खेतड़ी/झुंझुनू. तकनीकी संस्थानों से उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद युवाओं की भीड़ जहां एमएनसी और आईटी फील्ड में करियर बनाने में लगी है वहीं खेतड़ी के युवा खेती की ओर रुख कर रहे हैं. जैव प्रौद्योगिकी से स्नातकोत्तर करने के बाद नौकरी करने के बजाए आधुनिक खेती पर फोकस कर रहे हैं. युवाओं ने परंपरागत रूप से चल रही पौधशाला और सब्जियों की खेती में आधुनिक तकनीक अपनाई और धरती सोना उगलने लगी. इससे युवा किसान साल भर में लाखों रुपए का कारोबार कर रहे हैं.
पढ़ाई के बाद खेती में भविष्य बनाने के साथ युवा किसान खुद तो आत्मनिर्भर बन ही रहे हैं, अपने साथ अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं. आज हम बात कर रहे हैं खेती को नया आयाम देने वाले युवा और प्रगतिशील किसान गजेंद्र जलंधरा की. कानाराम पौधशाला चलाने वाले गजेंद्र ने आधुनिक खेती अपनाकर कृषि क्षेत्र में सफलता पाई है.
जैव प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने के बाद उच्च तकनीक से पौधशाला और सब्जियों के उत्पादन से आत्मनिर्भर भारत और किसानों की आय दोगनी करने के नारे को इस युवा ने सार्थक कर दिया है. योजनाबद्ध व उच्च तकनीक से खेती-बाड़ी कर उन्होंने खेती में अवसर तलाशने वाले युवाओं को नई राह दिखाई है. 2006 में गजेंद्र जलंधरा ने इंजीनियरिंग के बाद नौकरी की तलाश की लेकिन मनचाही जॉब नहीं मिलने के बाद निराश होकर खेती करने की सोची.
अपनी पढ़ाई का उपयोग उन्होंने खेती के काम में लगाया और कृषि क्षेत्र में उच्च तकनीक व देसी खाद से तैयार सब्जियों से उनका साल भर का टर्नओवर करोड़ों में हो रहा है. साल भर में अपने 6 फार्म हाउस पर वह सीजनल सब्जियां तैयार करते हैं तथा फिर उसे मंडियों में बेचते हैं. 2020 में करीब 25 बीघा जमीन पर गोभी की फसल तैयार की जिसमें करीब 20 लाख रुपए तक की गोभी वे अब तक बेच चुके हैं.
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जबकि इससे ज्यादा गोभी अभी भी खेत में तैयार है. प्रतिदिन दो पिकअप सब्जियों की उनके फार्म से नीमकाथाना, चिड़ावा, सिंघाना की सब्जी मंडियों में बेचने के लिए भेजी जाती है. फार्म हाउस पर उन्नत किस्म की टमाटर, मिर्च, बैंगन की पौध तैयार की जाती है जो झुंझुनू, सीकर, चूरू जिले के साथ ही हरियाणा के किसान भी पौध लेकर जाते हैं.
50 लोगों को लॉकडाउन में भी दे रखा था रोजगार
कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान कल कारखाने बंद हो गए थे जिससे मजदूर वर्ग पर खासा पड़ा था. वे एक राज्य से दूसरे राज्य पलायन करते नजर आ रहे थे. उन पर आर्थिक संकट भी गहरा गया था. ऐसे में कानाराम फार्म के मालिक गजेंद्र जलंधरा ने 50 लोगों को रोजगार दे रखा था जिसमें बिहार के भी 20 से 25 मजदूर कार्यरत हैं. उन्हें वेतन व रहने खाने की भी सुविधा दी गई. अभी भी यहां बिहार के 20 मजदूर कार्य कर रहे हैं. स्थानीय मजदूर भी नियमित रूप से कानाराम फार्म हाउस पर कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
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देसी खाद से पौध तैयार कर बोते हैं सब्जियां
कानाराम कृषि फार्म की विशेष बात यह है कि पूरे 6 फार्म हाउस पर सिर्फ देशी खाद जिसमें गोबर की खाद का ही प्रयोग किया जाता है जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता और सब्जियां भी स्वादिष्ट और बढ़िया तैयार होती है.
बीमारियों में लाभदायक है कानाराम फार्म हाउस की ब्रोकली गोभी
फार्म हाउस पर पत्ता गोभी, फूलगोभी के साथ साथ ब्रोकली की भी फसल तैयार की जाती है जो कैंसर रोग के उपचार में बेहद उपयोगी मानी जाती है. प्रगतिशील किसान गजेंद्र ने बताया कि ब्रोकली के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. सीमित मात्रा में ब्रोकली तैयार की जाती है जो दिल्ली व जयपुर तक भेजी जाती है. ब्रोकली की खास बात यह है कि यह हरे रंग की होती है और कैंसर रोगियों के लिए अत्यधिक लाभदायक मानी जाती है. मंडियों में इसके भाव भी अच्छे मिलते हैं.
व्यापारियों की तरह भरते हैं आयकर रिटर्न
किसान गजेंद्र ने जय जवान, जय किसान के नारे को बखूबी बुलंद किया है. उनकी पौधशाला का व्यापार उच्च तकनीक के साथ-साथ उनको बड़े व्यापारियों की कतार में खड़ा करता जा रहा है. बताते हैं कि सब्जियों से ही करोड़ों का टर्नओवर होता है. गजेंद्र ने बताया कि प्रतिवर्ष आयकर भरते हैं जिसका पूरा लेखा-जोखा भी रखते हैं.