चिड़ावा (झुंझुनूं). झुंझुनूं जिले के चिड़ावा कस्बे के करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित शक्कर बार पीर बाबा की दरगाह में कौमी एकता की जीवंत मिसाल देखने को मिलती है. यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी पद्धति से पूजा-अर्चना करने का अधिकार है. कौमी एकता के प्रतीक के रूप में यहां प्राचीन काल से कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. जो कि तीन दिन तक चलता है. जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते है. इस बार 23 अगस्त से 25 अगस्त तक मेला आयोजित होगा. इसकी तैयारियां भी शुरु हो चुकी है.
दरगाह के गुबंद से बरसती थी शक्कर
झुंझुनूं जिले के नरहड़ स्थित इस दरगाह के बारे में कहा जाता है कि किसी समय इसके गुबंद से शक्कर बरसती थी. इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से जानी जाती है. शक्करबार शाह, अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन थे और उन्हीं की तरह सिद्ध पुरूष थे. शक्करबार शाह ने ख्वाजा साहब के सात वर्ष बाद देह त्यागी की थी. यहां जायरिन मजार पर चादर, वस्त्र, नारियल, मिठाइयां आदि चढ़ाते है. लोगों के मुताबिक इस मेले की रस्म 750 वर्षो से भी ज्यादा पुरानी है. लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसे निभा रहे है. 1947 में जब भारत-पाक विभाजन के दौरान पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव था, तब भी नरहड़ में शांति का माहौल रहा और लोग इस मेले में शरीक हुए.
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दरगाह में जन्माष्टमी उत्सव धार्मिक समागम की अनोखी मिसाल
दरगाह में भगवान कृष्ण के जन्म पर आयोजित होने वाला जन्माष्टमी उत्सव सांस्कृतिक और धार्मिक समागम की अनोखी मिसाल है. दरगाह में अजान के साथ-साथ आरती भी गूंजती है. नरह़ड शरीफ भारत की ऐसी पहली दरगाह है. जहां पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर मेला आयोजित होता है. जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बिना किसी समुदाय के भेदभाव से एक साथ जन्माष्टमी पर्व मनाते है. नरहड़ दरगाह में हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आपस में मिलजुल कर रहते है. दिलचस्प बात तो ये है कि ये मेला दरगाह कमेटी की देखरेख में होता है और मेले को सफल बनाने के लिए हिंदू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आपस में सहयोग करते है.
देशभर से आते है जियारत करने लोग
नरहड़ दरगाह पर जन्माष्टमी के मेले में देशभर से लोग जियारत करने आते है. जियारत के लिए हरियाणा, यूपी, बिहार, गुजरात, पंजाब, कलकत्ता से लोग आते है. यहां श्रद्धालु मन्नते मांगने के बाद पूरी होने पर जियारत करने आते है. जन्माष्ट्मी पर कव्वाली का कार्यक्रम होता है. तो वहीं मुस्लिम भाई लंगर लगाते है और हिंदू समुदाय के लोग भण्डारे का आयोजन करते है.
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विशेष सजावट और छप्पन भोग की झांकी
मेले पर विशेष तौर पर दरगाह की सजावट होती है और छप्पन भोग की झांकी सजाई जाती है. ढ़ोल-नगाड़े के साथ इस मेले की शुरुआत होती है. जो कि पूरे दिन चलते रहते है. इसके बाद तीन दिन तक दूर-दराज से जायरिनों का आना शुरु हो जाता है.