जोधपुर. विधानसभा चुनाव से पहले हर जाति वर्ग को साधने में जुटी कांग्रेस पार्टी के ओबीसी विभाग की ओर से गुरुवार को जोधपुर में संभाग स्तरीय सम्मेलन का आयेाजन किया गया. इस मौके पर जोधपुर जिला कांग्रेस कमेटी ओर ओबीसी विभाग के बीच खींचतान खुलकर सामने आ गई. इसमें आयोजक ने कहा कि कांग्रेस हमें सम्मान नहीं देती है.
सम्मेलन में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के पदाधिकारी शामिल नहीं हुए. ओबीसी वर्ग की विधायक मनीषा पंवार की फोटो बैनर पर नहीं लगाने का मामला भी सामने आया. जोधपुर कांग्रेस के ओबीसी विभाग के जिलाध्यक्ष नरेंद्र शर्मा ने साफ शब्दों में कहा कि जोधपुर जिला कांग्रेस कमेटी हमें सहयोग नहीं कर रही है. मैं छह माह से अध्यक्ष हूं, लेकिन मुझे पता है, हम क्या सहन कर रहे हैं. हमें किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता है. सम्मान नहीं दिया जाता है. जबकि हमने इस कार्यक्रम के लिए जिला कांग्रेस के पदाधिकारियों को विधिवत आमंत्रण दिया, लेकिन इसके बावजूद नहीं आए. वे लोग ओबीसी को बांटने में लगे हैं.
शर्मा ने बताया कि ओबीसी वर्ग की जनसंख्या 55 प्रतिशत है. विधानसभा चुनाव में इनकी महती भूमिका होती है. सरकार ने हाल ही में 27 प्रतिशत आरक्षण की बात कही है. ऐसे में यह वर्ग सबके लिए महत्वपूर्ण है. हम चाहते हैं कि जिसकी जितनी बड़ी संख्या, उतनी भागीदारी हो.
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ओबीसी एमएलए का फोटो नहीं लगाया: ओबीसी सम्मेलन के पोस्टर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के साथ अशोक गहलोत का फोटो लगाया गया. स्थानीय स्तर पर जोधपुर में मूल ओबीसी का चेहरा बनी विधायक मनीषा पंवार का चेहरा इस सम्मेलन के पोस्टर पर नजर नहीं आया. जबकि नगर निगम उत्तर की महापौर कुंति देवडा, आरसीए अध्यक्ष वैभव गहलोत के फोटो लगाए गए. इसको लेकर जिलाध्यक्ष ने बताया कि हाल ही में यहां अल्पसंख्यक विभाग के सम्मेलन में भी स्थानीय नेताओं के फोटो नहीं थे. लेकिन ओबीसी के सम्मेलन में इसको इश्यू बनाया जा रहा है. सम्मेलन में शामिल होने आए ओबीसी विभाग के चैयरमेन अजय यादव ने कहा कि एमएलए का फोटो लगाना चाहिए था. यह स्थानीय स्तर का मुद्दा है.
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ओबीसी में भी मूल ओबीसी का संघर्ष: उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़े वर्ग को ओबीसी से संबोधित किया जाता है. लेकिन इसमें भी मूल ओबीसी भी है. जिसमें छोटी जातियां आती हैं. जो शुरूआत से ओबीसी में आती थीं. लेकिन बाद में राजनीतिक फायदे के लिए पार्टियों ने बड़े वर्गों को शामिल कर दिया. इससे छोटी जातियों का मूल अेाबीसी का समूह बन गया. ऐसे ओबीसी में मूल ओबीसी अपने असितत्व का संघर्ष हर स्तर पर कर रही है. राजनीतिक दल भी ओबीसी के नाम पर बड़े वर्ग के प्रतिनिधियों को जगह देते हैं.