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Rajasthan High Court: भ्रष्टाचार मामलों के प्रस्ताव व मंजूरी को लेकर हाईकोर्ट गंभीर, कोर्ट ने मांगा हलफनामा - तय फारमेट में ही अभियोजन मंजूरी

राजस्थान हाईकोर्ट ने रिश्वत के मामलों में सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी पर एसीबी की ओर से अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजने एवं अधिकारियों की ओर से तय फारमेट में ही अभियोजन मंजूरी देने को गंभीर माना है. कोर्ट ने इस मामले में सरकार से हलफनामा मांगा है.

HC on format of sanction for prosecution by ACB
Rajasthan High Court: भ्रष्टाचार मामलों के प्रस्ताव व मंजूरी को लेकर हाईकोर्ट गंभीर, कोर्ट ने मांगा हलफनामा
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Published : Mar 30, 2023, 10:44 PM IST

जोधपुर. प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तारी के मामले में सालों से चले आ रहे तय फारमेट में एसीबी की ओर से अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजने एवं अधिकारियों द्वारा तय फारमेट में ही अभियोजन मंजूरी देने के मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए सरकार से हलफनामा मांगा है. डॉ जस्टिस पुष्पेन्द्रसिंह भाटी की अदालत में अभियोजन स्वीकृति पर रोक के लिए भंवरलाल बरोठ ने याचिका पेश की थी, जिसमें अधिवक्ता संजीत पुरोहित ने पैरवी करते हुए तथ्यों से अवगत करवाया कि अभियोजन स्वीकृति तय फारमेट में है जिससे उसका अपराध नहीं बनता है.

इस पर कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए एसीबी कोर्ट संख्या 01 उदयपुर में याचिकाकर्ता के मामले में चल रहे ट्रायल पर रोक लगा दी. कोर्ट ने इसी तरह के अन्य मामले जो विचाराधीन हैं, उनकी बढ़ती संख्या एवं अभियोजन की त्रुटि की वजह से अधिकांश केस में आरोपियों के बरी होने पर गंभीरता दिखाते हुए रजिस्ट्ररी को निर्देश दिए कि अभियोजन स्वीकृत से जुड़े सभी मामले जो अभी पेंडिंग हैं, उनको 11 अप्रैल को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए.

पढ़ेंः अभियोजन स्वीकृति मिलने मात्र के आधार पर निलंबित करने पर मांगा जवाब, निलंबन पर लगाई रोक

अतिरिक्त महाधिवक्ता करणसिंह राजपुरोहित व अतिरिक्त महाधिवक्ता सुनील बेनीवाल को नोटिस जारी करते हुए कॉपी देने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने तीन बिन्दुओं पर सचिव गृह विभाग और सचिव कार्मिक विभाग राजस्थान सरकार से अलग-अलग हलफनामा मांगा है. जिसमें बिन्दु एक में अभियोजन स्वीकृति के लिए कानून में क्या आवश्यकता है. बिन्दु 2 में जब भी अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजा जा रहा है जो कि सालों से एक जैसा ही है और अधिकारी भी तय मसौदे के अनुसार ही अभियोजन स्वीकृति जारी करते हैं. जबकि सैकड़ों मामलों में मंजूरी विफल रहती है, जो यह दर्शाता है कि बिना दिमाग का उपयोग किए ही अभियोजन स्वीकृति जारी की गई है.

पढ़ेंः सदन में सवाल : दागी अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई...कटारिया बोले, '2013 से अभियोजन स्वीकृति के 279 केस पेंडिंग'

बिन्दु 3 में राज्य सरकार से जब भी स्पष्ट करने को कहा है कि अभियोजन मंजूरी आदेशों को मजबूत करने के लिए और खामियों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाया ताकि आरोपी बच ना सके. कोर्ट ने दोनों ही अधिकारियों को हलफनामा पेश करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि हलफनामे और इन बिन्दुओं का उत्तर नहीं दिया गया, तो कोर्ट जुर्माना लगाने पर विचार करेगा. कोर्ट ने कहा कि सालों से जांच में चूक और बार-बार ऐसी खामियों को लेकर कहा कि केवल इस मामले में ही नहीं बल्कि ऐसी प्रकृति के सभी मामलों के सामान्य अधिनिर्णय के लिए जो कि बड़ी संख्या में लम्बित है. कोर्ट ने 11 अप्रैल को इस मामले में अगली सुनवाई मुकरर्र की है.

जोधपुर. प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तारी के मामले में सालों से चले आ रहे तय फारमेट में एसीबी की ओर से अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजने एवं अधिकारियों द्वारा तय फारमेट में ही अभियोजन मंजूरी देने के मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए सरकार से हलफनामा मांगा है. डॉ जस्टिस पुष्पेन्द्रसिंह भाटी की अदालत में अभियोजन स्वीकृति पर रोक के लिए भंवरलाल बरोठ ने याचिका पेश की थी, जिसमें अधिवक्ता संजीत पुरोहित ने पैरवी करते हुए तथ्यों से अवगत करवाया कि अभियोजन स्वीकृति तय फारमेट में है जिससे उसका अपराध नहीं बनता है.

इस पर कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए एसीबी कोर्ट संख्या 01 उदयपुर में याचिकाकर्ता के मामले में चल रहे ट्रायल पर रोक लगा दी. कोर्ट ने इसी तरह के अन्य मामले जो विचाराधीन हैं, उनकी बढ़ती संख्या एवं अभियोजन की त्रुटि की वजह से अधिकांश केस में आरोपियों के बरी होने पर गंभीरता दिखाते हुए रजिस्ट्ररी को निर्देश दिए कि अभियोजन स्वीकृत से जुड़े सभी मामले जो अभी पेंडिंग हैं, उनको 11 अप्रैल को एक साथ सूचीबद्ध किया जाए.

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अतिरिक्त महाधिवक्ता करणसिंह राजपुरोहित व अतिरिक्त महाधिवक्ता सुनील बेनीवाल को नोटिस जारी करते हुए कॉपी देने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने तीन बिन्दुओं पर सचिव गृह विभाग और सचिव कार्मिक विभाग राजस्थान सरकार से अलग-अलग हलफनामा मांगा है. जिसमें बिन्दु एक में अभियोजन स्वीकृति के लिए कानून में क्या आवश्यकता है. बिन्दु 2 में जब भी अभियोजन स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजा जा रहा है जो कि सालों से एक जैसा ही है और अधिकारी भी तय मसौदे के अनुसार ही अभियोजन स्वीकृति जारी करते हैं. जबकि सैकड़ों मामलों में मंजूरी विफल रहती है, जो यह दर्शाता है कि बिना दिमाग का उपयोग किए ही अभियोजन स्वीकृति जारी की गई है.

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बिन्दु 3 में राज्य सरकार से जब भी स्पष्ट करने को कहा है कि अभियोजन मंजूरी आदेशों को मजबूत करने के लिए और खामियों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाया ताकि आरोपी बच ना सके. कोर्ट ने दोनों ही अधिकारियों को हलफनामा पेश करने के निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि हलफनामे और इन बिन्दुओं का उत्तर नहीं दिया गया, तो कोर्ट जुर्माना लगाने पर विचार करेगा. कोर्ट ने कहा कि सालों से जांच में चूक और बार-बार ऐसी खामियों को लेकर कहा कि केवल इस मामले में ही नहीं बल्कि ऐसी प्रकृति के सभी मामलों के सामान्य अधिनिर्णय के लिए जो कि बड़ी संख्या में लम्बित है. कोर्ट ने 11 अप्रैल को इस मामले में अगली सुनवाई मुकरर्र की है.

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