जोधपुर. दीपावली पर मिट्टी के दीये का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा लोग करें, इसके लिए जिले के एक युवक ने एक मुहिम छेड़ रखी है. शहर के स्कूलों में जाकर वह बच्चों को चाक पर मिट्टी से दीये और अन्य बर्तन बनाना सीखा रहे हैं. उनका उदृेश्य है कि मिट्टी के दीयों का अधिक प्रयोग हो ताकि पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होने के साथ ही चाइनीज लाइटें खरीदने से भी लोग परहेज करें. 'मिट्टीवाला' के नाम से मशहूर (Mittiwala is making clay lamps in Jodhpur) हो रहे गोपाल प्रजापत इस मुहिम को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं.
कुछ समय पहले तक गोपाल को खुद यह काम नहीं आता था, लेकिन कोरोना काल में अपने दादा से उन्होंने यह पुश्तैनी काम सीखा तो उसे लगा कि इसे और आगे बढ़ाया जा सकता है. इसके बाद गोपाल ने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी छोड़ इसे ही अपना लिया. अब वह यही काम कर रहे हैं. वह मिट्टी के आइटम के स्टॉल भी लगाते हैं और स्कूलों में बच्चों के लिए वर्कशॉप भी करते हैं जिससे उनकी कला यह हमेशा जीवित रह सकें.
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सेहत के लिए लाभदायक
गोपाल का कहना है किसी जमाने में (Gopal Prajapat known as Mittiwala in Jodhpur) हमारे पूर्वज मिट्टी के बर्तन का ही प्रयोग किया करते थे. मिट्टी से बने बर्तन में बना भोजन सेहत के लिए फायदेमंद होता है. इसके कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं. जबकि आज स्टील, एल्यूमिनियम, लोहे और प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग हो रहा है जिनके दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ते हैं. मिट्टी के बर्तन का प्रयोग कर हम पुरातन संस्कृति को बचाए रखने के साथ लोगों को रोजगार भी दे सकते हैं.
बच्चों का होता है मानसिक विकास
स्कूल में छोटे बच्चों को मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाने वाले गोपाल का कहना है कि अगर बच्चा मिट्टी को अपनी सोच के आधार पर आकार देता है औऱ इसे नियमित करता है तो उसका मानसिक विकास भी होता है. क्योंकि चाक की मिट्टी पर वह जो बनाते हैं उसका परिणाम उनके सामने होता है जिसमें वे लगातार सुधार करना भी सीखते हैं.
देश भर से सैंपल एकत्र किए
गोपाल ने बताया कि यह काम शुरू करने से पहले वह मिट्टी की जानकारी लेने के लिए 2 महीने तक अलग-अलग जगह पर गए. गुजरात, कोलकाता और दक्षिण भारत गए और मिट्टी से बनने वाले सामान के सैंपल एकत्र किए और जोधपुर में बेचे. उसके बाद खुद काम शुरू किया और अपना नाम 'मिट्टी वाला' रखा. गोपाल बताते हैं कि अभी उसके पास 28 लोग काम करते हैं. राजस्थान सिविल सर्विसेज की तैयारी छोड़कर इस काम में आने के बाद अब कुछ और करने का मन नहीं है, जो काम परिवार में लगभग बंद हो चुका था वह उसे आगे बढ़ाएंगे. उसकी बहन पायल कहती हैं कि पढ़ाई में गोपाल होशियार था. सबको उम्मीद थी कि वह अच्छी नौकरी कर लेगा लेकिन अचानक उसके यह काम शुरू करने पर सब घर वालों ने उसे मना किया लेकिन अब सफल हो चुका है.