झुंझुनू. राज्य में नगर निकायों का माहौल बन चुका है और वार्डो के आरक्षण के बाद जल्दी निकाय प्रमुखों की भी लाटरी निकलने वाली है. इस बीच हम आपको झुंझुनू नगर परिषद के अजीब संयोगों से रूबरू करवाते हैं.
झुंझुनू नगर परिषद का संयोग रहा है कि राज्य में जिस की सरकार रहती है, उसी का बोर्ड नगर परिषद में बनता है. दोनों प्रमुख पार्टियां कभी भी रिपीट करने की स्थिति में नहीं रही हैं. यहां एक बार भाजपा का बोर्ड बनता है तो उसके बाद कांग्रेस का. मुख्यालय पर आबादी के हिसाब से कांग्रेस की ओर से हमेशा मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को टिकट दिया जाता रहा है तो भाजपा बनिया और जाट को टिकट देती रही है.
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इस तरह से राज्य सरकार के साथ चला है बोर्ड
इस अनूठे संयोग को आप आंकड़ों से भी देख सकते हैं. साल 1994 में झुंझुनू नगर पालिका बनी और भारतीय जनता पार्टी से रमेश टीवड़ा पहले अध्यक्ष बने. उस समय राज्य में भाजपा की ही सरकार थी. इसके बाद 1999 में कांग्रेस के तैयब अली अध्यक्ष बने तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. इसके बाद 2004 में बीजेपी से भारती टीबड़ा अध्यक्ष बनी और तब भी सत्ता में भाजपा की सरकार थी.
इस बीच झुंझुनूं के नगर परिषद बन जाने पर टीबड़ा को सभापति बनने का भी सौभाग्य मिला. और ये सिलसिला इसी तरह से जारी रहा. साल 2009 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो नगर परिषद में भी कांग्रेस के बोर्ड से खालिद हुसैन सभापति बने. इसके साथ ही 2014 में राजस्थान में वापस भाजपा की सरकार बनी तो यहां भी भाजपा के सुदेश अहलावत सभापति बने.
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ओला भी नहीं बदल पाए ये संयोग
सभापति व अध्यक्षों के कार्यकाल से स्पष्ट है कि झुंझुनू लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ भले ही रहा है लेकिन नगर परिषद में स्थिति सत्ता के हिसाब से ही चली. झुंझुनू से कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला की केंद्र तक तूती बोला करती थी. और स्थानीय राजनीति में भी वो पूरा दखल रखते थे. यहां तक की टिकटों का बटवारा भी उनके इशारे पर हुआ करता था, लेकिन इसके बाद भी यहां की जनता ने नगर परिषद के लिए हमेशा अलग ही मैंडेट दिया है. जो आज भी बरकरार है. अब देखने वाली बात ये होगी कि आगामी निकाय चुनावों में ये अनूठा संयोग टूटता है या बरकरार रहता है.