झुंझुनूं. राजस्थान के झुंझुनू जिले से करीब 70 किमी दूर अरावली पर्वत में बसा लोहार्गल रमनीक और सुंदर तीर्थस्थल है. अरावली की तलहटी में यहां एक साथ 108 मंदिर स्थित है. यहां देश का एक मात्र सूर्य मंदिर है, जहां सूर्यदेव अपनी पत्नी छाया के साथ विराजमान है. इस जगह की मान्यता है कि यहां के कुंड में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है...
पर्वत श्रृंखला की दूसरी ऊंची चोटी लोहार्गल एकमात्र ऐसा तीर्थ है, जिसकी महत्ता कई युगों से मानी जाती है और कहा जाता है कि प्रथम युग में तो यह ऐसा स्थान था, जहां से कोई पक्षी भी गुजर जाए तो उसको मोक्ष की प्राप्ति हो जाती थी.
बताया जाता है कि पूरे विश्व में भगवान सूर्य देव के 44 मंदिर हैं, जिनमें लोहार्गल के सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य देव पत्नी छाया के साथ विराजमान है. इसके अलावा यहां मालखेत बाबा मंदिर, गोपीनाथ जी मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, हल्दियों का मंदिर, बड़ा मंदिर, पांच पांडव मंदिर, प्राचीन शिव मंदिर, कावड़िया मंदिर, नरसिंह भगवान मंदिर, बरखंडी मंदिर, केदारनाथ शिवलिंग मंदिर सहित 108 मंदिर स्थित है.
महाभारत काल से माना जाता है महत्व
लोहार्गल तीर्थ महाभारत काल से भी प्राचीन माना जाता है. प्रचलित लेख और कथाओं के अनुसार महाभारत कालीन पांडवों को कहा गया था कि उनको गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए ऐसे स्थान पर स्नान करना चाहिए, जहां लोहे के अस्त्र गल जाए. तीर्थाटन के दौरान पांडवों के अस्त्र लोहार्गल के ब्रह्म सरोवर में गल गए. इसलिए उन्होंने भाद्रपद मास की सोमवती अमावस्या को यहां स्नान किया था. इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की.

यह भी पढ़ें. Special: शेखावाटी के जिस बाबा को लोग कहते थे बावलिया, उन्हीं के आर्शीवाद से बिड़ला बने बड़े उद्योगपति
साथ ही इस स्थान को तीर्थराज की उपाधि से विभूषित किया. बताया जाता है कि इसके बाद से तब से इस स्थान की खासी महत्ता मानी जाती है. लोग यहां परिक्रमा करने और स्थान करने के लिए दूर दूर से आते हैं.
भाद्रपद की अमावस्या को लगता है मेला
यह राजस्थान का पुष्कर के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है. इस जगह का संबंध भगवान परशुराम, शिव, सूर्य और विष्णु से है. यहां आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले यहां स्थित कुंड मे स्नान करते हैं.
यह भी पढ़ें. स्पेशल: करवा चौथ पर चौथ माता के मंदिर में लगता है सुहागिनों का मेला, दर्शन करके धन्य होते हैं भक्त
इसके बाद अति प्राचीन सूर्य मंदिर के दर्शन और बरखंडी की परिक्रमा शुरू करते हैं. लोहार्गल में प्रतिवर्ष भाद्रपद की अमावस्या को मेला भरता है, जिसे देखने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.

इसलिए भी है खास
किवदंती यह भी है कि यहां भगवान परशुरामजी ने भी पश्चाताप के लिए यज्ञ किया और पाप से मुक्ति पाई थी. भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था लेकिन शांत होने पर उन्हें गलती का अहसास हुआ. यहां एक विशाल बावड़ी भी है, जो राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है.

पास ही पहाड़ी पर अति प्राचीन सूर्य मंदिर, वनखंडी जी का मंदिर, कुंड के पास प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर और पांडव गुफा स्थित है. श्रद्धालु यहां चार सौ सीढिय़ां चढऩे के बाद मालकेतु जी के दर्शन करते हैं.