चिड़ावा (झुंझुनू). चिड़ावा कस्बे के वार्ड 25 में एक मकान सुदा प्लॉट में बाहर एक पेड़ के नीचे दो बच्चों को जंजीर से बांधकर उनके माता-पिता गोगामेड़ी चले गए. मासूमों की उम्र महज डेढ़ और ढाई साल बताई जा रही है. पड़ोसियों ने जब इनके रोने की आवाज सुनी तो मामले की जानकारी पुलिस को दी गई. जिसके बाद पुलिस ने दोनों मासूमों को चिड़ावा के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां उनका सीएचसी प्रभारी एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल लांबा की देखरेख में प्राथमिक उपचार शुरू किया गया.
वहीं, इलाज के दौरान बच्चों को उनके माता-पिता अपने साथ ले गए, वो भी बिना डिचार्ज करवाए. डॉक्टरों की मानें तो कई घंटों से पानी एवं दूध नहीं मिलने से बच्चों की तबीयत ज्यादा खराब थी तथा प्राथमिक उपचार के बाद कुछ रिकवर हुए, लेकिन अभी इलाज की जरूरत थी. लेकिन माता-पिता बच्चों को अपने साथ ले गए.
बता दें कि शाहपुर तन सिंघाना निवासी महेंद्र वाल्मीकि और उसकी पत्नी रेखा नट बस्ती में बहनोई विजय व बहन पूजा के साथ रहते हैं. रेखा पालिका क्षेत्र में सफाई का काम करती है और उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है. बच्चों की दादी विमला ने बताया कि रेखा व उसका पति महेंद्र अपने छह साल के बेटे को लेकर गोगामेड़ी गए. ये लोग अपने डेढ़ व ढाई साल के दो बच्चों को एक चारपाई पर जंजीर से बांधकर चले गए तथा इनकी देखभाल की जिम्मेदारी देवर जवाई रामचंद्र को दी. बच्चों को एकेला छोड़कर जाने की बात बिलकुल गलत है. बच्चों को जंजीर से बांधकर रखना पड़ता है, क्योंकि बच्चों का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है.
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इसलिए बच्चे कहीं भी निकल जाते हैं. बच्चों को खाना भी दिया गया तथा किसी काम से देवर जवाई रामचंद्र बहार चला गया, तभी पीछे से बच्चों के रोने की आवाज सुनकर आस-पड़ोस के लोगों ने पुलिस को सूचना दे दी. मासूमों की दादी ने दोनों बच्चों को जन्मजात से ही मानसिक रूप से कमजोर बताया और कहा कि इनका लीवर कमजोर है. कई अस्पतालों में भी दिखाया, लेकिन कोई इलाज नहीं बैठा. इन्होंने कहा कि मासूम बच्चों के पिता महेंद्र का शाहपुरा में एक टीनशैड का मकान है तथा इनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है. वहीं, बीपीएल कार्ड और ना ही भामाशाह कार्ड बना हुआ है. सरकारी मदद के लिए बुहाना उपखंड प्रशासन के कार्यालय के खूब चक्कर लगाए, लेकिन कोई मदद नहीं मिली.
शरीर में हो गई थी पानी की कमी...
एक तरफ जहां मासूमों की दादी का दावा है कि देखभाल की जा रही थी, वहीं जब बच्चों को सरकारी अस्पताल लेकर आया गया तब दोनों बच्चे अर्द्ध मूर्छित अवस्था में थे. शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल लांबा ने बताया कि प्रारंभिक जांच में पता चला कि बच्चों के शरीर में पानी की कमी हो गई थी तथा बच्चों के माता-पिता बिना डिजार्च करवाए ही बच्चों को लेकर चले गए. प्राथमिक उपचार से बच्चों की हालत खतरे से बाहर हो गई थी, लेकिन अभी उपचार की और भी जरूरत थी.
दूध पीते बच्चों के पास रोटियां बना कर छोड़ गए थे मां-बाप...
चौंकाने वाली बात ये है कि ये माता पिता इन दूध पीते बच्चों को चारपाई पर जंजीर से बांधकर इनके पास रोटियां बनाकर रखकर गए. ये लोग करीब डेढ़ सौ किमी दूर गोगामेड़ी गए.