलवाने के लिए प्रस्तुत किया. जिस पर पारिवारिक न्यायालय ने 30 मई, 2023 को बच्चों को न्यायालय में उपस्थित रखने का आदेश उनके पिता को दिया था. जिसे माता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
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हाईकोर्ट ने इस मामले में 8 नवम्बर, 2023 को बच्चों के पिता को यह आदेश दिया था कि वो हर दूसरे दिन इन बच्चों को अपने घर पर उनकी माता से मिलवाएगा. 23 नवम्बर, 2023 को बच्चों के पिता ने हाईकोर्ट ने यह प्रार्थना की कि क्योंकि ये बच्चे खुद अपनी माता से नहीं मिलना चाह रहे हैं. इस कारण उन्हें अपनी मां से मिलने के लिए बाध्य नहीं किया जाए. बच्चों की माता के अधिवक्ता सलमान आगा ने यह तर्क दिया कि बच्चों की मां को उनसे मिलने का अधिकार है और बच्चों को उनकी मां से नहीं मिलने देना, उनके हितों के विपरीत होगा. इस पर हाईकोर्ट ने दोनों बच्चों को कोर्ट में बुलवाकर उनसे उनकी इच्छा जानी, तो दोनों बच्चों ने अपनी माता से मिलने से स्पष्ट मना कर दिया.
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इस पर हाईकोर्ट ने यह व्यक्त किया कि इस सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि बच्चों को सिखाया-पढ़ाया होगा. जिसकी वजह से वे अपनी जन्म देने वाली मां से मिलने से इनकार कर रहे हैं. कोर्ट ने इन बच्चों की काउंसलिंग मनोचिकित्सक से करवाने की आवश्यकता महसूस की और जोधपुर एम्स के डायरेक्टर को यह आदेश दिया कि वो इसके लिए मनोचिकित्सक की नियुक्ति करे जो लगातार छह सप्ताह तक प्रत्येक शनिवार को इन दोनों बच्चों की काउंसलिंग करे और उसके बाद इसकी रिपोर्ट पारिवारिक न्यायालय जोधपुर को पेश करे. हाईकोर्ट ने यह भी व्यक्त किया कि पिता द्वारा इस प्रकरण को लम्बा करने के लिए बार-बार प्रार्थना पत्र पेश किए गए हैं. इसीलिए उस पर 2 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है जो राशि बच्चों की माता को दी जाएगी.