झुंझुनू. 'जब तक धरती नहीं तपती, सांगरी खेजड़ी पर नहीं फलती.' जी हां राजस्थान के कल्पवृक्ष कहे जाने वाले राज्य वृक्ष खेजड़ी जो हर साल हमें मारवाड़ का मेवा देती है, उस पर इस बार मौसम की कतरनी चल चुकी है. सांगरी...दरअसल, खेजड़ी का फल है और इसे फली (बींस) भी कहते हैं.
मार्च से लेकर जुलाई तक के महीने में इन फलियों को पकने से ठीक पहले तोड़ दिया जाता है. लेकिन इस बार खेजड़ी पर सांगरी नहीं दिखाई दे रही है. इसका कारण यह है कि मार्च और अप्रैल के महीने में तापमान में इतनी गिरावट रही है. कभी बारिश हुई है, कभी बादल हुए तो कभी बिजलियां कडकी. इसी वजह से इस बार खेजड़ी पर सांगरी बिल्कुल नहीं लगी है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बार सांगरी के लगने से पहले जो पुष्प खिलता है, जिसको स्थानीय भाषा में मींजर कहते हैं वह तो जमकर लगी. लेकिन इसके बाद आंधियों में झड़ गई और जो बची इसे कम तापमान ने निगल लिया. कम तापमान की वजह से इसमें रोका गया और सांगरी की फली गांठ नुमा बन गई.
मारवाड़ के लोग करते हैं साल भर उपयोग
इन्हें तोड़ के उबाला जाता है, फिर सुखा लिया जाता है. इसके बाद इसका साल भर इस्तेमाल किया जाता है. सांगरी की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर है. सांगरी में वे सभी छह रस हैं, जो भोजन को सुपाच्य बनाते हैं. सांगरी पौटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, जिंक और आयरन जैसे खनिजों से समृद्ध होती है. प्रोटीन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत भी है. इसलिए मारवाड़ के लोगों में इन सब की पूर्ति सांगरी कर देती है.
इसके अलावा सांगरी की फली में मध्यम मात्रा में सेपोनिन होते हैं, जो रक्त में प्रतिरक्षा प्रणाली और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं. सांगरी को उबालकर इसके पानी को चीनी के साथ मिश्रित करके पिलाने से गर्भपात का खतरा कम किया जा सकता है. यह शीतलन रोधी के रूप में भी कॉम करता है. साथ ही यह एक टॉनिक के रूप में कुष्ठ रोग, पेचिश का इलाज करता है. इसके अलावा ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, ल्यूकोडर्मा, बवासीर और मांसपेशियों का कांपना के लिए रामबाण इलाज है.
मारवाड़ी सेठों की भी है खास पसंद
मारवाड़ में शेखावाटी से निकलकर दुनिया में अपने बिजनेस का डंका बजाने वाले मारवाड़ी लोग आज भी सांगरी की सब्जी को हर हाल में अपने वतन से मंगवाते हैं. यही नहीं भारत की विश्व-विख्यात सब्जी, जिसके चाहने वाले दुनिया भर में भी हैं. सांगरी राजस्थान के उन पारंपरिक सब्जियों में से एक है, जिसकी तुलना सूखे मेवों से की जाती है. कहा जाता है कि सागरी जैसी सुपाच्य स्वादिष्ट सब्जी थार के अलावा पूरी दुनिया में कहीं नहीं है.
गांव की झोंपड़ी से निकलकर देश के फाइव स्टार होटलों की थालियों में जगह बना चुके मारवाड़ के मेवों के नाम से मशहूर सांगरी के भाव की बात की जाए तो यह है काजू-बादाम से भी महंगी हैं. सांगरी की सब्जी खराब नहीं होने के कारण घरों में इन्हें प्राथमिकता से बनाया जाता है. शादी समारोह या पर्वों पर ये सब्जियां आज भी शौक से बनाई जाती हैं. ऐसे में शहरों में 900 से 1 हजार रुपए किलो में सांगरी बिकती है. लेकिन संभवतः इस बार कोरोना की वजह से शादी विवाह के समारोह नहीं होने हैं. इसलिए लोगों की प्लेट में भी यह सब्जी इस साल खाने में मुश्किल ही मिलेगी.